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जज यशवंत वर्मा के घर कैश मिला था या नहीं? फायर डिपार्टमेंट चीफ के बयान से बढ़ा सस्पेंस

मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया था कि जस्टिस यशवंत वर्मा के बंगले में लगी आग के बाद भारी मात्रा में नकदी मिली. इनमें जस्टिस वर्मा के दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर को भी जोड़ दिया गया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों मामलों को अलग-अलग बताते हुए बयान जारी किया.

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जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से कैश बरामद होने का दावा किया गया था
जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से कैश बरामद होने का दावा किया गया था

दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास पर नकदी मिलने के मामले में सस्पेंस गहरा गया है. सवाल उठ रहे हैं कि जज यशवंत वर्मा के घर कैश मिला था या नहीं? कारण, अब फायर डिपार्टमेंट चीफ के बयान से सस्पेंस बढ़ा गया है. दरअसल, न्यूज एजेंसी पीटीआई ने अग्निशमन विभाग के हवाले से कैश मिलने के दावों को पूरी तरह खारिज कर दिया था.

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एजेंसी ने दिल्ली अग्निशमन सेवा (DFS) के प्रमुख अतुल गर्ग के बयान से इन दावों को खारिज करते हुए कहा था कि आग बुझाने के दौरान दमकल कर्मियों को कोई नकदी नहीं मिली. लेकिन इसके उलट अब फायर ऑफिसर अतुल गर्ग ने इस बयान को गलत बताया है. उन्होंने स्पष्ट कहा कि न्यूज एजेंसी पीटीआई द्वारा चलाया जा रहा बयान मेरा नहीं है.   

इससे पहले न्यूज एजेंसी ने दावा किया था कि अग्निशमन अधिकारी गर्ग ने बताया कि 14 मार्च की रात 11:35 बजे लुटियंस दिल्ली स्थित जस्टिस वर्मा के आवास पर आग लगने की सूचना मिली, जिसके बाद तुरंत दो दमकल गाड़ियां मौके पर भेजी गईं. दमकल कर्मी 11:43 बजे तक घटनास्थल पर पहुंच गए. आग एक स्टोर रूम में लगी थी, जहां स्टेशनरी और घरेलू सामान रखा था. आग पर 15 मिनट में काबू पा लिया गया और कोई हताहत नहीं हुआ.

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न्यूज एजेंसी ने अधिकारी के माध्यम से कहा था, "आग बुझाने के तुरंत बाद हमने पुलिस को इस घटना की जानकारी दी. उसके बाद हमारी टीम वहां से रवाना हो गई. आग बुझाने के दौरान हमारे दमकल कर्मियों को कोई नकदी नहीं मिली."

यह भी पढ़ें: जज के घर 'नोटों का भंडार' मिलने पर सुप्रीम कोर्ट की पहली प्रतिक्रिया, इलाहाबाद ट्रांसफर पर कही ये बात

बता दें कि मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया था कि जस्टिस यशवंत वर्मा के बंगले में लगी आग के बाद भारी मात्रा में नकदी मिली. इनमें जस्टिस वर्मा के दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर को भी जोड़ दिया गया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों मामलों को अलग-अलग बताते हुए बयान जारी किया.

दिल्ली HC के चीफ जस्टिस ने जांच शुरू की

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कैश मिलने के आरोपों को लेकर प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है, जिसके तहत दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से एक प्रारंभिक रिपोर्ट मांगी गई है. दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अपनी जांच रिपोर्ट आज (21 मार्च 2025) भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को सौंपेंगे. इसके बाद इस रिपोर्ट की समीक्षा कर आगे की आवश्यक कार्रवाई की जाएगी.

जांच और ट्रांसफर अलग-अलग: सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक आधिकारिक बयान जारी किया गया. इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य जस्टिस ने जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़े मामले की जांच सबसे पहले शुरू की थी. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में कई प्रकार की अफवाहें और गलत जानकारियां फैलाई जा रही हैं, जिनसे बचने की आवश्यकता है.

यह भी पढ़ें: 'ये कोई कूड़ेदान नहीं...', दिल्ली हाईकोर्ट के जिस जज के घर मिला कैश, उनके ट्रांसफर का इलाहाबाद बार एसोसिएशन ने किया विरोध

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जस्टिस यशवंत वर्मा के ट्रांसफर का प्रस्ताव इन-हाउस जांच प्रक्रिया से पूरी तरह अलग और स्वतंत्र है. सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि जस्टिस यशवंत वर्मा वर्तमान में दिल्ली हाईकोर्ट में दूसरे वरिष्ठतम जज और कोलेजियम के सदस्य हैं. लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर होने के बाद उनकी वरिष्ठता घटकर नौवीं हो जाएगी.

जस्टिस यशवंत वर्मा का करियर

56 वर्षीय जस्टिस यशवंत वर्मा ने 1992 में अधिवक्ता के रूप में रजिस्ट्रेशन कराया था. उन्हें 13 अक्टूबर 2014 को इलाहाबाद हाईकोर्ट का एडिशनल जज नियुक्त किया गया था और 1 फरवरी 2016 को स्थायी जज के रूप में शपथ दिलाई गई थी. उनका जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ था. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम (ऑनर्स) किया और फिर मध्य प्रदेश के रीवा विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की.

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उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में संवैधानिक, श्रम एवं औद्योगिक कानूनों के साथ-साथ कॉर्पोरेट कानून, कराधान और संबंधित कानूनों पर अभ्यास किया. वह 2006 से हाईकोर्ट के विशेष वकील और 2012 से 2013 तक उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख स्थायी अधिवक्ता भी रहे. 2013 में उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था.

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