मांसाहार पसंद करने वाले स्विट्जरलैंड में शाकाहारी रेस्त्रां क्यों खोला गया, इसकी कहानी दिलचस्प है. साल 1890 की बात है, जब यहां के ज्यूरिख शहर में रहने वाले एक अमीर परिवार हिल्ट के मुखिया एम्ब्रोसिअस हिल्ट को ऑर्थराइटिस की बीमारी परेशान करने लगी. 19वीं सदी में दर्द कम करने वाली दवाएं उतनी असरदार नहीं थीं. और ऑर्थराइटिस का कोई बढ़िया इलाज भी नहीं था. दर्द से परेशान एम्ब्रोसिअस तब नेचुरोपैथी की तरफ मुड़े. यहीं पर एक डॉक्टर मैस्किमिलन बर्चर बनर ने सलाह दी कि मांस खाना छोड़ने पर उनका दर्द कम हो सकता है. ये स्विस डॉक्टर खुद भी मांसाहार के विरोधी थे, और इन्होंने ही म्युसली की खोज की थी.
मांस खाना छोड़ना तब आज की तरह आसान नहीं था
खासकर यूरोपियन देशों में, जहां इसके विकल्प ही नहीं थे. तब एम्ब्रोसिअस ने खुद ही खाने को लेकर प्रयोग शुरू कर दिए. वे शाकाहारी खाने के लिए ज्यूरिख का हर होटल छानने लगे.
एक कैफे ही खरीद लिया
कहीं भी सलाद के अलावा कोई वेजिटेरियन डिश नहीं थी, सिवाय एब्सटिनेन्स नाम के एक कैफे के. यहां इक्का-दुक्का शाकाहारी चीजें मिलती थीं. जैसे चीज़ में लिपटा आलू और जड़ वाली सब्जियां. एम्ब्रोसुइस ने इस रेस्त्रां को खरीद लिया और पूरी तरह से बदलने में जुट गए. अब वे यह काम अपने गठिया के इलाज के लिए नहीं कर रहे थे, बल्कि उन्हें शाकाहारी खाना ही पसंद आ चुका था.
खूब मजाक उड़ता था
इसके बाद से कई बार इस रेस्त्रां के नाम में बदलाव हुआ. यहां तक कि शहर के लोग इसे ग्रेजर्स बुलाने लगे, यानी घास-फूस चरने वाला. स्विट्जरलैंड में तब भी खूब सैलानी आते. देखा जाए तो शाकाहारी खाना उनके लिए नई चीज होनी चाहिए थी और रेस्त्रां में भीड़ जुटनी चाहिए थी. लेकिन हुआ उल्टा. लोग शाकाहार को हिप्पी और हिंदुस्तानियों की पसंद मानते. वे मानते थे कि लापरवाह और नशे में डूबे युवा ही ताकत देने वाली चीजें, जैसे मांस छोड़कर साग-पात खाते हैं. यही वजह है कि वे कभी सीधे रास्ते नहीं आ पाते.
ये सोच इतनी कट्टर थी कि लोग यहां खाने से डरते. सीधे-सीधे बहिष्कार तो नहीं हुआ, लेकिन पूरा ज्यूरिख हिल्ट परिवार को सनकी और हिप्पी मानने लगा. हालात बिगड़ते चले गए. अक्सर खाना पकाने के बाद उसे फेंकने की नौबत आ जाती. इन हालातों में भी परिवार ने रेस्त्रां बंद नहीं किया और आखिरकार ये अपने अनोखेपन के कारण ही चल निकला.
अब ये पहला ऐसा रेस्त्रां, जिसके मेन्यू में सिर्फ शाकाहारी चीजें थीं
डिशेज बढ़ाने के लिए होटल मालिक वेजिटेरियन लाइफस्टाइल वाले देश यानी हमारे यहां पहुंचे. यहां से वे कई नई चीजों के साथ थाली सिस्टम भी ले गए. तो हैरान मत होइएगा, अगर ज्यूरिख में आपको थाली भी मिले. ये भारत की ही देन है.
अब यहां पर ठेठ उत्तर भारतीय थाली भी मिलती है और दक्षिण भारतीय व्यंजन भी. यहां तक छोले-चावल भी यहां खा सकते हैं. इसके अलावा दुनियाभर के शाकाहारी फ्लेवर यहां मिल जाएंगे. शुरू-शुरू में जब लोग वेज खाने से बिदकते थे, यहां के शेफ्स ने मिलकर मीट द ग्रीन नाम से डिश बनाई. साथ में एक कुक बुक भी लिखी, जिसमें रेस्त्रां की सिग्नेचर डिश की रेसिपी तक डाल दी ताकि लोग पढ़ें और सीखें.
वजन से खरीद सकते हैं खाना
यहां एक एक लाइब्रेरी भी है, जहां हजारों किताबें मिलेंगी जो वेजिटेरियन खाने के फायदे गिनाती हैं. यूरोप के मुताबिक खाने के तौर-तरीकों में कई नई चीजें भी यहां मिल जाएंगी. जैसे किसी खास डिश पर नहीं, बल्कि उसके वजन के अनुसार कीमत देना. खाने की क्वांटिटी जितनी ज्यादा होगी, बिल उतना होगा. इससे खास फर्क नहीं पड़ता कि आपने राजमा-चावल मंगाए, या कोई स्विस डिश. फिलहाल इसे स्विटजरलैंड के सबसे ट्रेंडी रेस्त्रां में गिना जाता है, जहां हर उम्र और हर देश-बोली के लोग आते हैं.
शाकाहार पर इसलिए भी बढ़ने लगा जोर
मार्केट रिसर्च कंपनी यूरोमॉनिटर इंटरनेशनल के मुताबिक लोग लगातार वेजिटेरियन और वेगन डाइट की तरफ बढ़ रहे हैं. इसके पीछे क्लाइमेट चेंज को एक वजह माना जा रहा है. खासकर नई पीढ़ी तेजी से इस तरफ बढ़ी.
यहां बता दें कि हर दिन 20 करोड़ से भी ज्यादा जानवर हमारी थाली में पहुंच रहे हैं. इनमें समुद्री जीव-जंतु शामिल नहीं हैं. एनिमल किलिंग पर फोकस करके डेटा देने वाली संस्था 'एनिमल किल क्लॉक' के मुताबिक रोज 20 करोड़ छोटे-बड़े जानवर हमारी प्लेट में आ सकें, इसलिए लगातार हत्याएं हो रही है. अकेले अमेरिका में बीते साल 5 हजार 2 सौ करोड़ से भी ज्यादा पशु मारे जा चुके. हमने जल्द ही मांसाहार के शौक पर काबू नहीं किया, तो पशु-पक्षियों की बहुत सी प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी.
शाकाहारी देशों में भारत लगभग 40 प्रतिशत के साथ टॉप पर है. ऐसा हमेशा से ही रहा. यहां शाकाहारी लैक्टो-वेजिटेरियनिज्म को मानने वाले लोग ज्यादा हैं, यानी जो प्लांट-बेस्ड डाइट और डेयरी प्रोडक्ट तो खाते हैं लेकिन अंडे नहीं. लगभग 13% के साथ शाकाहार के मामले में इजराइल दूसरे नंबर पर है. यहूदी धर्म को मानने वाले लोग जीव-जंतुओं पर हिंसा से बचते हैं. हालांकि धार्मिक कारण की बजाए युवा शाकाहार को लाइफस्टाइल चॉइस की तरह देख और अपना रहे हैं.