उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है. यहां एक 16 साल के लड़के ने अपनी मां की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी, क्योंकि उन्होंने उसे PUBG खेलने से मना कर दिया था. मां की रोकटोक उस लड़के को इतनी बुरी लगी कि आधी रात को उठकर उसने अपने पिता की लाइसेंसी रिवॉल्वर निकालकर मां के सिर पर गोली मार दी.
मां की हत्या करने वाले 16 साल के लड़के को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. चूंकि लड़का अभी नाबालिग है, इसलिए उसके साथ नाबालिग जैसा ही बर्ताव किया जाएगा. उसे अभी जेल या हवालात में नहीं रखा जाएगा.
हमारे देश में नाबालिग वो होता है जिसकी उम्र 18 साल से कम होती है. ऐसे अपराधियों से जुड़े मामलों की सुनवाई कोर्ट में नहीं, बल्कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में होती है. कानूनन देश के हर जिले में कम से कम एक जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड होना जरूरी है.
नाबालिग अपराधियों और किशोरों के मामलों को देखते हुए 22 साल पहले जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2000 कानून लाया गया था. इसी एक्ट के तहत देशभर में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड और जुवेनाइल कोर्ट का गठन किया गया. दिसंबर 2012 में दिल्ली के निर्भया कांड के बाद इस कानून में संशोधन किया गया और प्रावधान किया गया कि अगर 16 साल या उससे ज्यादा उम्र का कोई किशोर जघन्य अपराध करता है, तो उसके साथ वयस्क की तरह बर्ताव किया जाएगा.
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अपराध को तीन श्रेणी में बांटा गया है
भारत में अपराध को तीन श्रेणी में बांटा गया है. पहली श्रेणी में 'छोटे अपराध' आते हैं. ये ऐसे अपराध होते हैं जिनमें 3 महीने तक की सजा होती है. दूसरी है 'घोर अपराध', जिसमें 3 से 7 साल तक की सजा होती है. और तीसरी है 'जघन्य अपराध', जिसमें 7 साल या उससे ज्यादा की सजा का प्रावधान है.
भारत में पहले 18 साल से कम उम्र के अपराधियों को नाबालिग मानकर ही मुकदमा चलाया जाता था. लेकिन 2015 में इस कानून में संशोधन किया गया और प्रावधान किया गया कि अगर 'जघन्य अपराध' हुआ हो तो 16 से 18 साल की उम्र के नाबालिग को भी वयस्क माना जाएगा.
ये संशोधन इसलिए किया गया था, क्योंकि 2012 में निर्भया कांड के 6 दोषियों में से एक नाबालिग था. बाकियों को तो फांसी की सजा हो गई थी, लेकिन नाबालिग दोषी तीन साल सुधार गृह में बिताकर रिहा हो गया था. इस वजह से कानून को सख्त करने की मांग उठी थी.
कहां चलता है नाबालिग अपराधियों का मुकदमा?
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के मुताबिक, अगर किसी अपराध में नाबालिग को गिरफ्तार किया जाता है तो उसे पुलिस हवालात या जेल में नहीं रख सकती. उसे सुरक्षित स्थान पर रखा जाता है और 24 घंटे के भीतर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के सामने पेश किया जाता है.
अगर नाबालिग पर जघन्य अपराध करने का आरोप है, तो जुवेनाइल बोर्ड उसकी शारीरिक और मानसिक रूप से जांच करता है, काउंसलिंग करता है और पता लगाने की कोशिश करता है कि उसने किस मकसद से और किस हालात में ये अपराध किया था.
अगर जांच के दौरान ही नाबालिग की उम्र 18 साल के पार हो जाती है, तो भी उसके साथ नाबालिग की तरह ही बर्ताव किया जाएगा. इतना ही नहीं, अगर 18 साल से ऊपर के किसी व्यक्ति को उस अपराध के लिए गिरफ्तार किया गया हो, जो उसने नाबालिग रहते हुए किया था, तब भी जुवेनाइल बोर्ड ही इसकी जांच करता है.
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सजा-ए-मौत या उम्रकैद नहीं हो सकती
जुवेनाइल बोर्ड नाबालिग अपराधी को तीन साल के लिए सुधार गृह में भेजता है. सुधार गृह में उसकी पढ़ाई-लिखाई भी करवाई जाती है. लेकिन अगर जुवेनाइल बोर्ड को लगता है कि नाबालिग ने जो अपराध किया है, उसके लिए उसके खिलाफ वयस्क की तरह मुकदमा चले तो इसे जुवेनाइल कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया जाता है.
जुवेनाइल कोर्ट में उस नाबालिग को 'वयस्क' मानकर मुकदमा चलाया जाता है और आईपीसी के तहत सजा सुनाई जाती है. हालांकि, किसी भी हाल में उसे मौत की सजा या उम्रकैद की सजा नहीं सुनाई जा सकती.
इतना ही नहीं, जघन्य अपराध में दोषी पाए जाने के बाद भी नाबालिग को जेल में नहीं रखा जाता है. उसे 21 साल की उम्र होने तक सुधार गृह में ही रखा जाता है और 21 साल की उम्र के बाद जेल में डाला जाता है.
लखनऊ वाले मामले में क्या हो सकता है?
इस मामले में एक 16 साल के लड़के पर अपनी मां की हत्या करने का आरोप लगा है. हत्या 'जघन्य अपराध' की श्रेणी में आता है.
जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड आरोपी लड़के की शारीरिक और मानसिक तौर पर जांच करेगा और उस आधार पर सजा देगा.
अगर बोर्ड को लगता है कि आरोपी ने सोच-समझकर अपराध को अंजाम दिया है और उस पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाया जाए तो ये मामला जुवेनाइल कोर्ट में जाएगा.
जुवेनाइल कोर्ट में जुवेनाइल बोर्ड के फैसले की भी समीक्षा होगी और फिर ट्रायल शुरू होगा. हत्या के मामले में मौत की सजा और आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है, लेकिन नाबालिग को ये दोनों सजा नहीं दी जा सकती.