Omicron variant Cases in India: पूरी दुनिया में कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन के मामले बढ़ते जा रहे हैं. इस वैरिएंट की पहचान सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिकों ने की थी. WHO भी इसे 'वैरिएंट ऑफ कंसर्न' की सूची में डाल चुका है. इस नए वैरिएंट (Omicron variant) ने अब भारत में भी दस्तक (Omicron india cases) दे दी है. फिलहाल इसके दो मामले कर्नाटक में पाए गए हैं. केंद्र सरकार ने SARS-CoV-2 और Omicron वैरिएंट पर पूछे जा रहे ज्यादातर सवालों का जवाब देते हुए एक दस्तावेज जारी किया है. इसके जरिए लोगों को इस वैरिएंट को समझने में ज्यादा मदद मिलेगी.
ओमिक्रॉन क्या है और वेरिएंट ऑफ कंसर्न कैसे बन गया?
ओमिक्रॉन SARS-CoV-2 का नया वैरिएंट है जो हाल ही में दक्षिण अफ्रीका में पाया गया था. 24 नवंबर को इसे B.1.1.529 या ओमिक्रॉन का नाम दिया गया. इस वैरिएंट में बहुत ज्यादा म्यूटेशन हैं, खासतौर से इसके वायरल स्पाइक प्रोटीन में 30 से अधिक म्यूटेशन पाए गए हैं. ये इम्यून रिस्पॉन्स को निशाना बनाते हैं. ओमिक्रॉन के म्यूटेशन की संख्या, इसके संक्रामक दर, इम्यून से बचन निकलने की क्षमता और दक्षिण अफ्रीका में कोरोना के मामले में तेजी से हुई वृद्धि को देखते हुए WHO ने इसे वेरिएंट ऑफ कंसर्न की सूची में डाला है.
क्या तीसरी लहर आने की संभावना है?
दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रॉन के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और इस वैरिएंट की विशेषताओं को देखते हुए इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत समेत ज्यादातर देशों में इसके फैलने की संभावना है. ये किस पैमाने पर बढ़ेगा और इस बीमारी की गंभीरता कितनी होगी, ये अभी भी स्पष्ट नहीं है. हालांकि भारत में वैक्सीनेशन की तेज गति, डेल्टा से ज्यादा संक्रमितों को मिली सीरोपॉजिविटी को देखते हुए इस वैरिएंट के कम गंभीर होने का अनुमान लगाया जा रहा है. वैज्ञानिक अभी भी इसके बारे में और साक्ष्य जुटा रहे हैं.
क्या RT-PCR से ओमिक्रॉन का पता लगाया जा सकता है?
SARS-CoV2 वैरिएंट की पहचान करने में RT-PCR को सबसे प्रभावी माना जाता रहा है. इसके जरिए वायरस में विशिष्ट जीन का पता लगाया जा सकता है. जैसे कि स्पाइक (एस), इनवेलप (ई) और न्युक्लियोकैप्सिड (एन) में वायरस की पहचान की जा सकती है. जहां तक ओमिक्रॉन की बात है इसके S जीन में बहुत ज्यादा म्यूटेशन हुए हैं. कई नतीजों से संकेत मिले हैं कि ओमिक्रॉन में S जीन अनुपस्थित है. एस जीन की गैरमौजूदगी और अन्य वायरल जीन्स की पहचान करके ओमिक्रॉन का पता लगाया जा सकता है. हालांकि, ओमिक्रॉन वैरिएंट के अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग जरूरी है.
वैरिएंट ऑफ कंसर्न को लेकर हमें कितना चिंतित होना चाहिए?
WHO किसी भी वैरिएंट को 'वैरिएंट ऑफ कंसर्न' कुछ खास बातों का मूल्यांकन करने के बाद करता है. जैसे कि जब ये तेजी से फैल रहा हो, COVID-19 महामारी विज्ञान में तेजी से बदलाव आ रहे हों, वायरस तेजी से बढ़ रहा हो, क्लिनिकल डिजीज प्रेजेंटेशन में किसी तरह का बदलाव हो, सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक उपायों, दवाओं या वैक्सीन का असर कम हो रहा हो. ओमिक्रॉन को उसके म्यूटेशन, तेजी से बढ़ते ट्रांसमिशन, इम्यून को चकमा देने की क्षमता और री-इंफेक्शन जैसी बातों को ध्यान में रखकर वैरिएंट ऑफ कंसर्न की श्रेणी में डाला गया है.
हमें किस तरह की सुरक्षा लेनी चाहिए?
इस वैरिएंट से बचने के लिए हमें पहले की तरह ही सावधानियां बरतनी होंगी. सही तरीके से मास्क लगाएं, अगर अब तक वैक्सीन की दोनों डोज नहीं ली है तो इसे जल्द से जल्द ले लें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें और जहां भी रहें वहां अधिकतम वेंटिलेशन बनाए रखें.
क्या मौजूदा वैक्सीन ओमिक्रॉन पर काम करेगी?
फिलहाल, इस बात के कोई सबूत नहीं है कि मौजूदा वैक्सीन ओमिक्रॉन पर काम नहीं कर रही हैं, हालांकि स्पाइक जीन के कुछ म्यूटेशन वैक्सीन की क्षमता को कुछ कम कर सकते हैं. वैक्सीन की सुरक्षा शरीर में बनी एंटीबॉडी या इम्यूनिटी द्वारा ही होती है जो अपेक्षाकृत बेहतर होने की उम्मीद है. इसलिए वैक्सीन अभी भी गंभीर बीमार के प्रति सुरक्षा देती है. इसलिए जो भी वैक्सीन उपलब्ध हो, उसे लगवाना बहुत जरूरी है. अगर आपने अब तक वैक्सीन नहीं लगवाई है तो इसे जरूर लगवा लें.
भारत की इस वैरिएंट के प्रति क्या प्रतिक्रिया है?
भारत सरकार स्थिति की बारीकी से निगरानी कर रही है और समय-समय पर इससे संबंधित गाइडलाइन जारी कर रही है. वैज्ञानिक और डॉक्टर्स भी इसकी पहचान करने, जीनोमिक सर्विलांस, करने, वायरल के बारे में साक्ष्य जुटाने और इलाज को और बढ़ाने में जुट गए हैं.
वैरिएंट्स क्यों बनते हैं?
जब तक वायरस संक्रमित और संचारित करने में सक्षम हो, इनका विकास होता रहेगा और इससे वैरिएंट्स बनते रहेंगे. हालांकि इसके सभी वैरिएंट्स खतरनाक नहीं होते हैं और कुछ पर तो हम ध्यान भी नहीं देते. जब ये अधिक संक्रामक हो जाते हैं या फिर एक से दूसरे को संक्रमित करने लगते हैं तो खतरनाक बनने लगते है. वैरिएंट्स को बनने से रोकने के लिए जरूरी है कि इंफेक्शन की संख्या को घटाया जाए.