राजद्रोह कानून को लेकर भारतीय विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी. राजद्रोह कानून को लेकर विधि आयोग के अपनी सिफारिश सरकार को सौंपने के बाद नजरें समान नागरिक संहिता को लेकर रिपोर्ट पर टिकी हैं. माना जा रहा है कि विधि आयोग समान नागरिक संहिता को लेकर अपनी रिपोर्ट जल्द ही सरकार को सौंप सकता है.
उत्तराखंड के लिए समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने वाली समिति की अध्यक्ष जस्टिस (अवकाश प्राप्त) रंजना प्रकाश देसाई ने शुक्रवार को विधि आयोग के सदस्यों से मुलाकात के बाद ऐसी ही संभावनाएं जताई हैं. सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त जज जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई ने अपनी समिति के सदस्यों के साथ विधि आयोग के अध्यक्ष सेवानिवृत्त जस्टिस ऋतुराज अवस्थी, सदस्य के टी शंकरन, आनंद पालीवाल और डीपी वर्मा से मुलाकात की.
इस दौरान समिति की ओर से उत्तराखंड के लिए समान नागरिक संहिता को लेकर बनाए गए मसौदे पर भी चर्चा हुई. जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई ने इस मुलाकात के बाद कहा है कि आयोग इस मुद्दे पर शोध करने वालों और हितधारकों से संपर्क करने का काम कर रहा है. विधि आयोग के सदस्यों के साथ हुई बातचीत से तो यही समझ में आता है.
पिछले साल नवंबर महीने में अध्यक्ष का कार्यभार संभालने के बाद जस्टिस ऋतुराज अवस्थी ने भी ऐसे संकेत दिए थे कि पिछले आयोग में लंबित महत्वपूर्ण मुद्दों पर 22वां विधि आयोग शोध कार्य आगे बढ़ाएगा. जाहिर है इसमें समान नागरिक संहिता का भी मामला है. पिछले विधि आयोग की प्रतिक्रिया समान नागरिक संहिता के समर्थन में नहीं थी.
पिछले आयोग ने बताया था बहुत बड़ा मुद्दा
पिछले विधि आयोग के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले पैनल ने कार्यकाल खत्म होने से ठीक पहले परामर्श रिपोर्ट जारी की थी. इसमें आयोग की ओर से कहा गया था कि समान नागरिक संहिता का मुद्दा बहुत बड़ा है और इसके संभावित असर का भारत में परीक्षण नहीं किया गया है.
विधि आयोग ने अपनी परामर्श रिपोर्ट में ये भी कहा था कि किसी देश में भिन्नता का अस्तित्व भेदभाव का नहीं, बल्कि एक मजबूत लोकतंत्र का संकेत है. पैनल ने कहा था कि अधिकांश देश मतभेद पहचानने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. जून 2016 में, विधि और न्याय मंत्रालय ने आयोग को एक संदर्भ भेजकर समान नागरिक संहिता से संबंधित मामलों की गहन जांच करने के साथ इसकी भी संभावना तलाशने के लिए कहा था कि क्या इसे लाने का समय आ गया है?
विधि आयोग ने लोगों से मांगे थे सुझाव
विधि आयोग ने उसी साल अक्टूबर में इस मुद्दे पर टिप्पणियों, आपत्तियों और सुझाव के लिए राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक दल, समूह और संस्थानों से बड़े पैमाने पर जन प्रतिक्रिया मांगने का विज्ञापन जारी किया था. विधि आयोग ने इसके अगले साल 19 मार्च को एक अपील जारी कर आम नागरिक संहिता के मुद्दे पर हितधारकों और आम जनता से अपने सुझाव और टिप्पणियां भेजने के लिए कहा था.
विधि आयोग की ओर से अपील में यह भी कहा गया है कि तीन तलाक से संबंधित सुझाव बाहर रखे जाने चाहिए क्योंकि तलाक-ए-बिद्दत या एक बार में तीन तलाक को अपराध घोषित करने वाला विधेयक संसद में लंबित है. उधर दूसरी तरफ समान नागरिक संहिता बनाने और लागू करने की अर्जी सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित है.
कोर्ट में केंद्र ने दायर किया था हलफनामा
समान नागरिक संहिता को लेकर केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर रुख स्पष्ट कर चुकी है. केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा था कि इस मामले पर विचार करने का अधिकार और जिम्मेदारी विधायिका की है. कोर्ट को इस पर विचार नहीं करना चाहिए. हालांकि, केंद्र सरकार का रुख समान नागरिक संहिता के पक्ष में दिखता है.
समान नागरिकसंहिता लागू करना दायित्व
सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में केंद्र ने साफ कहा है कि संविधान के चौथे भाग में राज्य के नीति निदेशक तत्व का विस्तृत ब्यौरा है जिसके अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है. अनुच्छेद 44 उत्तराधिकार, संपत्ति अधिकार, शादी, तलाक और बच्चे की कस्टडी के बारे में समान कानून की अवधारणा पर आधारित है.
सरकार ने हलफनामे में यह भी कहा है कि अनुच्छेद 44 धर्म को सामाजिक संबंधों और पर्सनल लॉ से अलग करता है. विभिन्न धर्मों को मानने वाले विभिन्न संपत्ति और वैवाहिक कानूनों का पालन करते हैं जो कि देश की एकता के खिलाफ है.