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लाइफस्टाइल न्यूज़

भारत से भी ज्यादा भयावह थी ब्रिटेन में कोरोना की दूसरी लहर, इन तरीकों से रोकी तबाही

corona second wave
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भारत में कोरोना से हर तरफ हाहाकार मचा हुआ है. इस समय भारत की ठीक वही स्थिति है जैसे कि पिछले साल दिसंबर में UK की थी. पहले कोरोना के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी और इसके एक सप्ताह बाद अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या बढ़ने लगी. फिर दो सप्ताह बाद कोरोना से मरने वालों को आंकड़ा तेजी से बढ़ने लगा. कोरोना से मची इस तबाही के बीच लंदन में गाईज़ और सेंट थॉमस अस्पताल के एमडी डॉक्टर निशित सूद ने आजतक से खास बातचीत की. डॉक्टर सूद ने बताया है कि किस तरह ब्रिटेन कोरोना पर काफी हद तक काबू पा सका है और भारत को भी उससे कुछ मामलों में सबक लेने की जरूरत है.
 

99 फीसद मरीज अपने आप ठीक होते हैं
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99 फीसद मरीज अपने आप ठीक होते हैं- डॉक्टर सूद ने बताया कि कोरोना  के 99 फीसद मरीज अपने आप ठीक हो जा रहे हैं. आपको बस कुछ चीजों का ध्यान रखने की जरूरत है. ऑक्सीजन लेवल पर नजर बनाए रखें और सुनिश्चित रखें कि ये 93 से कम ना हो. बुखार और बदन दर्द के लिए पेरासिटामोल रखें और होम आइसोलेशन ऐसा रखें कि आप दूसरों को संक्रमित ना कर सकें. इन 99 फीसद लोगों को प्लाज्मा, रेमडेसिविर, आइवरमेक्टिन, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, एंटीबायोटिक्स, स्टेरॉयड, ब्लड थिनर या टोक्लीजुमाब देने की कोई जरूरत नहीं है. अगर मरीज का ऑक्सीजन स्तर 93% से ऊपर है तो उसे अस्पताल में भर्ती होने की भी आवश्यकता नहीं है.

1 फीसद लोगों में जानलेवा कोरोना
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गंभीर मरीजों को मिले इलाज- डॉक्टर सूद ने कहा कि कोरोना एक ऐसी महामारी है जो एक ही समय में बहुत ज्यादा लोगों को अपने चपेट में ले रही है. हालांकि ज्यादातर लोगों के बीमार होने के बावजूद सिर्फ 1% लोगों में ये जानलेवा होता है. हमारे सभी चिकित्सा संसाधनों (अस्पताल के बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर आदि) को इन गंभीर रूप से बीमार 1% लोगों के लिए बचाया जाना चाहिए, न कि 99% हल्के लक्षण वाले उन मरीजों के लिए जो अपने पैसे, संपर्क और रुतबे के दम पर इन्हें हासिल कर रहे हैं.
 

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ऑक्सीजन को लेकर हड़बड़ी ना दिखाएं-
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ऑक्सीजन को लेकर हड़बड़ी ना दिखाएं- डॉक्टर सूद ने कहा, 'ब्रिटेन के कई अस्पतालों को ऑक्सीजन की कमी से मरीजों को भर्ती करने से रोकना पड़ा था. हमें सिर्फ पर्याप्त ऑक्सीजन की जरूरत होती है जो 93-94 से ऊपर होना चाहिए. अक्सर लोग ऑक्सीजन के स्तर को ज्यादा से ज्यादा रखना चाहते हैं. हमें इस आदत से बचना चाहिए.'

वैक्सीन का असर
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वैक्सीन का असर- डॉक्टर सूद ने कहा, 'वैक्सीन से पहले लंदन में हमारे सभी आईसीयू और थिएटर भरे हुए थे. सभी कार्डियक एचडीयू वगैरह भी कोरोना के नली लगे मरीजों से भरे हुए थे. हमें उन्हें ICU की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए स्कॉटलैंड और ब्रिस्टल हेलीकॉप्टर से भेजना पड़ रहा था. वैक्सीन लगने के बाद हमने शायद ही कोई कोरोना का मरीज अस्पताल में भर्ती किया हो. ICU में तो कोई भी मरीज नहीं है. हालांकि ये भी हो सकता है कि ऐसा सख्त लॉकडाउन की वजह से हुआ हो.

वैक्सीन का असर-
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अस्पताल के सख्त नियम- डॉक्टर सूद ने बाताया कि ब्रिटेन में हर उस मरीज को अस्पताल में बेड मिला जिसे जरूरत थी और हर उस मरीज को ICU में भर्ती किया गया जिसकी स्थिति वाकई इतनी गंभीर थी. ये सिर्फ वहां के अस्पतालों के सख्त नियमों की वजह से हो सका. वहां के अस्पतालों के नियम के मुताबिक 99 फीसद कोरोना के जिन मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत नहीं थी उन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया. डॉक्टर सूद कहते हैं कि भारत में भी इसे सख्ती से लागू करने की जरूरत है. 

स्टेरॉयड और ब्लड थिनर्स ज्यादा कारगर-
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स्टेरॉयड और ब्लड थिनर्स ज्यादा कारगर- डॉक्टर सूद के अनुसार 1% लोग जो कोरोना से गंभीर रूप से बीमार हैं, उन लोगों में सिर्फ स्टेरॉयड और ब्लड थिनर्स ही ज्यादा काम आ रहे हैं. टोक्लीजुमाब भी सिर्फ 4 फीसद कारगर पाई जा रही है और अगर उपलब्ध हो तो इसे देना चाहिए. रेमडेसिविर का भी बहुत ही कम लाभ है लेकिन उपलब्ध हो तो ये दी जानी चाहिए. हालांकि अगर ये दोनों दवाएं ना भी दी गईं तो मरीज की सेहत पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ेगा. टोक्लीजुमाब या रेमडेसिविर जीवन रक्षक दवाएं नहीं हैं. 
 

प्लाज्मा थेरेपी कारगर नहीं
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प्लाज्मा थेरेपी कारगर नहीं- डॉक्टर सूद ने बताया कि प्लाज्मा थेरेपी पर भी बड़े पैमाने पर स्टडी की गई है और इसका कोई फायदा नहीं पाया गया है. यह निष्कर्ष प्लाज्मा दिए गए 11,000 लोगों और बिना प्लाज्मा के इलाज करा रहे 11,000 मरीजों पर की गई स्टडी से निकला है. कोरोना के मरीज को प्लाज्मा नहीं दिया जाना चाहिए. ये उपयोगी संसाधनों की बर्बादी है.

हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन असरदार नहीं
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हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन असरदार नहीं- डॉक्टर सूद का कहना है कि दुनिया के किसी भी मेडिकल ऑर्गेनाइजेशन ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन/आइवरमेक्टिन को कोरोना में खास कारगर नहीं पाया है. हालांकि इन दवाओं की कीमत बहुत कम है और इसे लेने से कोई नुकसान भी नहीं है.

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दोबारा टेस्ट कराने की जरूरत नहीं
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दोबारा टेस्ट कराने की जरूरत नहीं- डॉक्टर सूद का कहना है कि अगर कोई टेस्ट में एक बार पॉजिटिव आता है तो उसे दोबारा टेस्ट कराने की जरूरत नहीं है कि वो पॉजिटिव है या नहीं. बार-बार टेस्ट कराना टेस्टिंग संसाधनों की बर्बादी है. कोरोना के मरीज लक्षण दिखने के बाद अगर दो हफ्ते तक होम आइसोलेशन में रह चुके हैं तो उन्हें कोविड नेगेटिव ही माना जाता है. 14 दिनों के बाद वो संक्रामक नहीं रह जाते हैं.

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