एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन में आ रही ब्लड क्लॉटिंग की शिकायतों के बाद कई देशों में इसकी जांच की जा रही है. गौर करने वाली बात ये है कि पुणे स्थित सीरम इंस्टिट्यूट इस वैक्सीन का सबसे बड़ा मैनुफैक्चरर है, जिसकी डोज़ भारत में भी लोगों को लगातार दी जा रही हैं. इसके मद्देनजर कंपनी के सीईओ अदार पूनावाला ने इंडिया टुडे को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में वैक्सीन के साइड इफेक्ट और इसे लेकर उठ रहे तमाम सवालों के जवाब देने की कोशिश की है.
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बहुत से लोग वैक्सीन लगने के बाद भी कोरोना पॉजिटिव हुए हैं. इसे लेकर अदार पूनावाला ने कहा- 'मैं इसे इसलिए कोविड शील्ड कहता हूं क्योंकि ये एक तरह की शील्ड है जो आपको बीमारी होने से तो नहीं बचाएगा, लेकिन इसकी वजह से आप मरने नहीं वाले हैं. ये आपको गंभीर बीमारी से बचाती है और 95% केसेस में यहां तक कि एक डोज लेने के बाद भी आपको हॉस्पिटल जाने से बचाएगी. जैसे बुलेट प्रूफ जैकेट में होता है, जब आपको गोली लगती है तो आप बुलेट प्रूफ जैकेट की वजह से आप मरते नहीं है लेकिन आपको थोड़ा बहुत डैमेज होता है. जनवरी से अब तक हम करीब 4 करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन की एक डोज दे चुके हैं, अब हमें ये देखना होगा कि क्या वो अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं.'
वैक्सीन के ऑरीजिनल आइडिया पर अदार पूनावाला ने कहा, 'मैंने या किसी और वैक्सीन कंपनी ने आजतक ये दावा नहीं किया कि वैक्सीन आपको बीमारी होने ही नहीं देगी. हो सकता है लोगों के बीच इस तरह की धारणा रही हो. आप आज और अन्य वैक्सीन को भी देखें तो बहुत कम वैक्सीन ऐसी हैं जो आपको बीमारी होने से या उसके संक्रमण से बचाएं बल्कि ये आपकी सुरक्षा करती हैं. डब्लयूएचओ का भी यही मत है कि आप सही रहें और इसलिए सबका वैक्सीनेशन जरूरी है. बीमारी से बचाने का दावा कभी हमारा या साइंटिफिक कम्युनिटी से किसी का भी गोल पोस्ट नहीं रहा होगा. आज कई दवाएं भी ऐसी हैं जो एक समय काम करती थीं लेकिन अब नहीं करती. आज की तारीख में मनुष्य द्वारा बनाया ऐसा कुछ भी नहीं है जो 100% हो. ये कई बार काम करता है लेकिन हमेशा नहीं.'
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एस्ट्राजेनेका के वैक्सीन को लेकर यूरोप में आ रही क्लॉटिंग की शिकायतों पर बोलते हुए अदार पूनावाला ने कहा, इसके क्लीनिकल ट्रायल के टाइम से ही इसके प्रभाव और न्यूरोलॉजिकल असर को लेकर सवाल खड़े होते रहे और अब ये ब्लड क्लॉटिंग का मामला सामने है. लेकिन हमारा शुरुआत से कहना रहा है कि नियामकों और वैक्सीन के जांचकर्ताओं को मामले की जांच पूरी करने दिया जाए और उसके बाद उन्हें एक लॉजिकल कन्क्लूजन पर पहुंचने दिया जाए. ना कि मीडिया में हो रही बहस या कंपनी के दावे पर बात की जाए. भारत में स्वास्थ्य मंत्रालय, विश्व स्वास्थ्य संगठन, ईएमईए और अन्य देशों ने कहा कि ये वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है. रही बात इस ब्लड क्लॉटिंग के मामले की तो मैं अभी इस पर कोई बयान नहीं दूंगा क्योंकि अगले हफ्ते इसकी पूरी रिपोर्ट आ सकती है. हमें उसका इंतजार करना चाहिए.'
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अदार पूनावाला ने कहा, वैक्सीन के विपरीत प्रभावों को लेकर एक बात हमेशा देखी गई है कि इसका कोई और कारण भी होता है. जिस उम्र के लोगों को वैक्सीन दी गई है उसमें ब्लड क्लॉटिंग होना सामान्य बात है. इसलिए हमें यह बात देखनी होगी कि यूरोप के देशों में वैक्सीन पाने वाले के बीच क्या अचानक से ब्लड क्लॉटिंग के मामले बढे़ हैं. उसके बाद हम इसका लिंक वैक्सीन से होने वाले साइड इफेक्ट के तौर पर जोड़ सकते हैं. जहां तक भारत की बात है यहां हमें वैक्सीन की वजह से ब्लड क्लॉटिंग को लेकर कोई रिपोर्ट नहीं मिली है.
उन्होंने कहा, भारत में हमने पाया है कि जिन लोगों को कोविड हुआ और वो अस्पताल में भर्ती हुए उन्हें कोविडशील्ड वैक्सीन दिया गया और इसमें 2 या 3% नहीं बल्कि 90% से अधिक लोगों पर इसकी एफिकेसी देखी गई, वो भी सिर्फ एक डोज से. यह स्कॉटलैंड के उस अध्ययन को मान्यता देता है जिसमें 4 लाख से अधिक लोगों के बीच ये पता लगाया गया कि कोविडशील्ड की एक ही खुराक कितनी असरदार है.
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वैक्सीन को लेकर लोगों में बढ़ती चिंता पर अदार पूनावाला ने कहा, 'मैं मानता हूं कि लोगों की चिंताएं बिलकुल जायज हैं, क्योंकि अगर लोग इन खबरों के बारे में पढ़ रहे हैं तो उन्हें नहीं पता कि क्या हो रहा है. लेकिन जहां तक एस्ट्राजेनेका ऑक्सफोर्ड के वैक्सीन पर बैन लगाने की बात है तो जर्मनी समेत अन्य सभी देशों ने उसके वैक्सीन को वापस मंजूरी दे दी है. तो ये वैक्सीन पर कोई बैन नहीं है बल्कि उसकी अस्थायी समीक्षा है. नियामकों के लिए ये वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर जांच का एक तरीका है जो सही भी है. यहां तक कि ईएमईए, डब्ल्यूएचओ और यूकेएमएचआरए ने भी वैक्सीन पर बैन नहीं लगाया है और ना ही इसे असुरक्षित बताया है. ये सब गलत नहीं हो सकते. भारत में भी सीरम ने सरकार को वैक्सीन की करोड़ों खुराक की आपूर्ति की है और करीब 7 करोड़ खुराकें लोगों की दी जा चुकी हैं और हमने इस तरह के किसी भी मामले को भारत में नहीं देखा है. लेकिन ये अच्छा है कि देश लोगों की सुरक्षा के लिए रिव्यू कर रहे हैं और फिर बाद में दोबारा वैक्सीन के इमरजेंसी यूज को मंजूरी दे रहे हैं.'
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कई लोगों ने वैक्सीन के बाद ऑटो इम्यून डिसऑर्डर की शिकायत की है. इस पर अदार पूनावाला ने कहा, 'पहली बात तो ये कि इस सवाल का जवाब एक डॉक्टर बेहतर दे सकता है जिसके सामने इस तरह का मामला सामने आता है. लेकिन मैं ये कह सकता हैं कि कोई भी वैक्सीन पारंपरिक तौर पर इस तरह के लोगों पर उतना असर नहीं करती जिनका इम्यून सिस्टम एंटीबॉडीज नहीं बनाता ना तो किसी वैक्सीन के लिए प्रतिक्रिया करता है, ये ठीक वैसा ही है जैसे उनका शरीर किसी बीमारी के लिए प्रतिक्रिया नहीं करता. जिन लोगों को इस तरह का डिसऑर्डर होता है और जो लोग कैंसर या किसी अन्य तरह की दवा पर होते हैं जो उनके इम्यून सिस्टम को सप्रेस करता है, उनके मामले में यह वैक्सीन असर कर भी सकती है और नहीं भी लेकिन मैं इतना कह सकता हूं कि उनके इस डिसऑर्डर को नहीं बढ़ाता.'
वयस्कों को वैक्सीन देने पर ब्रिटिश और यूरोपियन रेगुलेटर्स दोनों ने ही चिंता जताई है. इस पर अदार पूनावाला ने कहा, 'किसी भी सरकार या वैक्सीन बनाने वाली कंपनी के लिए इस सवाल का जवाब देना मुश्किल है. पहली बात तो ये है कि भारतीय वैक्सीन इंडस्ट्री पर ग्लोबल सप्लाई की बहुत निर्भरता है. दूसरा इस बीच भारत में कोविड के मामले बढ़ रहे हैं. ऐसे में हमारी प्राथमिकता भारत की जरूरतों को पूरा करने पर है और अपनी सारी खेप भारत को दे रहे हैं. इसके लिए हमें कई वैश्विक नेताओं की नाराजगी भी झेलनी पड़ी है. हमें अपने इंटरनेशनल कॉन्ट्रैक्ट को भी साइड करना पड़ा है. लेकिन हमारे लिए देश सबसे पहले हैं और ये एक अस्थायी स्थिति है.'
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'दूसरा सवाल है कि क्या सबको ये वैक्सीन उपलब्ध करा देनी चाहिए या फ्री चैनल से ये उपलब्ध होनी चाहिए तो ये एक ट्रिकी सवाल है. हमारे पास वैक्सीन की सप्लाई शॉर्टेज है, और इस बीच हम सबके लिए वैक्सीन की उपलब्धता को खोल देंगे तो संवेदनशील लोगों पर इसका असर पड़ेगा. स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने भी बयान दिया है कि 45 साल से कम उम्र के लोगों को वैक्सीन की उपलब्धता सुनिश्चित कराना आसान निर्णय नहीं है. अब सवाल ये है कि जब दूसरे देश कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं तो हमारी आबादी की तुलना किसी और देश से नहीं की जा सकती है. ऐसे में कॉरपोरेट, प्राइवेट मार्केट के लिए वैक्सीन खोल देने की बात अगर की जाए तो एक कंपनी के मालिक के तौर पर मैं हां कहूंगा लेकिन सरकार और गरीब जनता के नजरिए से देखा जाए तो ये सही नहीं होगा क्योंकि सरकार को लोअर, मिडिल और अपर क्लास की जरूरतों के बीच संतुलन बनाना है,'
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कोविड के नए म्यूटेंट्स और वैरिएंट्स को लेकर कोविडशील्ड की एफिकेसी पर पूनावाला ने कहा, 'इस मामले में अध्ययन जारी है. खासकर के यूके वैरिएंट के बारे में जो अब हमारे देश में फैलने लगा है. हम उन लोगों का डेटा कलेक्ट कर रहे हैं जो कोविडशील्ड की एक या दो डोज ले चुके हैं और यूके वैरिएंट के संपर्क मे आए हैं. हम एक महीने बाद इसका सही उत्तर दे पाएंगे क्योंकि डेटा का अध्ययन चल रहा है. उम्मीद है कि जो लोग कोविडशील्ड ले चुके हैं, उन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ेगा. कोई भी वैक्सीन अभी ऐसी नहीं है जो कोविड-19 होने से रोके, कुछ मामलों में ये वैक्सीन ऐसा कर सकती हैं.
उन्होंने कहा, फाइजर, मॉडर्ना या कोविडशील्ड वैक्सीन के मामले में 95% मामलों में ऐसा है कि आपको बीमारी होगी लेकिन आपको अस्पताल नहीं जाना होगा. यही बात हम यूके वैरिएंट और साउथ अफ्रीकल वैरिएंट के साथ भी देख रहे हैं. मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि ऐसा एक भी मामला सामने नहीं आया है जहां किसी ने वैक्सीन ली हो और उसे यूके वैरिएंट की बीमारी हुई हो और फिर उसे अस्पताल जाना पड़ा हो. बाकी और पूरे अध्ययन के लिए हमें एक और महीने का वेट करना होगा.'
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वैक्सीन में एज फैक्टर कितना मायने रखता है. इस पर उन्होंने कहा, 'हम 18 साल से नीचे 12 साल और उससे कुछ कम उम्र तक के बच्चों को लेकर इसके ट्रायल के बारे में सोच रहे हैं लेकिन हमने इसके लिए अभी तक एप्लाई नहीं किया है. यूके में यह शुरू हुआ है. भारत में हमें इसे अधिक सुरक्षा के साथ संभवतया करना होगा. कोविडशील्ड के लिए मेरा अनुमान है कि कम से कम छह महीने का समय लगेगा जिससे पता चल सके कि ये 12 या 10 साल तक के बच्चों के लिए सेफ है. लेकिन हमें ये ध्यान रखना होगा कि बच्चों का इम्यून सिस्टम बड़ों से अलग होता है. ऐसे में हम एक प्रतिशत भी किसी बच्चे की जान खतरे में डालने का चांस नहीं ले सकते. इसके लिए हमें उनको दी जाने वाली डोज पर और उसकी मात्रा का भी ध्यान रखना होगा.'
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दो डोज के बाद क्या तीसरे डोज की भी जरूरत होगी? इस पर अदार पूनावाला ने कहा, 'कुछ वैक्सीन कंपनियों ने तीसरे डोज की बात करना शुरू किया है. हम भी इस पर विचार कर रहे हैं. अभी तक हमारे पास जो डेटा है वो दिखाता है कि दो डोज के बाद भी आप कम से कम 7 से 8 महीने तक का प्रोटेक्शन आपको मिलता है. 8 महीने के बाद क्या होता है ये हमें पता नहीं क्योंकि अभी वैक्सीनेशन को उतना टाइम नहीं हुआ है.'
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