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लाइफस्टाइल न्यूज़

Corona vaccine: क्या होती है वैक्सीन, वायरस पर अटैक के लिए इम्यून को कैसे करती है तैयार?

वायरस पर अटैक के लिए इम्यून को कैसे तैयार करती है वैक्सीन?
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वैक्सीन बॉडी के इम्यून सिस्टम को रोगों से लड़ाई के लिए तैयार करती है. इसे इम्यून सिस्टम के लिए एक ट्रेनिंग कोर्स कहा जा सकता है. कई बार वैक्सीन हमारे इम्यून सिस्टम की नैचुरल प्रक्रिया को नुकसान भी पहुंचा सकती है. हालांकि, आमतौर पर वैक्सीनेशन या टीकाकरण कराने वाला व्यक्ति बीमार नहीं पड़ता है. आइए जानते हैं कि आखिर वैक्सीन क्या है और यह कैसे काम करती है.

Photo Credit: Reuters

वैक्सीन क्या है
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वैक्सीन क्या है- हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम प्राकृतिक रूप से कीटाणुओं से हमारे शरीर की रक्षा करता है. जब रोगाणु शरीर पर हमला करता है तो शरीर का इम्यून सिस्टम इससे लड़ने के लिए विशेष कोशिकाओं को भेजता है. कभी-कभी इम्यून सिस्टम स्वाभाविक रूप से इतना मजबूत नहीं होता है कि रोगाणु को खत्म कर शरीर को बीमारी से बचा सके. इम्यून सिस्टम को मजबूत करने का एक तरीका है और वो है वैक्सीन.

Photo Credit: Getty Images

कैसे काम करती है वैक्सीन
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कैसे काम करती है वैक्सीन- वैक्सीन किसी रोगाणु का कमजोर या निष्क्रिय रूप ही होती है. वैक्सीन से इम्यून सिस्टम में रोगाणु की मेमोरी बन जाती है, यानी इम्यून उस रोगाणु को अच्छी तरह समझ लेता है और उससे लड़ना भी सीख लेता है. जब असल में उस रोगाणु का संक्रमण होता है तो इम्यून सिस्टम तुरंत सक्रिय हो जाता है. इम्यून सिस्टम वायरस, जीवाणु या अन्य सूक्ष्म जीवों जैसे रोगजनक से सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो चुका होता है.

Photo Credit: Reuters

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गंभीर बीमारियों से बचाव किया
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गंभीर बीमारियों से बचाव किया- वैक्सीन आने से पहले बच्चे अक्सर खसरा, पोलियो, चेचक और डिप्थीरिया जैसी घातक बीमारियों के शिकार हो जाते थे. टिटनेस के बैक्टीरिया से संक्रमित होने पर एक साधारण खरोंच भी जानलेवा साबित होती थी. हालांकि, वैक्सीन ने अब इन खतरों को दूर कर दिया है. चेचक और पोलियो दुनिया से लगभग पूरी तरह से चले गए हैं. खसरा और डिप्थीरिया के मामले भी गिने-चुने बचे हैं. दुनिया भर में टिटनेस के संक्रमण भी काफी कम हो गए हैं.

Photo Credit: Getty Images

हर्ड इम्यूनिटी के लिए जरूरी वैक्सीन
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हर्ड इम्यूनिटी के लिए जरूरी वैक्सीन- वैक्सीनेशन उन लोगों की भी रक्षा करने में भी मदद करता है जिन्हें वैक्सीन नहीं लगाई जा सकती है, जैसे कि नवजात शिशु, अत्यधिक बीमार या बुजुर्ग. जब समुदाय के पर्याप्त लोगों को किसी विशेष संक्रामक बीमारी की वैक्सीन दी जाती है, तो उस बीमारी की एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने की संभावना बहुत कम हो जाती है. इस प्रकार की सामुदायिक सुरक्षा को डॉक्टर 'हर्ड इम्यूनिटी' कहते हैं.

एंटीबॉडीज प्रोडक्शन
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चूंकि वैक्सीन की पूरी प्रक्रिया इम्यून सिस्टम पर ही आधारित है, ऐसे में ये भी जानना जरूरी है कि किसी रोगाणु के हमले की स्थिति में स्वाभाविक रूप से हमारा इम्यून सिस्टम कैसे काम करता है. दरअसल, जब बैक्टीरिया या वायरस जैसे रोगाणु शरीर पर हमला करते हैं तो लिम्फोसाइट्स नाम की प्रतिरक्षा कोशिकाएं एंटीबॉडीज का निर्माण करती हैं, जो प्रोटीन अणु होते हैं. ये एंटीबॉडीज शरीर पर हमला करने वाले इंफेक्शन से उसे बचाती हैं, जिसे एंटीजन कहा जाता है. 'सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन' (CDC) के मुताबिक, एक स्वस्थ इंसान पूरे दिन में लाखों एंटीबॉडी प्रोड्यूस कर सकता है. ये एंटीबॉडी इंफेक्शन के साथ इतनी तेजी से लड़ती हैं कि कई बार इंसान को ये भी नहीं पता चल पाता कि वो किसी इंफेक्शन के संपर्क में था भी या नहीं.

Photo Credit: Reuters

एंटीजन के दो मुख्य कार्य
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वाई आकार के एंटीबॉडी प्रोटीन विशेष एंटीजन पर काम करते हैं. जब इन्हें ऐसे रोगाणु का पता चलता है जिनका सामना यह पहले भी कर चुके हैं, एंटीबॉडी इनसे निपटने का काम शुरू करता है. इनके दो काम हैं. एक तो एंटीजन को रोककर रखना ताकि रोगाणु को कमजोर किया जा सके और वो शरीर को कम से कम नुकसान पहुंचा सके. दूसरा अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं को संक्रमण का संकेत देना. यह अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाएं कीटाणुओं को नष्ट कर उन्हें शरीर से निकालती हैं. जब शरीर किसी नए रोगाणु का सामना करता है तो इस पूरी प्रक्रिया में कई दिन लग जाते हैं.

Photo Credit: Getty Images

एंटीजन की पहचान कर लेता है इम्यून
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एंटीजन की पहचान कर लेता है इम्यून- शरीर से संक्रमण दूर हो जाने के बाद भी इम्यून सिस्टम उस रोगाणु के एंटीजन को अपनी स्मृति में बिठा लेता है जिन्हें B कोशिकाएं भी कहा जाता है. यह स्मृति कोशिकाएं एंटीबॉडी को उस विशिष्ट रोगाणु के एंटीजन को पहचानने और उसे रोककर रखने का काम करती हैं. इस तरह अगर वही रोगाणु फिर से शरीर में प्रवेश करते हैं तो यह नया एंटीबॉडी इसे तुरंत पहचान लेता है. इससे पहले कि यह रोगाणु शरीर में संक्रमण को फैलाए, एंटीबॉडी इम्यून सिस्टम को शरीर से रोगाणु को नष्ट करने का संकेत देता है.

क्यों दूसरी बार इंफेक्शन का खतरा कम
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क्यों दूसरी बार इंफेक्शन का खतरा कम- बीमारियों के खिलाफ इस तरह की सुरक्षा को प्रतिरक्षा यानी इम्यूनिटी कहा जाता है. यही वजह है कि अगर किसी बच्चे को एक बार चेचक हो चुका है तो उसे इस तरह की बीमारी दोबारा नहीं होती. संक्रमण के जरिए भी शरीर में इम्यूनिटी बनती है. उदाहरण के तौर पर, जो व्यक्ति इबोला से संक्रमित होने के बाद ठीक हो चुका हो, उसे फिर यही बीमारी दोबारा नहीं होगी. कोरोना वायरस के दोबारा संक्रमण के कई मामले सामने आए हैं, हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि दूसरी बार संक्रमण पहली बार जितना खतरनाक नहीं है.

Photo Credit: Reuters

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दुनिया भर में कई खतरनाक बीमारियों को वैक्सीन की मदद से नियंत्रण में लाया गया है. हालांकि, अब तक कई बीमारियां ऐसी हैं जिनकी वैक्सीन खोजने में वैज्ञानिक असफल रहे हैं. एचआईवी की वैक्सीन अब तक नहीं बन सकी है.

Photo Credit: Reuters

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