अच्छा पेरेंट्स बनना बहुत धैर्य और मुश्किल भरा काम है. बच्चे लोगों से किस तरह बात करते हैं, उनका व्यवहार कैसा है, ये सब कुछ उनकी परवरिश पर निर्भर करता है. पेरेंट्स अपनी तरफ से बच्चों के लिए हमेशा अच्छा करने की सोचते हैं लेकिन जाने-अनजाने में कुछ ऐसी चीजें कर जाते हैं जिसका बच्चों पर मनोवैज्ञानिक रूप से गहरा असर पड़ता है. बच्चों के मन में ये बातें इतनी गहराई से बैठ जाती हैं कि बड़े होने की बाद भी वो इन्हें नहीं भूल पाते हैं.
लोगों के सवालों का जवाब देने वाली एक वेबसाइट पर कुछ लोगों ने खुद पर गुजरी कुछ ऐसी ही बातें लोगों से शेयर की हैं. इन लोगों ने बताया है कि बचपन में पेरेंट्स की कुछ बातें उन्हें आजतक याद हैं और दिमागी रूप से इन बातों का उन पर गहरा असर पड़ा है. लोगों से अपना अनुभव शेयर करने का इनका मकसद ये है कि लोग अपने पेरेंटिंग में इस तरह की गलतियां बिल्कुल भी ना करें.
जब तुम्हारे बच्चे होंगे तब तुम समझोगे- एक महिला ने लिखा, 'बचपन से किशोरावस्था तक मैंने एक बात अपने पेरेंट्स से अक्सर सुनी है कि बहुत ज्यादा संवेदनशील मत बनो. तुम्हारा चिड़चिड़ापन मुझे पसंद नहीं. ये सब बातें तुम तब समझोगे जब तुम्हारे बच्चे होंगे. आखिर तुम्हारी क्या दिक्कत है. अक्सर गुस्से में मां मुझसे कहती थी कि मैं उस पर बोझ हूं.
पेरेंट्स से तारीफ ना मिलना- एक युवक ने अपने अनुभव से लिखा, 'ऐसी कोई भी बात या प्रयास ना करें जिससे आपके बच्चे की प्रतिभा का अपमान हो. खासतौर से तब जब बच्चा खुद अपनी समझ से अच्छा करने की कोशिश कर रहा हो. बच्चा अपनी छोटी सी भी कोशिश में मां-बाप से तारीफ की उम्मीद रखता है और ऐसा ना होने पर उसके दिल को गहरी चोट लगती है. बच्चे ये कभी नहीं भूल पाते हैं.
बच्चों से झूठ बोलना- साइकोलॉजिस्ट के अनुसार, 'बच्चों से कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए जिसकी सच्चाई उन्हें आगे जाकर पता चल जाए. मनोवैज्ञानिक रूप से बच्चों पर इसका बहुत गलत असर पड़ता है. अगर बच्चे के साथ ऐसी बात लगातार होती है तो उसके मन में पेरेंट्स के लिए भरोसा खत्म होने लगता है. इसका असर उसकी पूरी जिंदगी पर पड़ सकता है.
क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक- साइकोलॉजिस्ट के अनुसार आप बच्चों से क्या कहते हैं इससे ज्यादा जरूरी इस बात पर ध्यान देना है कि आप उसे किस तरह से कहते हैं. बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं और छोटी सी बात उनके दिल को लग जाती है. जब पेरेंट्स बच्चों से बिल्कुल बात नहीं करते हैं, उनकी बातें नहीं सुनते हैं तो इस चीज का भी मनोवैज्ञानिक रूप से बच्चों के दिमाग पर गहरा असर पड़ता है. बच्चे सबसे ज्यादा माता-पिता से बातें करना चाहते हैं और ऐसा ना होने पर उनमें उदासी की भावना आने लगती है.
बच्चे के दुख का मजाक बनाना- साइकोलॉजिस्ट सुझाव देते हैं कि पेरेंट्स को कभी भी अपने बच्चे का मज़ाक नहीं बनाना चाहिए या उनके दर्द को कम नहीं समझना चाहिए. इसके अलावा उन्हें बहुत ज्यादा कंट्रोल करने से बचना चाहिए. उनके पसंद के बिना उन पर किसी चीज को जबरदस्ती करने का दबाव नहीं बनाना चाहिए. भले ही खाने-पीने की कोई चीज हो अगर बच्चे को नहीं पसंद है तो जबरदस्ती ना खिलाएं.
भाई-बहन से तुलना- कभी भी बच्चे की उनके भाई-बहन के साथ तुलना ना करें. अगर बच्चा कोई काम नहीं कर पाता है या किसी चीज में फेल हो जाता है तो उसे लोगों के सामने बिल्कुल भी शर्मिंदा ना करें. बच्चे के सामने रिश्तेदारों से उसकी बुराई ना किया करें. साइकोलॉजिस्ट का कहना है कि बच्चे को ये कभी नहीं कहना चाहिए कि आप उसे प्यार नहीं करते. या फिर उसे पैदा करके आपने गलती कर दी. बच्चे के मन में इस तरह अकेलेपन की भावना आती है और वो घर के लोगों से कटने लगता है.