दिल्ली हाई कोर्ट की खंडपीठ ने शुक्रवार को उद्धव ठाकरे को बड़ा झटका दिया. ठाकरे ने अपनी याचिका में शिवसेना के नाम और चुनाव चिह्न के इस्तेमाल पर रोक लगाने के चुनाव आयोग के अंतरिम आदेश के खिलाफ दायर उनकी अर्जी को खारिज करने के एकल न्यायाधीश के निर्णय को चुनौती दी गई थी. इससे पहले उद्धव गुट ने चुनाव आयोग के फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट की एकल पीठ में चुनौती दी थी. एकल न्यायाधीश की पीठ ने ठाकरे की मांग ठुकरा दिया था.
इसके बाद ठाकरे ने खंडपीठ के समक्ष एकल जज पीठ के आदेश को चुनौती दी. अब खंडपीठ ने भी कहा कि चुनाव आयोग नियमों के मुताबिक इस मसले में कार्रवाई के लिए स्वतंत्र है. कोर्ट के दखल का कोई औचित्य नहीं बनता. अब शिवसेना का उद्धव ठाकरे गुट हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का मूड बना रहा है.
वैसे निर्वाचन आयोग इस मसले पर 10 जनवरी को सुनवाई करने वाला है. आठ अक्टूबर को निर्वाचन आयोग ने एक अंतरिम आदेश पारित करते हुए शिवसेना के दोनों गुटों पर अंधेरी पू्र्व विधानसभा उपचुनाव में पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न का इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी थी.
उद्धव ठाकरे गुट ने यह दी थी दलील
उद्धव ने दावा किया था कि एकल न्यायाधीश वाली पीठ का 15 नवंबर का फैसला ‘त्रुटिपूर्ण’ है और इसे रद्द किया जाना चाहिए. इस फैसले के तहत न्यायाधीश ने निर्वाचन आयोग को कार्यवाही में तेजी लाने का निर्देश भी दिया था.
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक ठाकरे की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने गुरुवार को दलील दी थी कि चुनाव चिह्न पर रोक लगाने संबंधी आदेश जारी करते समय निर्वाचन आयोग ने उनके मुवक्किल का पक्ष नहीं सुना. उन्होंने कहा, “आयोग के इतिहास में कभी किसी पक्ष को सुने बिना कोई आदेश पारित नहीं किया गया है.”
उद्धव ने अपनी अर्जी में दावा किया था कि पार्टी के नेतृत्व को लेकर कोई विवाद नहीं है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने खुद स्वीकार किया था कि उद्धव शिवसेना के उचित तरीके से चुने गए अध्यक्ष हैं और बने रहेंगे.ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि शिवसेना के दो प्रतिद्वंद्वी गुट हैं.
एकल पीठ ने यह दिया था आदेश
एकल न्यायाधीश वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि पार्टी में ‘फूट’ के बाद शिवसेना के नाम और चुनाव चिह्न पर रोक लगाने के निर्वाचन आयोग के फैसले में ‘प्रक्रियात्मक उल्लंघन’ जैसी कोई बात नहीं है.
पीठ ने कहा था कि निर्वाचन आयोग ने उपचुनावों की घोषणा के कारण चुनाव चिह्न के आवंटन की आवश्यकता को देखते हुए यह आदेश पारित किया था और याचिकाकर्ता, जिसने जरूरी दस्तावेज पेश करने के लिए बार-बार समय मांगा, अब न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए आयोग की आलोचना नहीं कर सकता.
एकल न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा था, “महाराष्ट्र में मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल ‘शिवसेना’ के सदस्यों के बीच फूट है। एक गुट का नेतृत्व एकनाथराव संभाजी शिंदे कर रहे हैं, जबकि दूसरे गुट की कमान उद्धव ठाकरे संभाल रहे हैं। दोनों खुद को मूल शिवसेना का अध्यक्ष बताते हैं और पार्टी के ‘धनुष एवं बाण’ चुनाव चिह्न पर दावा जताते हैं.”