आपको दुनिया दिखाने वाली आंखें सिर्फ देखती नहीं हैं, बल्कि बोलती भी हैं. इसलिए हमारी सभी इंद्रियों में आंखों को सबसे कीमती माना जाता है. आंखों की देखभाल के लिए एहतियाती उपाय जरूरी हैं और यह भी मालूम होना चाहिए कि कुछ उपायों के जरिए नजर को तेज और स्वस्थ रखा जा सकता है. आंखों में किसी तरह की परेशानी होने पर डॉक्टर से सलाह लेकर किसी दवा का इस्तेमाल करें.
हम अपनी नजर को तेज और स्वस्थ कैसे रख सकते हैं? सब्जियां, फल और ओमेगा थ्री फैटी एसिड, विटामिन-ए, सी और ई के साथ बीटाकैरोटिन अच्छी मात्रा में लें, भरपूर नींद लें और सूरज की सीधी रोशनी से बचें. मतलब यह कि अच्छी आदतें और अपने स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान देने का आंखों की देखभाल में बहुत बड़ा योगदान है. आंखें हमारे शरीर की खिड़की हैं, हम इस खिड़की के जरिए बाहर की दुनिया देखते हैं तो इन्हीं आंखों के भीतर झांककर डॉक्टर हमारे समझने से पहले ही मोतियाबिंद, रक्तचाप में गड़बड़ी, मधुमेह, हृदय रोग और स्वास्थ्य की अन्य समस्याओं को भांप लेते हैं और उनसे बचने में हमारी मदद करते हैं.
आंखों की जांच कराने में देर नहीं करनी चाहिए. बच्चा पैदा होते ही उसकी आंखों में हर दिशा से टॉर्च की लाइट डालकर देखें कि नजर कहां ठहरती है. जरा-सा भी शक होते ही बच्चे को तुरंत नेत्र विशेषज्ञ के पास ले जाएं. बच्चे के चार साल का होने पर हर साल भेंगेपन, मोतिया के कारण नजर के धुंधलेपन और पास या दूर की नजर कमजोर होने की जांच कराएं ताकि यह तय हो सके कि चश्मा लगाने की जरूरत है या नहीं. पैराबैंगनी किरणों (अल्ट्रावॉयलेट) से बचाव करने वाले चश्मे बचपन से ही पहनने से आंखों को इन किरणों के हानिकारक असर से बचाया जा सकता है. किशोरावस्था आते-आते चश्मे की जगह कॉन्टैक्ट लेंस लगाए जा सकते हैं. कॉन्टैक्ट लेंस पहनकर कभी नहीं सोना चाहिए क्योंकि ऐसा करने पर कॉर्निया के लिए हवा और खून मिलना कम हो जाता है जिससे नजर को नुकसान हो सकता है. 20 साल की उम्र के बाद लेजर, लेसिक या स्थायी कॉन्टैक्ट लेंस की मदद से चश्मे से छुटकारा मिल सकता है.
आजकल कंप्यूटर आइ सिंड्रोम कम उम्र से ही बहुत तेजी से फैल रहा है. मॉनिटर को लगातार देखते रहने से पलक झपकने की दर कम हो जाती है, आंखों पर जोर पड़ता है और उनमें खुश्की हो सकती है. इसलिए हर एक घंटे में करीब दस मिनट मॉनिटर से नजर फेरकर कहीं दूर देखने या फिर टेलिविजन देखने से मदद मिल सकती है.
ग्लूकोमा या आंखों में दबाव बढऩा और डायबिटीज की वजह से होने वाली रेटिनोपैथी नजर के मौन हत्यारे हैं. इसलिए हर छह महीने में नजर की जांच कराना जरूरी है. डायबिटीज होने पर ढंग की खुराक, कसरत और औषधियों के नियमित उपयोग से काफी हद तक डॉक्टर के पास जाने से बचा जा सकता है.
चालीस की उम्र के आसपास लगभग हर किसी को पढऩे के लिए चश्मे की जरूरत पडऩे लगती है जिसे प्रेसबायोपिया कहते हैं. लेकिन अब इनट्रैकर या सुपराकर नामक लेजर की मदद से चश्मे से छुटकारा मिल सकता है. आंखों में मोतिया किसी भी उम्र में उतर सकता है जिसकी वजह से आंख के कुदरती लेंस की पारदर्शिता खत्म हो जाती है, लेकिन आम तौर पर यह उम्र बढऩे पर होता है. आजकल इस धुंधले लेंस की जगह कृत्रिम लेंस लगा दिया जाता है जिसे इंट्राऑक्यूलरलेंस कहते हैं. मोतिया हटाने की विधियों में नवीनतम तकनीक को फेमटोसेकेंड लेजर असिस्टेड कैटरेक्ट सर्जरी कहते हैं. इसमें न ब्लेड लगता है और न हाथ. इसलिए ऑपरेशन एकदम सही, सटीक और सुरक्षित होता है.
इसीलिए कहा जाता है कि आंखों की देखभाल जीवनभर चलने वाली कसरत है.