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लाइफस्टाइल

हवा के जरिए यूं फैल रहा कोरोना, नई स्टडी के नतीजे चिंताजनक

हवा के जरिए यूं फैल रहा कोरोना, नई स्टडी के नतीजे चिंताजनक
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आए दिन कोरोना वायरस के नए-नए लक्षण सामने आ रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ शोधकर्ता इस वायरस के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश कर रहे हैं. इसी कड़ी में कोरोना पर की गई एक नई स्टडी में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. इस स्टडी के लिए पहली बार SARS-CoV-2 के माइक्रोड्रॉपलेट्स (छोटी बूंदे) को लिया गया. ये स्टडी अमेरिका के नेब्रास्का विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने की है.
हवा के जरिए यूं फैल रहा कोरोना, नई स्टडी के नतीजे चिंताजनक
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पिछले कई महीनों से वैज्ञानिक इस बात का दावा करते आ रहे हैं कि कोरोना वायरस मरीज के सांस और मुंह से निकलने वाले माइक्रोड्रॉपलेट्स में भी हो सकता है लेकिन अब तक इस बात के कोई सबूत नहीं थे कि ये बेहद छोटे कण भी संक्रामक हो सकते हैं. नई स्टडी में वैज्ञानिकों ने SARS-CoV-2 के माइक्रोड्रॉपलेट्स को पांच माइक्रोन के जरिए परिभाषित किया है.

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ये स्टडी इस धारणा को पुख्ता करती है कि खांसने और छींकने से ही नहीं बल्कि सामान्य तौर पर बोलने और सांस लेने से भी कोरोना वायरस फैल सकता है. इतना ही नहीं ये संक्रामक वायरस छह फीट की दूरी से ज्यादा में भी फैल सकता है. आपको बता दें कि सोशल डिस्टेंसिंग के लिए छह फीट की दूरी रखने की गाइडलाइन्स हैं.

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वैज्ञानिकों की इसी टीम ने मार्च के महीने में एक लेख प्रकाशित किया था जिसमें कहा गया था कि ये वायरस अस्पताल में कोविड के मरीजों के कमरों में हवा में रहता है और ये स्टडी जल्द ही एक जर्नल में प्रकाशित की जाएगी. अब इस स्टडी को medrxiv.org वेबसाइट पर पोस्ट किया गया है.

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नेब्रास्का मेडिकल सेंटर के एसोसिएट प्रोफेसर जोशुआ संतारपिया ने AFP को बताया, 'शोध के लिए सैंपल इकट्ठा करना वास्तव में बहुत मुश्किल था. वायरस के बारे में जानकारी जुटाने के लिए टीम ने मोबाइल फोन के आकार वाले एक उपकरण का इस्तेमाल किया था. ऐसी स्थिति में फोकस बनाए रखने की संभावना बहुत कम होती है.'

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इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने कोरोना संक्रमित मरीजों के पांच कमरों से हवा के सैंपल लिए लिए. ये सैंपल बेड पर लेटे मरीजों के पैरों से लगभग एक फीट की ऊंचाई से लिए गए थे.

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स्टडी के अनुसार कुछ मरीज जो बातें कर रहे थे और जो खांस रहे थे उनके मुंह से निकलने वाले माइक्रोड्रॉपलेट्स हवा में कई घंटो तक रहते हैं. इन्हें एरोसोल भी कहा जाता है. वैज्ञानिकों की टीम एक माइक्रोन तक छोटे इन माइक्रोड्रॉपलेट्स को इकट्ठा करने में सफल रही.

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वैज्ञानिकों ने इन सैंपल्स को विकसित करने के लिए सुरक्षित तरीके से एक जगह रखा. वैज्ञानिकों ने पाया कि 18 में से तीन सैंपल्स ऐसे थे जो प्रतिकृति बनाने में सक्षम थे यानी जो एक से दो में बदल सकते थे.

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प्रोफेसर संतारपिया ने कहा कि इससे इस बात के सबूत मिलते हैं कि बड़े ड्रॉपलेट्स की तुलना में माइक्रोड्रॉपलेट्स ज्यादा दूर तक फैलने और लोगों को संक्रमित करने में सक्षम हैं.

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हालांकि अभी इस स्टडी की और गहन समीक्षा की जानी बाकी है. ये स्टडी अभी किसी पत्रिका में भी प्रकाशित नहीं हुई है.

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