आय से अधिक संपत्ति वाले मामले में चीफ जस्टिस दिपांकर दत्ता और जस्टिस अभय अहुजा की बेंच ने उद्धव ठाकरे और उनके परिवार को राहत दे दी है. उस याचिका से खुद को अलग कर लिया गया है जहां पर याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि उद्धव ठाकरे और उनके परिवार के पास आय से अधिक संपत्ति है और उस मामले की जांच सीबीआई और ईडी द्वारा होनी चाहिए. तब याचिकाकर्ता ने यहां तक कहा था कि वे पीएम नरेंद्र मोदी के कथन- ना खाऊंगा और ना खाने दूंगा से प्रेरित थीं. लेकिन कोर्ट ने उस याचिका से खुद को अलग कर लिया है.
क्या है ये पूरा मामला?
जानकारी के लिए बता दें कि गौरी भिड़े और उनके पिता द्वारा उद्धव ठाकरे और उनके परिवार के खिलाफ ये याचिका यादर की गई थी. आरोप ये लगाया गया था कि उद्धव की तरफ से आय से अधिक संपत्ति अर्जित की गई थी. उनकी पत्नी और परिवार के दूसरे सदस्यों पर भी ऐसे ही आरोप लगाए गए थे. तर्क दिया गया कि आम नागरिक को हक है कि उन्हें पता रहे कि उनके नेता कितने कमाते हैं, उनके पास कितनी संपत्ति है. आरोप ये भी लगाया गया कि उद्धव के परिवार के पास कई बेनामी संपत्ति है, लेकिन पुलिस द्वारा राजनीतिक दबाव की वजह से कोई एक्शन नहीं लिया गया.
आरोप क्या लगाए गए?
याचिका में शिवसेना के मुखपत्र सामना का भी जिक्र किया गया था. कहा गया था कि जब कोरोना काल में दूसरे मीडिया हाउस नुकसान झेल रहे थे, तब सामना का टर्नओवर 42 करोड़ के करीब रहा था और मुनाफा भी 11.5 करोड़ से ज्यादा रहा. आरोप लगाया गया कि काली कमाई को सभी से छिपाकर सफेद करने का काम हुआ. लेकिन कोर्ट अभी के लिए इन दलीलों से संतुष्ट नहीं है और खुद को इस मामले से अलग कर लिया है.