
बिग बॉस का सीजन 16 शुरू हो चुका है. इस सीजन के सबसे पहले कंटेस्टेंट के तौर पर तजाकिस्तान के सुपरस्टार अब्दू रोजिक की एंट्री हुई थी. अब्दू 19 साल के हैं और इन दिनों काफी ज्यादा चर्चा में हैं . 3 फीट 1 इंच हाइट होने के कारण अब्दू दुनिया के सबसे छोटे सिंगर हैं. अब्दू को इसी साल आइफा अवॉर्ड्स में भी इनवाइट किया गया था. जहां उन्होंने 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' गाना गया, जिसे उन्होंने सलमान खान को डेडिकेट किया. अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में बताते हुए अब्दू ने कहा कि उनकी शारीरिक बनावट के कारण बचपन में उन्हें काफी ज्यादा परेशान किया जाता था. इसके अलावा अब्दू ने अपनी मेडिकल कंडीशन के बारे में भी बताया जिसकी वजह से उनकी फिजिकल ग्रोथ रुक गई.
अब्दू ने बताया, 5 साल की उम्र में उन्हें हार्मोन की कमी और रिकेट्स का पता चला. स्कूल में अब्दू को एहसास हुआ कि उसकी हाइट अपनी उम्र के बच्चों की तुलना में कम थी. अब्दू ने बताया कि उसके सारे दोस्तों का बर्ताव काफी अच्छा था. लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, लोगों का बर्ताव काफी ज्यादा बुरा होने लगा. अब्दू ने बताया कि लोग उसका मजाक बनाते थे. तो आइए जानते हैं क्या होता है रिकेट्स और किस तरह इसकी वजह से बच्चों की फिजिकल ग्रोथ रुक जाती है.
क्या है रिकेट्स
रिकेट बच्चों में पाई जाने वाली एक ऐसी बीमारी है जिसमें उनकी हड्डियां सॉफ्ट और काफी कमजोर होने लगती हैं, ऐसा शरीर में लंबे समय तक विटामिन डी की कमी के कारण होता है.
बच्चों में विटामिन डी, कैल्शियम और फास्फोरस को खाने के जरिए अवशोषित करने में मदद करता है. विटामिन डी की मात्रा कम होने पर शरीर में हड्डियों में कैल्शियम,फास्फोरस के लेवल को मेनटेन रखने में काफी ज्यादा दिक्कत होती है, जिस कारण रिकेट्स की समस्या का सामना करना पड़ता है.
डाइट में विटामिन डी और कैल्शियम शामिल करने से रिकेट्स के कारण होने वाली हड्डियों की समस्या को ठीक किया जा सकता है. लेकिन अगर बच्चे को किसी और बीमारी के कारण रिकेट्स की समस्या का सामना करना पड़ रहा है तो इसके लिए अलग से ट्रीटमेंट और दवाइयों की जरूरत होती है.
रिकेट्स के लक्षण
रिकेट्स के लक्षणों और संकेतों में शामिल हैं -
ग्रोथ का धीरे-धीरे होना
मोटर स्किल्स धीरे होना
रीढ़ की हड्डी, पेल्विस और टांगों में दर्द
मसल्स का कमजोर होना
क्योंकि रिकेट्स बच्चे की हड्डियों (ग्रोथ प्लेट्स) के सिरों पर बढ़ती कोशिकाओं के आस-पास के एरिया को नरम बना देता है, इससे स्केलेटल विकृति हो सकती है जैसे:
घुटनों का टेढ़ा होना
कलाई और टखने का मोटा होना
ब्रेस्टबोन प्रोजेक्शन
रिकेट्स के कारण
रिकेट्स की समस्या तब होती है जब बच्चे के शरीर को भरपूर मात्रा में विटामिन नहीं मिल पाता या बच्चे का शरीर विटामिन डी का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाता. कभी-कभी, भरपूर मात्रा में कैल्शियम ना मिल पाने या कैल्शियम और विटामिन डी की कमी के कारण रिकेट्स की समस्या हो सकती है.
विटामिन डी ना मिल पाना
अगर बच्चों को इन दो चीजों से विटामिन डी नहीं मिल पाता तो इससे उनके शरीर में इसकी कमी हो सकती हैं. ये हैं दो चीजें-
सन लाइट- जब बच्चे सनलाइट के संपर्क में आते हैं तो उनकी स्किन विटामिन डी का उत्पादन करती है. लेकिन अगर विकसित देशों की बात करें तो यहां बच्चे धूप के संपर्क में काफी कम आते हैं या वह ज्यादातर धूप में निकलने से पहले सनस्क्रीन का इस्तेमाल करते हैं, जो धूप की किरणों को स्किन में जाने से रोकते हैं जिससे स्किन विटामिन डी का उत्पादन नहीं कर पाती.
फूड- मछली का तेल, अंडे का पीला भाग और फैटी फिश जैसे सैल्मन में विटामिन डी मौजूद होता है. इसके साथ ही कुछ पेय पदार्थों में भी विटामिन डी होता है जैसे दूध और फ्रूट जूस आदि.
अब्सॉर्ब करने में दिक्कत
कुछ बच्चों में जन्म से ही कई ऐसी दिक्कतें होती है जिस कारण उनका शरीर विटामिन डी को अब्सॉर्ब नहीं कर पाता. इसमें शामिल हैं-
सीलिएक डिजीज
इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज
सिस्टिक फिब्रोसिस
किडनी से जुड़ी दिक्कतें
रिस्क फैक्टर्स
इस कारणों से और भी ज्यादा बढ़ जाता है रिकेट्स का खतरा-
डार्क स्किन- डार्क स्किन में पिगमेंट मेलानिन काफी ज्यादा होता है , जिससे सूर्य की रोशनी से आपकी स्किन विटामिन डी का उत्पादन काफी कम मात्रा में करती है.
प्रेग्नेंसी के दौरान मां में विटामिन डी की कमी- अगर प्रेग्नेंसी के दौरान किसी महिला में विटामिन डी की गंभीर कमी है तो उसके होने वाले बच्चे में रिकेट्स की समस्या देखने को मिलती है. यह समस्या जन्म के कुछ महीनों के बाद दिखना शुरु होती है.
प्रीमैच्योर बर्थ- जिन बच्चों का जन्म समय से पहले होता है उनमें विटामिन डी की कमी देखने को मिलती है. क्योंकि समय से पहले जन्मे बच्चों को मां से गर्भ से पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी नहीं मिल पाता.
मेडिकेशन- एचआईवी इंफेक्शन के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली कुछ प्रकार की दवाइयां, विटामिन डी का उपयोग करने की शरीर की क्षमता में हस्तक्षेप करती हैं.
ब्रेस्ट फीडिंग- मां के दूध में विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा नहीं पाई जाती है ऐसे में इससे रिकेट्स की समस्या से निजात नहीं पाया जा सकता. ऐसे में जरूरी है कि जो महिलाएं ब्रेस्ट फीडिंग करवाती हैं उन्हें बच्चों को विटामिन डी की ड्रॉप्स भी देनी चाहिए.
दिक्कतें
अगर बच्चे को समय पर इलाज नहीं मिल पाता है तो रिकेट्स के कारण कई तरह की दिक्कतों का भी सामना करना पड़ सकता हैं जैसे-
ग्रोथ ना होना
असाधारण रूप से रीढ़ की हड्डी का मुड़ना
हड्डियों से जुड़ी दिक्कतें
डेंटल डिफेक्ट्स
दिमागी बीमारी
राम मनोहर लोहिया अस्पताल दिल्ली के बाल रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ दिनेश कुमार यादव कहते हैं कि बच्चों में इस बीमारी का पता जितनी जल्दी लग जाए, इलाज उतना ही आसान हो जाता है. रिकेट्स रोग से ग्रसित बच्चा जब अपने घुटनों पर चलने लगता है, उस दौरान घुटनों की हड्डियां चौड़ी दिखती हैं. साथ ही सिर के आकार से भी इसका पता लगाया जाता है. आमतौर पर हमारा सिर गोल होता है, बच्चों में अगर स्कल यानी सिर आगे से किसी बक्शे की तरह चौड़ा दिखता है और बच्चे के सिर का नरम स्थान जिसे सॉफ्ट स्पॉट या फॉन्टानेल कहा जाता है, वो भी समय पर बंद नहीं होता.
सामान्य तौर पर बच्चों में ये साल से डेढ़ साल की अवधि में भर जाता है. अगर ये समय पर नहीं भरता है तो ये चिंताजनक होता है. रिकेट्स का पता खून की जांच से भी लगाया जा सकता है जिसमें कैल्शियम और विटामिन डी की कमी हो या एल्काइन बढ़े हुए आएं तो इसे रिकेट्स के लक्षण के तौर पर देखा जाता है. यदि दो साल की उम्र तक इसका निदान हो जाता है तो विटामिन डी की ठीक खुराक देकर ठीक कर सकते हैं. बाल रोग विशेषज्ञ इलाज के जरिये इसका उपचार कर सकते हैं. लेकिन यदि रिकेट्स विटामिन डी रजिस्टेंट होता है तो इसका रिसपांस अच्छा नहीं रहता. वहीं बड़ी उम्र में रिकेट्स के लक्षण जैसे हड्डियां टेढ़ी मेढ़ी होने पर आर्थोपैडिक सर्जन भी हड्डियों को सुव्यवस्थित करते हैं.
रिकेट्स से बचने का तरीका
सनलाइट को विटामिन डी का सबसे अच्छा सोर्स माना जाता है. किसी भी सीजन के दौरान सिर्फ 10 से 15 मिनट की सनलाइट ही फायदेमंद हो सकती है. हालांकि,अगर आपकी स्किन डार्क है या आप ऐसी जगहों पर रहते हैं जहां ठंड बहुत ज्यादा पड़ती है तो आपको धूप से भरपूर मात्रा में विटामिन डी नहीं मिल पाएगा.
रिकेट्स की समस्या से निजात पाने के लिए,जरूरी है कि आप बच्चों की डाइट में विटामिन डी युक्त चीजों को शामिल करें जैसे - फैटी फिश, सैल्मन, टूना, फिश ऑयल और अंडे का पीला भाग.
वहीं, अगर आप प्रेग्नेंट हैं तो डॉक्टर से इस बारे में सलाह जरूर लें कि आप विटामिन डी सप्लीमेंट्स का सेवन कर सकती हैं या नहीं.