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लाइफस्टाइल न्यूज़

Vaccination in India: भारत बायोटेक की वैक्सीन को लेकर क्यों है लोगों के मन में संशय?

कोवैक्सीन
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कोरोना वायरस के खिलाफ आज भारत का सबसे बड़ा वैक्सीनेशन अभियान शुरू होने वाला है. पहले चरण में हेल्थ केयर वर्कर्स को कोविशील्ड (Covishield) और कोवैक्सीन (Covaxin) दी जाएगी. हेल्थ केयर वर्कर्स और हाई रिस्क वाले समूह के लोगों के पास दोनों में से कोई एक वैक्सीन चुनने का विकल्प नहीं है.
 

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12 जनवरी को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा था कि दुनिया में कई जगहों पर एक से अधिक वैक्सीन लगाए जा रहे हैं, लेकिन वर्तमान में किसी भी देश में लोगों को वैक्सीन चुनने का विकल्प नहीं दिया गया है. 
 

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हालांकि, इमरजेंसी इस्तेमाल के तहत अमेरिका और UK में दी जा रही वैक्सीन और भारत में दी जाने वैक्सीन के सेफ्टी और एफीकेसी डेटा में बहुत अंतर है. लोगों को फाइजर, मॉडर्ना और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के तीसरे चरण के एफीकेसी डेटा की जानकारी है जबकि भारत में लोगों को भारत बायोटेक वैक्सीन के सेफ्टी और एफीकेसी डेटा जाने बिना ही वैक्सीन लेनी होगी.
 

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फाइजर और मॉडर्ना दोनों की एफीकेसी दर लगभग 95 फीसदी है, वहीं एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की प्रभावकारिता 62 फीसदी है. इसके विपरीत, भारत में सीरम इंस्टीट्यूट की एस्ट्राजेनेका के देसी संस्करण कोविशील्ड को बहुत कम वॉलंटियर्स के इम्यूनोजेनेसिटी और सेफ्टी डेटा के आधार पर मंजूरी दी गई है. 
 

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कोविशील्ड की एफीकेसी भारत में नहीं जांची गई है और इसे ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और UK में  24,000 वॉलंटियर्स पर किए गए ट्रायल के एफीकेसी डेटा के आधार पर मंजूरी दी गई है.
 

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वहीं, भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को बिना किसी एफीकेसी डेटा के मंजूरी दे दी गई है. ये मंजूरी पहले और दूसरे चरण की स्टडी में बहुत कम संख्या में शामिल प्रतिभागियों के आधार पर दी गई है. वैक्सीन की एफीकेसी सिर्फ तीसरे चरण के ट्रायल में पता चलती है और कोवैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल अभी जारी है.
 

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कोवैक्सीन को क्लिनिकल ट्रायल मोड में मंजूरी मिली है जिसे बहुत सावधानी के साथ लगाया जाएगा. इस पर कोई स्पष्टता नहीं दी गई है कि क्या कोई गंभीर साइड इफेक्ट दिखने पर मेडिकल केयर और मुआवजा दिया जाएगा या नहीं और क्या वैक्सीन के बारे में पूरी सूचना देने के बाद वैक्सीन लगवाने वाले से मंजूरी ली जाएगी.
 

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केंद्र सरकार के अनुसार, वैक्सीन साइट्स या तो कोविशिल्ड या कोवैक्सीन की लगवाने की पेशकश करेंगी ताकि लोगों एक की बजाय दूसरा वैक्सीन चुनने का विकल्प देने से बचा जा सके. चूंकि COVID-19 वैक्सीनेशन अनिवार्य नहीं है, ऐसे में जिस जगह पर सिर्फ कोवैक्सीन दी जा रही है, वहां लोग वैक्सीन ना लगवाने का भी निर्णय ले सकते हैं.

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हालांकि, इस पर भी सवाल उठ रहे हैं कि कुछ हेल्थ केयर वर्कर्स को कोवैक्सीन देना, जिसकी एफीकेसी के बारे में जानकारी नहीं है और कुछ को कोविशील्ड देना जिसकी एफीकेसी की जानकारी है, ये कहां तक सही है जबकि दोनों को संक्रमण का उतना ही खतरा है.
 

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भोपाल के ग्लोबल हेल्थ और बायोएथिक्स के शोधकर्ता अनंत भान ने 'द हिंदू' से बातचीत में कहा है, 'अगर सरकार कुछ और हफ्ते तक कोवैक्सीन के एफीकेसी डेटा का इंतजार कर लेती तो ऐसी स्थिति से बचा जा सकता था. वो कोविशील्ड के साथ वैक्सीनेशन शुरू करते और कोवैक्सीन का एफीकेसी डेटा आने के बाद इसे मंजूरी देते.'
 

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डॉक्टर भान के अनुसार, 'कोवैक्सीन देने वाली साइट्स को वैक्सीन देने से पहले व्यक्ति को सूचित करके सहमति लेनी जरूरी होगी. कुछ लोगों को निर्णय लेने में वक्त लगता है. क्या इस चीज की अनुमति दी जाएगी या फिर तुरंत वहीं निर्णय लेना होगा.' ऐसे कई सवाल हैं जो अभी भी लोगों के मन में हैं.
 

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