अगर संपूर्ण सेहत की बात करें तो अच्छे दांतों से ज्यादा जरूरी मुंह का निरोग होना है. यह हमारी समूची सेहत और अच्छी, सुखदायी जिंदगी के लिए बेहद जरूरी है. इसका मतलब है कि दांत और मसूड़ों का दर्द, मुंह और गले का कैंसर, मुंह में छाले, सूखे होंठ और दूसरी बीमारियों से दूर रहना. ये बीमारियां ओरल, डेंटल और क्रैनियोफेशियल टिश्यूज को प्रभावित करती हैं जिसे मिलाकर चिकित्सकीय भाषा में क्रैनियोफेशियल कॉम्प्लेक्स कहा जाता है.
इस क्रैनियोफेशियल कॉम्प्लेक्स का ऐसा महत्व है कि यही हमें बोलने, हंसने, स्पर्श करने, चुंबन करने, सूंघने, स्वाद लेने, गटकने और दर्द में कराहने की भी वजह बनता है. लेकिन इसके महत्व को अब भी पूरी तरह से पहचाना नहीं गया है. भारत में तेजी से औद्योगिक देशों की तरह लोगों के दांतों में गड्ढों के मामले बढ़ते जा रहे हैं. समूचे दांत गंवा देने के मामले भी बढ़ रहे हैं. 65 से 75 वर्ष के आयुवर्ग में हर पांच में एक व्यक्ति के पूरे दांत बदलने के मामले सामने आ रहे हैं. यह स्थिति कुछ हद तक ब्रिटेन या श्रीलंका से बेहतर है जहां क्रमशः 46 और 37 प्रतिशत लोगों को पूरे दांत बदलने की जरूरत पड़ती है यानी उन देशों में ऐसे मामले भारत के मुकाबले करीब दोगुने हैं.

दरअसल शहरों में खान-पान में बड़ा बदलाव आया है. दांतों में गड्ढे और मसूड़ों की बीमारियों का सबसे बड़ा दोषी जंक फूड है. इसके अलावा भोजन में बढ़ती चीनी की मात्रा भी बच्चों और युवाओं में दांत और मसूड़ों की बीमारियों का कारण बन रही है. इसके हानिकर नतीजे डायबिटीज और हृदय रोग के रूप में देखे जा रहे हैं. ये बीमारियां पिछले दो दशक में तेजी से बढ़ी हैं. भारत में 1995 में डायबिटीज के करीब 1.94 करोड़ रोगी होने का अनुमान लगाया गया था. 2025 तक तिगुनी वृद्धि के साथ इनकी संख्या 5.72 करोड़ तक पहुंच सकती है.
वैसे लाइफस्टाइल में सामान्य बदलाव से ही मुंह की सेहत में सुधार लाया जा सकता है. दिन में दो बार ब्रश कीजिए, भोजन के बाद कुल्ला करने, गले और मुंह को पानी से धोने से ही मुंह की काफी समस्याएं घट जाती हैं. हर छह माह में डेंटिस्ट के पास जाने से दांतों के शुरुआती गड्ढे और मसूड़ों की समस्याएं सामान्य तरीकों से ही मिट जाती हैं. शिशुओं में सामान्य दांत की समस्याएं बोतल से दूध पिलाने की वजह से होती हैं क्योंकि दूध में चीनी की अधिक मात्रा मिलाकर पिलाई जाती है.
हालांकि दांतों की देख-रेख महज दांत के गड्ढों और मसूड़ों की समस्याओं तक ही सीमित नहीं है. आधुनिक शहरी डेंटिस्ट्री में साइंटिफिक मेडिकल टेक्नीक्स और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है. मतलब यह कि लोग दंत चिकित्सकों के पास दर्द या किसी परेशानी की वजह से ही नहीं जाते, बल्कि दांतों का रंग-ढंग बदलने के लिए भी जाते हैं.
सर्जरी और मेडिकल से जुड़े अन्य तरीकों से अच्छे दिखने की लालसा तेजी से बढ़ रही है. सुंदर दिखने के लिए पहुंचने वाले लोगों की बढ़ती संख्या का सकारात्मक पक्ष यह है कि पिछले कुछ साल में ऐसे इलाज की कीमत में भी काफी कमी आई है. अब यह भी माना जाने लगा है कि कॉस्मेटिक डेंटिस्ट्री साइंस से ज्यादा कला है.
आखिर साइंस की सीमा है लेकिन कलाकारी की कोई सीमा नहीं होती. इससे लोगों की मांग भी बढ़ी है और डेंटिस्ट इलाज भी कर रहे हैं, और सामने वाले की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश भी कर रहे हैं. ये सभी इलाज प्रमाणित और किफायती हैं. इसलिए जाइए और अपनी मुस्कुराहट लौटा लाइए.