पिछले कुछ दिनों से भारत बायोटेक के कोवैक्सीन में गाय के बछड़े के सीरम (खून) के इस्तेमाल की चर्चा हो रही है. सरकार ने हाल ही में एक स्पष्टीकरण जारी कर सोशल मीडिया पर वायरल इन सभी दावों को खारिज कर किया था. अब पशु-अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले संगठन पेटा (PETA) ने भी ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया को एक पत्र लिखकर कोवैक्सीन के प्रोडक्शन से नवजात बछड़े के सीरम को हटाने की मांग की है.
पेटा ने नवजात बछड़े के सीरम की जगह वैक्सीन बनाने में जानवर रहित केमिकल पदार्थ का इस्तेमाल करने की मांग की है. इससे पहले सरकार ने अपने बयान में कहा था कि कोवैक्सीन में बछड़े की सीरम का इस्तेमाल फाइनल प्रोडक्ट में नहीं बल्कि सिर्फ इसके शुरुआती चरण में होता है.
PETA India appeals to India’s drugs controller to use available animal-free media instead of newborn calf serum from slaughterhouses in vaccine production.
— PETA India (@PetaIndia) June 17, 2021
Read the full letter here: https://t.co/ku2c7YpvyU
पेटा ने अपने पत्र में कहा है कि सीरम के लिए बछड़ों को जन्म के कुछ समय बाद ही उनकी मां से दूर ले जाया जाता है, इससे मां और बछड़े दोनों को चोट पहुंचती है. पत्र में ये भी लिखा गया है कि इसके लिए पहले से ही कई ऐसे विकल्प उपलब्ध हैं जिनमें जानवरों का इस्तेमाल नहीं होता है.
क्या है विवाद- कांग्रेस के गौरव पंधी ने सोशल मीडिया पर RTI में मिला एक जवाब शेयर किया था. इसमें कहा गया था कि नवजात बछड़े के सीरम का इस्तेमाल वेरो कोशिकाओं के विकास के लिए किया जाता है. वहीं, सरकार का कहना है कि वैक्सीन में बछड़े का सीरम होने का दावा गलत है और इस तथ्य को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है. वैक्सीन के फाइनल प्रोडक्ट में जानवर के किसी भी हिस्से का इस्तेमाल नहीं किया गया है.
सरकार ने समझाते हुए बताया था कि वेरो कोशिकाओं के विकास के लिए, बछड़े के सीरम का उपयोग किया जाता है क्योंकि इस सीरम में कुछ ऐसे गुण होते हैं जो वेरो कोशिकाओं को बढ़ाने में मदद करते हैं. विकास के बाद इन वेरो कोशिकाओं से बछड़े के सीरम को हटाने के लिए इसे कई बार पानी से धोया जाता है. इस सीरम का इस्तेमाल सिर्फ एक विकास एजेंट के रूप में किया जाता है. आपको बता दें कि वेरो कोशिकाओं का इस्तेमाल सेल कल्चर में किया जाता है. इसके तहत कोशिकाओं को प्राकृतिक तरीके से अलग, एक खास परिस्थिति में विकसित किया जाता है.
बछड़े के सीरम का इस्तेमाल वैक्सीन प्रोडक्शन में क्यों किया जाता है- बछड़े के सीरम में कई ऐसे जैविक गुण होते हैं जो कोशिकाओं को तेजी से विकसित करने का काम करते हैं. इसमें कुछ मात्रा में एंटीबॉडी भी पाई जाती है.
गौरव पांधी ने अपने ट्वीट में दावा किया था कि सीरम प्राप्त करने के लिए नवजात बछड़ों को मारा जाता है. सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि सीरम प्राप्त करने के और भी कई तरीके हैं. इन्हें आयात भी किया जा सकता है.
भारत बायोटेक ने ये नहीं बताया है कि वो अपने वैक्सीन के उत्पादन के लिए बछड़े का सीरम कहां से लेती है लेकिन उन्होंने ये स्पष्ट किया कि नवजात बछड़े के सीरम का उपयोग कोई नई बात नहीं है. कंपनी दशकों से वैक्सीन बनाने के कारोबार में है और यह वैक्सीन बनाने की मानक प्रक्रिया है.
पेटा ने क्या कहा- पेटा का कहना कि जानवरों के प्रति क्रूरता के रोकथाम नियम 2001 के मुताबिक, प्रेग्नेंट और तीन महीने से कम उम्र के जानवरों को मारने पर रोक है. पेटा ने कहा, 'इसलिए, वैक्सीन उत्पादन के लिए 20 दिन से कम उम्र के बछड़े को मारकर उससे सीरम लेने की भी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.' पेटा ने कहा कि अगर उन्हें मारा नहीं भी जाता है, तो जन्म के तुरंत बाद मां से दूर किए जाने पर भी उन्हें दुख होता है.
पेटा ने बछड़े के सीरम से वैक्सीन के दूषित होने का भी मुद्दा उठाया है. हालांकि, भारत बायोटेक पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि कोवैक्सीन पूरी तरह शुद्ध है और वैक्सीन के फाइनल प्रोडक्ट में बछड़े के सीरम का इस्तेमाल नहीं होता है.
क्या होता है बछड़े का सीरम- ये सीरम नवजात बछड़े के खून से निकाला जाता है. आमतौर पर इसे बूचड़खाने में रखा जाता है. इसका इस्तेमाल व्यापक रूप से सीरम सप्लीमेंट के उपयोग में किया जाता है. इसमें कुछ मात्रा में एंटीबॉडी, विकसित करने की क्षमता और सेल कल्चर में इस्तेमाल होने वाली कई अलग-अलग खूबियां होती हैं.