कोरोना के इलाज में आजकल मोनोक्लोनल एंटीबॉडी ट्रीटमेंट की काफी चर्चा हो रही है. मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी में एक ऐसी दवा का इस्तेमाल होता है जो संक्रमण से लड़ने के लिए शरीर द्वारा बनी नेचुरल एंटीबॉडी की नकल करती है. दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने एंटीबॉडी ट्रीटमेंट पर एक स्टडी की है.
एस्ट्राजेनेका ने स्टडी में कहा है कि एंटीबॉडी ट्रीटमेंट AZD7442, कोरोना वायरस को रोकने में नाकाम रहा है. ये कोरोना के संपर्क में आने वाले लोगों को संक्रमण से नहीं बचाता है.
यह इलाज वैक्सीन से बनने वाली एंटीबॉडी से अलग है. इसलिए वैक्सीन अब भी कोरोना में असरदार है.
कंपनी ने बताया कि ये स्टडी 18 साल से अधिक उम्र के लोगों पर की गई थी. इन सारे लोगों को वैक्सीन नहीं लगी थी और ये 8 दिन पहले कोरोना के मरीज के संपर्क में आए थे. कंपनी की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्लेसिबो की तुलना में एंटीबॉडी ट्रीटमेंट AZD7442 ने COVID-19 के खतरे को 33% तक कम किया. आंकड़ों के लिहाज से इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया जा सकता.
एस्ट्राजेनेका के कार्यकारी उपाध्यक्ष मेने पंगालोस ने एक बयान में कहा, 'हालांकि यह ट्रायल लक्षण वाले मामलों में कमी नहीं लाता है लेकिन हम ये देख कर प्रोत्साहित हैं कि AZD7442 से इलाज के बाद इन प्रतिभागियों को कुछ हद तक सुरक्षा मिली है.' एस्ट्राजेनेका और भी कई गंभीर बीमारी को रोकने के लिए किए जाने वाले इलाज पर स्टडी कर रही है.
रीजेनरॉन फार्मास्युटिकल्स और एली लिली एंड कंपनी ने मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी बनाई है. इसे अमेरिका में कोरोना के मरीजों के इलाज में इस्तेमाल किया जा रहा है.
यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी ने रीजेनरॉन की एंटीबॉडी थेरेपी को मंजूरी दे दी है और इसी तरह की अन्य दवाओं की समीक्षा कर रही है. AZD7442 को यूएस सरकार के सहयोग से बनाया जा रहा है.