कोरोना से ठीक होने के बाद भी कई लोगों में महीनों तक इसके लक्षण रह जाते हैं. मेडिकल भाषा में इसे लॉन्ग कोविड कहा जाता है. जर्मनी के मैक्स प्लैंक सेंटर फॉर फिजिक्स एंड मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने लॉन्ग कोविड की वजह जानने के लिए एक स्टडी की है. शोधकर्ताओं का कहना है कि रक्त कोशिकाओं में होने वाला बदलाव बताता है कि इतने सारे मरीज लॉन्ग कोविड से पीड़ित क्यों हैं.
शोधकर्ताओं ने पाया कि वायरस लाल और सफेद रक्त कोशिकाओं के सख्त आकार को बदल देता है. इससे शरीर के चारों ओर ऑक्सीजन और पोषक तत्वों का पहुंचना मुश्किल हो जाता है. स्टडी में पाया गया कि कोरोना होने पर कुछ लोगों के शरीर में रक्त कोशिकाओं के ये बदलाव महीनों तक बने रहते हैं.
शोधकर्ताओं का कहना है कि ऑक्सीजन के प्रवाह में बाधा आने से लॉन्ग कोविड के लक्षण दिखाई देते हैं. जिसकी वजह से कई मरीजों के महीनों तक सांस लेने में समस्या, थकान और सिरदर्द रहता है. रक्त कोशिकाओं में होने वाले ये बदलाव ये भी बताते हैं कि कोरोना के कुछ मरीजों ब्लड क्लॉटिंग या कुछ अंग खराब होने जैसी समस्या क्यों आ रही है.
शोधकर्ताओं ने अभी और पहले के कोरोना मरीजों के ब्लड सैंपल का विश्लेषण किया और इसकी तुलना स्वस्थ वॉलंटियर्स से की. शोधकर्ताओं ने कोरोना वाले वॉलंटियर्स में खराब ब्लड सर्कुलेशन, ऑक्सीजन की सीमित मात्रा और ब्लड क्लॉट्स पाया.
बायोफिजिकल जर्नल में छपी इस स्टडी में कहा गया है कि इन सभी मामलों में पाया गया कि रक्त कोशिकाएं और उनके भौतिक गुण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वैज्ञानिकों ने एक सूक्ष्म कैमरे के जरिए लाल और सफेद रक्त कोशिकाओं के आकार को मापा और कंप्यूटर पर डेटा का विश्लेषण किया.
शोधकर्ताओं ने कोरोना के मरीजों की लाल रक्त कोशिकाओं के आकार में अंतर पाया. ये लाल रक्त कोशिकाएं ही शरीर में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों को पहुंचाती हैं. शोधकर्ताओं का मानना है कि इसकी वजह से खून गाढ़ा हो जाता है जिससे शरीर के चारों तरफ ऑक्सीजन पहुंचना कठिन हो जाता है.
वहीं सफेद रक्त कोशिकाएं इम्यून सिस्टम में मुख्य भूमिका निभाती हैं. स्टडी में शोधकर्ताओं ने कोरोना के मरीजों की सफेद रक्त कोशिकाओं का आकार भी बिगड़ा हुआ पाया. शोधकर्ताओं का मानना है कि लॉन्ग कोविड के पीछे लाल और सफेद दोनों रक्त कोशिकाओं को नुकसान पहुंचना है.