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लाइफस्टाइल

कोरोना की इस वैक्सीन से दुनिया को क्यों है सबसे ज्यादा उम्मीद?

कोरोना की इस वैक्सीन से दुनिया को क्यों है सबसे ज्यादा उम्मीद?
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कोरोना वायरस की वैक्सीन पर अब अच्छी खबरें आनी शुरू हो गई हैं. वैक्सीन के ट्रायल में सबसे आगे चल रही ऑक्‍सफोर्ड वैक्‍सीन ने लोगों की उम्मीद और बढ़ा दी है. कहा जा रहा है कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी आज अपने शुरुआती ट्रायल के नतीजे घोषित कर सकती है. इससे पहले मंगलवार को खबर आई थी कि मॉडर्ना इंक (Moderna Inc.) भी अपनी फाइनल टेस्टिंग में पहुंच चुकी है.

कोरोना की इस वैक्सीन से दुनिया को क्यों है सबसे ज्यादा उम्मीद?
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क्यों खास है ऑक्‍सफोर्ड वैक्‍सीन?


कोरोना वायरस की वैक्सीन की दौड़ में फिलहाल ऑक्‍सफोर्ड वैक्‍सीन सबसे आगे है. एक तरफ जहां कई वैक्सीन अपने अंतिम चरण या एडवांस स्टेज में पहुंचने वाली हैं वहीं ऑक्सफोर्ड वैक्सीन इस चरण में पहले से ही है. अब इस वैक्सीन के नतीजों का इंतजार किया जा रहा है. उम्मीद की जा रही है कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका द्वारा तैयार इस वैक्सीन के नतीजे आज आ सकते हैं. अगर सबकुछ सही रहा तो ये वैक्सीन सितंबर तक लोगों के लिए आ जाएगी.

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क्या कहते हैं वैज्ञानिक?


प्रोफेसर सारा गिल्बर्ट ने कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में अहम भूमिका निभाई है. सारा गिल्बर्ट इस वैक्सीन के तीसरे और फाइनल स्टेज का भी नेतृत्व कर रही हैं. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार गिल्बर्ट का दावा है कि ऑक्सफोर्ड वैक्सीन कोरोना वायरस से लोगों को बचाने में 80 फीसदी तक प्रभावी है. गिल्बर्ट का कहना है लोगों को ठंड के मौसम में वायरस की मार नहीं झेलनी पड़ेगी क्योंकि ये वैक्सीन सितंबर तक आ जाएगी.

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गिल्बर्ट की टीम ने वैक्सीन के अन्य दावेदारों को पीछे छोड़ दिया है. जहां कई वैक्सीन अपने अंतिम चरण में पहुंचने वाले हैं वहीं ऑक्‍सफोर्ड वैक्‍सीन 10,000 लोगों पर अपना आखिरी ट्रायल खत्म करने वाली है. वैक्सीन टास्कफोर्स की अध्यक्ष केट बिंघम का कहना है, 'ये वैक्सीन पूरी दुनिया में सबसे आगे है और ये किसी भी वैक्सीन से सबसे ज्यादा एडवांस है.

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आम वैक्सीन से कैसे है अलग?


एक तरफ जहां दवाओं का काम बीमारियों को ठीक करना है, वहीं वैक्सीन का काम स्वस्थ लोगों को बीमारी से बचाना है. इसलिए इसे उच्च मानकों पर ही मंजूरी दी जाती है. मंजूरी देने से पहले सालों तक चले इसके सारे डेटा का निरीक्षण किया जाता है. हालांकि कोरोना वायरस महामारी के दौरान ये अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है कि नियामक एक सफल और सुरक्षित वैक्सीन के लिए प्रमाण के रूप में क्या स्वीकार करेंगे.

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US फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन का कहना है कि प्लेसिबो की तुलना में 50 फीसदी ज्यादा प्रभावी होने पर ही वैक्सीन को मंजूरी दी जाएगी. इसके अलावा इसे साक्ष्य के रूप में ब्लड टेस्ट के इम्यून रिस्पान्स से कुछ ज्यादा दिखाना होगा.

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आम वैक्सीन संक्रमण का कारण बनने वाले कमजोर या निष्क्रिय रोगाणु पर प्रयोग कर बनाए जाते हैं. इन वैक्सीन को बनाना आसान नहीं है और इसमें कई साल लग जाते हैं. ऑक्सफोर्ड टीम ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिसमें हानिरहित वायरस का इस्तेमाल करके ये प्रक्रिया तेजी से की जा सकती है.

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Covid-19 के मामले में  प्रोफेसर गिल्बर्ट ने एक चिंपैंजी एडिनोवायरस (एक सामान्य ठंडा वायरस) लिया है और जेनेटिक मैटेरियल को SARS-CoV-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन से इंसर्ट किया है.  

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सारा गिल्बर्ट का कहना है कि कोरोना के वैक्सीन की दौड़ में भले ही कोई भी जीते लेकिन बाजी मारने वाली वैक्सीन भी 100 फीसदी असरदार नहीं हो सकती है. सारी वैक्सीन स्टेरलाइजिंग इम्यूनिटी नहीं बनाती हैं, जिससे वायरस को रोकने वाली न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी पैदा होती है.

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गिल्बर्ट ने बताया कि कुछ वैक्सीन संक्रमण को रोकते नहीं हैं लेकिन बीमारी से बचाने के लिए इम्यून सिस्टम को मजबूत करते हैं. जैसे कि पोलियो वैक्सीन संक्रमण होने से नहीं रोकती है, लेकिन लाखों लोगों को इस बीमारी से बचाती है.

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