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UPA हो या मौजूदा सरकार, CEC कभी ठीक से काम नहीं कर पाए, आयोग में नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार पर SC ने की सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में CEC की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार को लेकर सुनवाई चल रही है. याचिकाओं में नियुक्ति को अंतिम रूप देने के लिए स्वतंत्र नियुक्ति समिति की मांग की गई है. कोर्ट को बताया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 324(2) में दिए प्रावधान का पालन किए बिना केंद्र नियुक्तियां कर रहा है. इस मामले में मंगलवार को केंद्र सरकार ने अपनी दलीलें दीं.

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SC ने चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार मामले में सुनवाई की (सांकेतिक फोटो)
SC ने चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार मामले में सुनवाई की (सांकेतिक फोटो)

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई की. इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से AG के पक्ष रखा, जिसके बाद कोर्ट AG से बोला कि नियुक्ति के प्रावधान में कहा गया है कि उनकी नियुक्ति संसद द्वारा बनाए गए कानून के अधीन है. कोर्ट ने कहा कि हमें यह बताएं कि इसके लिए आपने कानून पर विचार किया है या नहीं. संविधान के प्रावधान के अनुसार यह संसद को दिया गया दायित्व है. इस पर संसद को फैसला लेना होता है.

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संविधान पीठ 17 नवंबर को हुई सुनवाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि जब तक संसद इन नियुक्तियों को लेकर कोई कानून नहीं बना लेता, तब तक हम क्यों ना एक गाइडलाइन जारी करें. इस मसले पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा गया था.

जस्टिस जोसेफ ने कहा कि सरकार यह जानती है कि जिन लोगों को वह नियुक्त कर रही है, वो प्रावधान के मुताबिक अपना 6 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे. ऐसे में CEC स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पाते, इस पर सरकार अपना रुख कोर्ट को बताए.

जस्टिस जोसेफ ने कहा कि यह देखा जा सकता है कि UPA सरकार हो या अभी की सरकार, यह लगातार हो रहा है कि CEC अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रहे हैं. सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया कि मामले पर पिछली सुनवाई के बाद सरकार ने तीसरा आयुक्त भी नियुक्त कर दिया है.

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6 साल का होना चाहिए सीईसी का कार्यकाल

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या आप स्वीकार करते हैं कि जब संविधान की व्याख्या की गुंजाइश होती है तो अदालत की भूमिका होती है? क्या आपको लगता है कि दिए गए मामले के तथ्यों को सुनना कोर्ट का अधिकार क्षेत्र है?

जस्टिस जोसेफ ने पूर्व के CEC (मुख्य चुनाव आयुक्त) के कार्यकाल का जिक्र करते हुए कहा कि पहले, दूसरे और तीसरे CEC का कार्यकाल 8, 8 और 4 साल का था. इससे उनके कार्यकाल काल की अवधि का पता चलता है, जबकि 1991 के अधिनियम के तहत CEC का कार्यकाल 6 वर्ष का होना चाहिए. हालांकि उम्र 65 वर्ष होने पर CEC सेवानिवृत्त हो जाएगा

जस्टिस बोले- विदेश में हैं अलग-अलग नियम

जस्टिस जोसेफ ने आगे कहा कि हम दुनियाभर में कई अदालतों में जाते रहते हैं. अगर हम श्रीलंका को ही ले तो वहां का कानून कहता है कि पॉलिटिशियन की नियुक्त नहीं की जा सकती है, जबकि नेपाल में इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति परिषद की सिफारिशों पर होती हैं. बांग्लादेश में भी कई प्रतिबंध हैं. इसके अलावा पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, टेक्नोक्रेट, वरिष्ठ सिविल सर्वेन्ट के बिना इनकी नियुक्त नहीं की जा सकती है. इसके लिए प्रधानमंत्री विपक्ष के नेता के परामर्श से तीन नामों की अनुशंसा करते हैं.

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लाभ के लिए संविधान के ग्रे एरिया का हो रहा इस्तेमाल

जस्टिस जोसेफ ने कहा कि EC के सदस्यों की नियुक्ति के लिए संविधान के ग्रे एरिया का इस्तेमाल सबने अपने हित के लिए अपने हिसाब से इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग पर एक कानून होना चाहिए. यह सरकार का एक हिस्सा होना चाहिए. इसकी एक स्वतंत्र भूमिका नहीं हो सकती है. आखिरकार यह सरकार से वित्तपोषित होता है. जस्टिस ने कहा कि हमें मूल सिद्धांत पर टिके रहना चाहिए या फिर हमें एक ऐसे सिद्धांत को विकसित करने की जरूरत है जो हमारी परिस्थितियों के लिए सबसे उपयुक्त हो.

संविधान की मूल विशेषता को खत्म नहीं कर सकते: AG

सुनवाई के दौरान AG ने कहा कि तय सिद्धांत यह है कि संविधान की मूल विशेषता को चुनौती नहीं दी जा सकती है. अदालत इसे असंवैधानिक घोषित नहीं कर सकती है. कोर्ट इसे खत्म नहीं कर सकता. 

AG ने कहा कि इस अदालत द्वारा जांच के लिए वे ही मामले खुले हैं, जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. अदालत प्रावधान को बढ़ा सकती है लेकिन जब संविधान के एक मूल प्रावधान पर प्रहार करने की बात आती है, तो यह संसद के लिए बहस करने के लिए है न कि अदालत के लिए.

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