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लाइफस्टाइल न्यूज़

Covid 19: भारत में अचानक कैसे घट गए कोरोना के मामले? वैज्ञानिकों के लिए रहस्य

कोरोना वायरस
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पिछले साल सितंबर तक भारत में कोरोना वायरस के रोजाना करीब एक लाख मामले सामने आ रहे थे. ये वो समय था जब भारत कोविड-19 की सबसे ज्यादा मार झेलने वाले अमेरिका से आगे निकलने की राह पर था. मरीजों से अस्पताल भरे पड़े थे. भारतीय अर्थव्यवस्था अभूतपूर्व मंदी में तब्दील हो चुकी थी. हालांकि, अगले चार महीनों में भारत में कोरोना मरीजों की संख्या में अचानक भारी गिरावट आई. अब भारत में कोरोना संक्रमण के प्रतिदिन 10,000 के करीब मामले सामने आ रहे हैं.

Photo: Reuters

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पिछले महीने स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि 26 जनवरी को भारत में कोरोना के सिर्फ 9,100 नए मामले दर्ज किए गए थे. ये पिछले आठ महीने में भारत में मरीजों की संख्या का सबसे कम आंकड़ा था. इसके अलावा, 7 फरवरी को भी सिर्फ 11,831 मामले दर्ज किए गए. जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के हेल्थ इकोनॉमिस्ट जिश्नू दास कहते हैं, 'भारत में न तो टेस्टिंग कम हुई और न ही खतरे को कम करके आंका गया, फिर तेजी से फैल रही ये बीमारी अचानक कैसे गायब हो गई! अस्पताल में भी ICU का इस्तेमाल कम हो गया. हर एक संकेत यही बताता है कि भारत में मरीजों की संख्या अब कम है.'

Photo: Reuters

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वैज्ञानिकों के लिए भी ये एक रहस्य बना हुआ है. वे भारत में कोरोना पीड़ितों की संख्या में अचानक आई गिरावट की जांच कर रहे हैं. वैज्ञानिक ये समझने का प्रयास कर रहे हैं कि भारतीय क्या सही कर रहे हैं और जो देश अभी भी कोरोना वायरस की चपेट में हैं, उन्हें क्या करने की जरूरत है.

Photo: PTI

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ये सवाल बहुत वाजिब है. यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग में पब्लिक हेल्थ रिसर्चर जेनेवी फर्नांडिस कहती हैं, 'जाहिर है कि इसके पीछे सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय काम कर रहे हैं. टेस्टिंग बढ़ाई गई है. लोग हालात बिगड़ने से पहले अस्पताल जा रहे हैं, जिससे मौत के आंकड़ों में कमी आई है. लेकिन ये अभी तक एक रहस्य ही बना हुआ है.' शोधकर्ता भारत में मास्क जरूरी और सार्वजनिक अनुपालनों की जांच कर रहे हैं. साथ ही साथ, यहां की जलवायु, डेमोग्राफिक और आमतौर पर देश में फैलने वाली बीमारियों के पैटर्न को भी समझने की कोशिश की जा रही है.

Photo: Reuters

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मास्क पहनना जरूरी- भारत एशिया, अफ्रिका और दक्षिण अमेरिका के उन तमाम देशों में से एक है, जहां सार्वजनिक स्थलों पर मास्क पहनना जरूरी हो गया है. कोरोना महामारी के शुरुआती चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद मास्क पहने नजर आए थे. उनका संदेश बिल्कुल स्पष्ट था. मुंबई जैसे बड़े शहरों की नगरपालिकाओं में पुलिस प्रशासन ने मास्क न पहनने वालों पर 200 रुपए का जुर्माना लगाना शुरू कर दिया था.

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घर से बाहर निकल रहे लोग, जॉगर्स, बीच पर टहलने वाले या ओपन एयर रिक्शा में बैठे पैसेंजर सभी पर ये जुर्माना समान रूप से लागू था. मुंबई की मूल निवासी फर्नांडिस ने कहा, 'यहां नियम तोड़ने वालों पर 200 रुपए का चालान होता था. नियम तोड़ने वाले को पहनने के लिए एक मास्क भी दिया जाता था. नियम तोड़ने में हम भारतीयों का इतिहास रहा है. आप देखिए, यहां लोग हर समय ट्रैफिक रूल्स तोड़ते हैं.'

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मुंबई में नए साल की शाम को मास्क न पहनने वालों का चालान बनाकर अधिकारियों ने करीब 27 लाख रुपए वसूल किए थे. चालान और मास्क ने वाकई में अपना असर दिखाया है. जुलाई में प्रकाशित एक सर्वे में करीब 95 फीसद लोगों ने कहा था कि आखिरी बार घर से बाहर निकलते वक्त उन्होंने मास्क पहना था. 'नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च' ने ये अध्ययन फोन के माध्यम से कंडक्ट किया था. 

फ़ोन कॉल पर भी सरकार की ओर से जारी संदेश सुनाई देता था. इसमें 'हैंड वॉश' और 'मास्क जरूरी' जैसी जरूरी बातों को लेकर चेताया जा रहा था. हालांकि, मास्क जरूरी और हैंड वॉश के उस संदेश की जगह अब वैक्सीनेशन लेने की अपील की जा रही है.

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गर्मी और नमी- कोरोना पीड़ितों की संख्या में गिरावट के लिए जलवायु भी सहायक हो सकती है. देश के ज्यादातर हिस्से गर्म और नमी वाले हैं. इस बात के साक्ष्य मौजूद हैं कि भारत की जलवायु रेस्पिरेटरी वायरस के विस्तार को रोकने में मददगार है. हालांकि, कुछ बातें इसके विपरीत भी हैं. Plos one जर्नल में प्रकाशित सैकड़ों साइटंफिक आर्टिकल्स की एक समीक्षा दर्शाती है कि गर्म और नमी वाली जगहों पर कोविड-19 का असर कम होता है. गर्म तापमान और आर्द्रता मिलकर कोरोना वायरस के प्रभाव को कम करते हैं.

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पेंसिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर इन्फेक्शियस डिसीज डायनामिक्स की डायरेक्टर एलिजाबेथ मैक्ग्रॉ ने पिछले साल एनपीआर को बताया था कि ठंडी और शुष्क जगहों पर वायरस के ड्रॉपलेट हवा में ज्यादा देर तक एक्टिव रहते हैं. गर्म हवा और नमी वाली जगह पर ड्रॉपलेट्स तेजी से नीचे आ जाते हैं, जिससे ट्रांसमिशन का खतरा कम हो जाता है.

Photo: Getty Images

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हालांकि दूसरी तरफ, पिछले साल जुलाई में 'दि लैंसिट' में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, अत्यधिक गर्मी लोगों को एयरकंडीशनर रूम्स में रहने पर मजबूर करती है. इससे भी वायरस फैलने का खतरा बढ़ता है. 'नैचुरल रिसोर्सेज डिफेंस काउंसिल' ने चेतावनी देते हुए कहा था कि बहुत ज्यादा गर्मी से लोगों में डीहाइड्रेशन और डायरिया की समस्या होगी और वे अस्पतालों की तरफ रुख करेंगे. जबकि अस्पताल पहले कोविड-19 का इलाज करा रहे मरीजों से भरे रहेंगे. एक बंद जगह में लोगों के इकट्ठा होने से भी संक्रमण का खतरा बढ़ेगा.

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रोगों से लड़ने की क्षमता- भारत में पहले से ही मलेरिया, डेंगू बुखार, टायफॉइड, हेपाटाइटिस और हैजा जैसी बीमारियां हैं. देश में लाखों लोगों को पीने के लिए स्वच्छ पानी नहीं मिल पाता है. सैनिटाइजेशन और हाईजीनिक फूड की कमी है. कुछ एक्सपर्ट कहते हैं कि ऐसी परिस्थिति में रहने वाले लोगों के इम्यून सिस्टम में रोगों से लड़ने की क्षमता ज्यादा होती है.

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मुंबई की 'ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन' की अर्बन पॉलिसी एक्सपर्ट सायली उदास मनकिकर कहती हैं, 'भारतीयों का इम्यून सिस्टम काफी अच्छा है. यहां ज्यादातर लोग जीवन में एक बार मलेरिया, टाइफॉयड और डेंगू जैसी बीमारियों का शिकार होते हैं. लेकिन इम्यूनिटी सिस्टम अच्छा होने की वजह से आप इन बीमारियों से जीत जाते हैं.' इस थीसिस को दो नए शोध पत्र भी सपोर्ट करते हैं.

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डेमोग्राफिक- भारत को युवाओं का देश कहा जाता है. यहां सिर्फ 65 साल से ज्यादा उम्र के सिर्फ 6 प्रतिशत लोग ही रहते हैं. आधी से ज्यादा आबादी की उम्र 25 साल से कम है. कई स्टडीज इस बात का सबूत हैं कि युवाओं में कोविड-19 से मौत का खतरा कम ही रहता है. भारत में कोरोना पीड़ित पर जर्नल साइंस में प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि देश में 65 साल से ज्यादा उम्र के बाद कोविड-19 का मोर्टालिटी रेट खुद-ब-खुद कम हो जाता है.

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चेन्नई के वैज्ञानिकों की एक स्टडी बताती है कि कम आय वाले जिन देशों में हेल्थ केयर, हाईजीन और सैनिटाइजेशन की सुविधा कम है, वहां कोविड-19 का डेथ रेट बहुत कम है. वहीं, डॉ. राजेंद्र प्रसाद गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के वैज्ञानिकों ने एक स्टडी में पाया कि जिन देशों में विभिन्न प्रकार के माइक्रोब्स और बैक्टीरिया पाए जाते हैं, उनमें भी कोविड-19 से मौत का खतरा कम है.

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गलत साबित हुए एक्सपर्ट- महामारी के दौरान भारत की जलवायु और डेमोग्राफिक्स में किसी तरह का बदलाव नहीं आया. सितंबर में मामले काफी तेजी से ऊपर गए थे, लेकिन उसके बाद लगातार गिरावट आती रही. कोरोना पीड़ितों की संख्या में उस वक्त कमी दर्ज की गई जब एक्सपर्ट इसके बढ़ने की संभावना जता रहे थे. अक्टूबर में दिवाली और दुर्गा पूजा के समय एक्सपर्ट ने कोरोना के मामले बढ़ने की संभावना जताई थी. इस समय प्रदूषण ने भी मुश्किलें बढ़ा रखी थीं, इसलिए एक्सपर्ट महामारी को लेकर चिंतित थे.

Photo: Reuters

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