Punjabi Food: 'मक्के दी रोटी, सरसों दा साग' पंजाब के खाने की लोकप्रियता पूरे देश में फैली हुई है. पंजाब यानी 5 नदियों का प्रदेश या कहें तो यहां दूध-दही की नदियां बहती हैं. पंजाबियों को अपने खान-पान पर काफी नाज है, चाहें वो चंडीगढ़ का स्ट्रीट फूड हो या लुधियाना, पटियाला, अंबाला का लोकल पंजाबी खाना, लाहौर की रावल पिंडी से लेकर मुगल नॉन वेज डिश तक, पंजाबी जायका पूरे देश में अपने पैर पसारे हुए है. लेकिन अगर असली पंजाबी खाने की बात की जाए तो उसमें चिकन, नॉन वेज डिश का नाम नहीं लिया जा सकता. तो फिर असली पंजाबी खाना है क्या?
‘असल में क्या है पंजाबी फूड’
इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो पंजाबी पूरी तरह वेजिटेरियन थे. अगर आपको असली पंजाबी खाने का स्वाद लेना है तो पंजाब के गावों में चूल्हे की आंच पर पक रहे पकवानों को चखें. बेसिक पंजाबी पकवान काफी सिंपल हैं. पंजाब में गांव के लोग पूरे साल मेहनत कर साग, अनाज की खेती करते हैं और फिर लुत्फ उठाते हैं देसी घी और सरसों के तेल में बने असली सरसों के साग और खस्ता मक्के की रोटी का. इसके बिना पंजाब का खाना अधूरा है.
‘2500 साल पुराना है सरसों का साग’
सरसों के साग में भारी मात्रा में आयरन पाया जाता है यह शरीर के लिए कितना हेल्दी है इससे हम सभी वाकिफ हैं. खास तौर पर ठंड के मौसम में लोग इसका लुत्फ उठाना ज्यादा पसंद करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं सरसों का जिक्र 2500 साल पुराने जैन ग्रंथ आचारांग सूत्र में किया गया है. इसी समय लिखी गई प्राचीन आयुर्वेद किताबों चरक और सुश्रुत संहिता में भी सरसों के साग का जिक्र शामिल है. भारत में काली सरसों यानी कि सरसों के बीज, पीली सरसों और सरसों के पत्ते कई सालों से पाए जा रहे हैं. सिर्फ साग ही नहीं, पंजाब में लोग खाना भी सरसों के शुद्ध तेल में ही पकाना पसंद करते हैं. हालांकि, यहां खाने के ऊपर घी डालकर खाया जाता है लेकिन तड़का हमेशा सरसों के तेल में ही लगता है.
‘पंजाब में विदेश से आया मक्का’
कई लोगों को लगता है मक्का सबसे पहले भारत के पंजाब में उगा, लेकिन ऐसा नहीं है. पंजाब की मशहूर मक्के की रोटी के मक्के की नीव मेक्सिको और साउथ अफ्रिका से रखी गई थी. 16वीं शताब्दी में यूरोपियन इसे भारत लेकर आए. मक्के की रोटी काफी हेल्दी मानी जाती है. कहा जाता है दिन भर किसान खेत में मेहनत करने के बाद मक्के की रोटी को खाकर उसे आसानी से पचा लेता है. लेकिन अगर शहर में रह रहे लोगों की बात की जाए तो इस रोटी को पचाना उनके लिए थोड़ा मुश्किल साबित हो सकता है .
पंजाब में पहुंचे प्रवासियों ने की ढाबे की शुरूआत
भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद जो लोग पंजाब आए उन्होंने रोज शाम को सड़क किनारे खाना बनाकर खाना शुरू किया. रोजी रोटी के लिए उन्होंने राहगिरों को खाना बेचना भी शुरू कर दिया और ऐसे ही भारत में ढाबों का जन्म हुआ. इन ढाबों में तंदूर में चिकन की कई डिश तैयार करी गईं जो आज देश में खाई जाती हैं. अगर हाइवे पर पंजाबी ढाबा मिल जाए तो राह चलते राहगीर यहां रुकना पसंद करते हैं.
काम आसान करने के लिए था तंदूर!
शुरुआत में तंदूर जमीन में एक गड्डा हुआ करता था जिसकी जमी हुई मिट्टी में कोयला जलाकर खाना पकाया जाता था. बाद में, इसे जमीन से निकालकर खाना बनाया जाने लगा. मशहूर पंजाबी शेफ जिग्स कालरा का कहना था कि तंदूर एक एर्नजी सेवर है. काफी साल पहले हर गली, मोहल्ले या गांव के बाहर एक बड़ा तंदूर हुआ करता था. जहां आस-पास की सभी औरतें इकट्ठा होती थीं औऱ घर से बाहर आकार खाना पकाया करती थीं. उनका मानना था कि घर से बाहर आकर महिलाएं एक-दूसरे से खुलकर बात कर पाती थीं.
(Credit: Raja, Rasoi Aur Anya Kahaniyaan).