देश के कई राज्यों में कोरोना से ठीक होने वाले कुछ मरीजों में ब्लैक फंगस नाम की बीमारी देखा जा रही है. ब्लैक फंगस को म्यूकोरमाइकोसिस भी कहा जाता है. महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. इस बीमारी से कुछ मरीजों को जान तो कुछ को अपनी आंखें गंवानी पड़ रही हैं. अस्पतालों में अब स्पेशल वार्ड बनाकर म्यूकोरमाइकोसिस के मरीजों का इलाज किया जा रहा है.
क्या है ब्लैक फंगस- ब्लैक फंगस दुर्लभ लेकिन एक गंभीर बीमारी है. Covid-19 टास्क फोर्स के एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये उन लोगों में आसानी से फैल जाता है जो पहले से किसी ना किसी बीमारी से जूझ रहे हैं और जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है. इन लोगों में रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता कम होती है. हवा के जरिए ये फंगल इंफेक्शन साइनस और फेफड़ों को आसानी से शिकार बना लेता है. ब्लैक फंगस आमतौर पर कोरोना से ठीक होने वाले कुछ मरीजों में देखा जा रहा है. ये इंफेक्शन स्किन, फेफड़ों और दिमाग में फैलता है. हाल ही में इस बीमारी को लेकर एक एडवाइजरी भी जारी की गई है.
डॉक्टर्स का कहना है कि म्यूकोरमाइकोसिस के नए मामले अस्पताल में भर्ती या फिर ठीक हो चुके कोरोना के मरीजों में ज्यादा देखने को मिल रही है. जिन लोगों का इम्यून सिस्टम मजबूत है, उन्हें इस बीमारी का खतरा कम है.
म्यूकोरमाइकोसिस के लक्षण- आंख-नाक में दर्द या लाल होना, बुखार, सिर दर्द, खांसी, सांस लेने में दिक्कत, खून के साथ उल्टी होना इसके मुख्य लक्षण हैं. एडवाइजरी के अनुसार कुछ लोगों में ये इंफेक्शन होने का खतरा ज्यादा होता है. साइनस की समस्या, चेहरे के एक तरफ दर्द या सूजन, नाक के ऊपर काली पपड़ी होना, दांतों और जबड़ों का कमजोर होना, आंखों में दर्द के साथ धुंधला दिखाई देना, थ्रोम्बोसिस, त्वचा का घाव, सीने में दर्द और सांस संबंधी दिक्कत होने पर ये इंफेक्शन होने की संभावना बढ़ जाती है.
हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि नाक बंद होने के सारे लक्षण बैक्टीरियल नहीं होते हैं, खासतौर से कोरोना के मरीजों में. अगर आपको किसी भी तरह का संदेह है तो इस फंगल इंफेक्शन का पता लगाने वाली जांच जरूर कराएं.
क्या है इलाज- आमतौर पर म्यूकोरमाइकोसिस का इलाज एंटीफंगल दवाओं से किया जा सकता है लेकिन कुछ मामलों में सर्जरी की भी जरूरत पड़ती है. डॉक्टर्स का कहना है कि म्यूकोरमाइकोसिस से बचाव के लिए डायबिटीज को कंट्रोल करना बहुज जरूरी है. इसके अलावा स्टेरॉयड का इस्तेमाल कम करना होगा और इम्यूनोमॉड्यूलेटरी दवाएं खानी बंद करनी होंगी.
शरीर में सही हाइड्रेशन बनाए रखने के लिए 4-6 हफ्ते तक इंट्रावेनस, एम्फोटेरिसिन बी और एंटीफंगल थेरेपी से इसका इलाज किया जा सकता है. टास्क फोर्स के एक्सपर्ट्स ने अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद कोरोना के मरीजों को हाइपरग्लाइसेमिया कंट्रोल करने और ब्लड ग्लूकोज पर नजर रखने की सलाह दी है. इसके अलावा स्टेरॉयड देने के समय और इसके डोज पर भी ध्यान देना चाहिए.
कोरोना के मरीज को म्यूकोरमाइकोसिस होने पर एक पूरी टीम इसका इलाज करती है. इसमें माइक्रोबायोलॉजिस्ट, इंटरनल मेडिसिन स्पेशलिस्ट, इंटेंसिविस्ट न्यूरोलॉजिस्ट, ईएनटी विशेषज्ञ, नेत्र रोग विशेषज्ञ, दांतों के डॉक्टर और सर्जन (मैक्सिलोफेशियल / प्लास्टिक) की जरूरत पड़ती है. हालांकि, इसका इलाज भी काफी महंगा बताया जा रहा है. म्यूकोरमाइकोसिस के इलाज में आवश्यक एम्फोटेरेसिन-बी इंजेक्शन की एक डोज की कीमत 7000 रुपये बताई जा रही है और इसके करीब चार से छह डोज लगते हैं.
कैसे करें बचाव- याद रखें कि ये बीमारी बहुत कम लोगों को होती है. जिन लोगों का डायबिटीज बहुत ज्यादा बढ़ा होता है, ज्यादा स्टेरॉयड के इस्तेमाल वाले, ICU में ज्यादा दिनों तक रहने वाले और पहले से कई बीमारियों से जूझ रहे लोगों में इसका खतरा ज्यादा होता है. इससे बचने के लिए एक्सपर्ट्स मास्क पहनने की सलाह देते हैं. खेत या मिट्टी वाला कोई काम करते हैं तो जूते, लंबे बाजू के शर्ट, फुल पैंट और ग्लव्स पहन कर करें. साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखें.
Covid-19 टास्क फोर्स की सदस्य डॉक्टर सोनम का कहना है कि स्टेरॉयड और सूजन कम करने वाली दवाओं का इस्तेमाल कर रहे कोरोना के मरीजों में म्यूकोरमाइकोसिस का खतरा ज्यादा है. उन्होंने कहा कि फंगल इंफेक्शन स्टडी फोरम और क्लिनिकल संक्रामक रोग सोसायटी द्वारा की जा रही स्टडी में इसके और डेटा जुटाने की कोशिश की जा रही है.