रमजान का महीना चांद के अनुसार 18 या 19 जून से शुरू है. इस बार तकरीबन 34 साल बाद गर्मी के मौसम में करीब 15 घंटे 25 मिनट का रोजा होगा. ऐसे में डॉक्टरों की सलाह है कि मधुमेह और दिल के मरीज खास सतर्क रहें और बिना अपने डॉक्टर की सलाह के रोजा न रखें.
लखनऊ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सुदीप कुमार ने मंगलवार को बताया कि रमजान में अक्सर दिल के मरीज और मधुमेह से पीड़ित लोग यह सवाल करते हैं कि क्या उन्हें रोजा रखना चाहिये.
उन्होंने कहा कि जो रोगी पहले दिल के हल्के दौरे के शिकार हो चुके हैं वह रोजा रख सकते हैं. कई शोध में देखा गया है कि रमजान में रोजा रखने के दौरान भी ऐसे रोगियों को उतना आम दिनों की तरह ही जोखिम रहता है. उन्हें अपने डॉक्टर से सलाह लेकर दवा की मात्रा में थोड़ा सामंजस्य कर लेना चाहिये और खाने पीने में सावधानी बरतनी चाहिये.
प्रो. कुमार ने कहा जिन रोगियों को दिल का भारी दौरा पड़ चुका है और उनकी बाईपास सर्जरी हो चुकी है, उन्हें रोजे से परहेज रखना चाहिये. ऐसे रोगियों को दिन में कई बार दवा लेनी पड़ती है और साथ ही उनके शरीर में पानी का स्तर भी सामान्य बना रहना जरूरी है. बिना डॉक्टर की सलाह के रोजा रखना उन मरीजों के लिये खतरनाक हो सकता है जिनकी बाईपास सर्जरी हो चुकी है.
उन्होंने कहा- इस बात का भी ख्याल रखा जाना चाहिये कि ऐसे रोगी जो भी खाना खायें वह ज्यादा तला भुना नहीं होना. रोजा रखने वाले मधुमेह के रोगियों को चाहिये कि रोजा खोलने के एक घंटे बाद ही पूरा भोजन करें. दिन में रोजा रखने के दौरान कमजोरी महसूस होने पर तुरंत लेट कर आराम करना चाहिये.
-इनपुट भाषा