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लाइफस्टाइल

इम्युनिटी के दो रूप, जानें शरीर में जानलेवा वायरस को कैसे करती है खत्म

इम्युनिटी के दो रूप, जानें शरीर में जानलेवा वायरस को कैसे करती है खत्म
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पूरी दुनिया में कोरोना का कहर जारी है और भारत में भी इसके मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. अब तक इस महामारी की कोई वैक्सीन नहीं बन सकी है और फिलहाल बचाव ही इसका इलाज है. कोरोना से बचने के लिए साफ-सफाई के अलावा खान-पान पर भी ध्यान देने की जरूरत है ताकि इम्यूनिटी को मजबूत बनाया जा सके.
इम्युनिटी के दो रूप, जानें शरीर में जानलेवा वायरस को कैसे करती है खत्म
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COVID 19 का इलाज करा रहे मरीजों को यह नहीं समझना चाहिए कि वह अब पूरी तरह सुरक्षित हैं और उन्हें फिर से संक्रमण नहीं हो सकता. सीडीसी (Center for Disease Control and Prevention) का कहना है, कि ज्यादातर लोगों को लगता है कि इम्यूनिटी उन्हें पूरी तरह से बीमारी से बचाती है, लेकिन वास्तव में इसकी भूमिका बहुत ज्यादा जटिल है.
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हम किसी बीमारी से कैसे बचे रहते हैं?

शरीर में बने एंटीबॉडी या प्रोटीन की वजह से इम्यूनिटी आती है, जो शरीर से विषैले तत्वों या विषाणुओं को नष्ट करती है. ये एंटीबॉडीज शरीर को किसी भी बीमारी से बचाने का काम करती हैं. इस तरह की एंटीबॉडीज विशेष रूप से अलग-अलग बीमारियों के लिए बनाई जाती हैं. यही वजह है कि फ्लू की दवा कोरोना वायरस के एंटीबॉडी के तौर पर काम नहीं कर रही है.

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दो तरह की इम्यूनिटी

हमारा इम्यून सिस्टम दो भागों में बंटा होता है- एक्टिव और पैसिव यानी सक्रिय और निष्क्रिय इम्यूनिटी. दोनों के बीच का अंतर इस बात पर निर्भर करता है कि शरीर में एंटीबॉडी बनाने के बाद यह वायरस या बैक्टीरिया को रोकने में किस तरह से काम करता है. इसके अलावा यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि एंटीबॉडी शरीर को कब तक किसी बीमारी से बचा कर रखता है. ध्यान देने वाली बात यह है कि COVID 19 से बचाव में इन दोनों इम्यूनिटी अहम भूमिका है.

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एक्टिव इम्यूनिटी क्या है?

सीडीसी के अनुसार, एक्टिव इम्यूनिटी यानी सक्रिय प्रतिरक्षा तब विकसित होती है जब किसी बीमारी से लड़ने के लिए शरीर इम्यून सिस्टम को उस बीमारी का एंटीबॉडी बनाने के लिए प्रेरित करता है. यह दो तरीकों से हो सकता है, पहला उस बीमारी के संक्रमण के जरिए, जिसे नेचुरल इम्यूनिटी कहा जाता है. दूसरा टीकाकरण के जरिए (जो शरीर में एंटीबॉडी बनाने का काम करता है). इसे वैक्सीन वाली इम्यूनिटी भी कह सकते हैं.

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एक्टिव इम्यूनिटी शरीर में तुरंत नहीं आती है और इसे विकसित होने में कई सप्ताह लग सकते हैं. यही वजह है कि ज्यादातर डॉक्टर फ्लू का मौसम शुरू होने से पहले ही इसका टीकाकरण कराने की सलाह देते हैं.

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हालांकि COVID 19 से बचने के लिए इम्यूनिटी की भूमिका पर अभी और रिसर्च किए जाने की जरूरत है.  वैक्सीन से बनी इम्यूनिटी पर कई तरह के सवाल उठाए जाते रहे हैं, वहीं शोधकर्ता अब उन मरीजों की इम्यूनिटी पर भी नजर रख रहे हैं जो कोरोना से ठीक होकर लौट रहे हैं.

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विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, इस बात की जानकारी अभी भी नहीं मिल पाई है कि COVID 19 के मरीज ठीक होने के बाद क्या फिर से संक्रमित हो सकते हैं और इस वायरस से लड़ने के लिए उनमें कैसी इम्यूनिटी रही है. WHO का कहना है कि जिस व्यक्ति के शरीर में पूरी तरह से एंटीबॉडीज विकसित हो चुकी है वो कुछ समय के लिए सुरक्षित रह सकते हैं पर इस सुरक्षा की कोई समयसीमा तय नहीं है.

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पैसिव इम्यूनिटी क्या है?

जहां एक्टिव इम्यूनिटी में शरीर अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली के माध्यम से ही बीमारी के लिए एंटीबॉडी का उत्पादन करता है, वहीं निष्क्रिय प्रतिरक्षा यानी पैसिव इम्यूनिटी में किसी व्यक्ति को सीधे तौर पर एंटीबॉडी दिया जाता है. यह गर्भाशय में या एंटीबॉडी युक्त ब्लड प्रोडक्ट के जरिए दिया जाता है, जैसे इम्यूनो ग्लोब्युलिन जो शरीर को किसी खास बीमारी से तुरंत सुरक्षित करने के काम आता है. उदाहरण के लिए, हेपेटाइटिस ए की वैक्सीन ना लगाने की हालत में मरीज को इम्यूनो ग्लोब्युलिन दिया जा सकता है.

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पैसिव इम्यूनिटी का प्रमुख लाभ यह है कि यह तत्काल सुरक्षा प्रदान करता है. लेकिन पैसिव इम्यूनिटी शरीर में लंबे समय तक नहीं रहता है. सीडीसी के अनुसार यह कुछ हफ्तों और महीनों के भीतर अपना असर खो देता है.

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पैसिव इम्यूनिटी  COVID 19 के इलाज में मददगार साबित हो सकता है. यह मुख्य रूप से कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों के कॉन्वेसेंट सीरम या ब्लड प्लाज्मा के जरिए किया जाता है. दरअसल, कोरोना वायरस से ठीक हो चुके मरीजों के खून में एंटीबॉडी विकसित हो जाता है और इस एंटीबॉडी से दूसरे संक्रमित व्यक्ति का इलाज किया जा सकता है.

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COVID-19 के इलाज के लिए कॉन्वेसेंट प्लाज्मा ट्रीटमेंट पर अभी भी कई स्टडी की जा रही हैं लेकिन इसे अभी भी नियमित उपचार की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है.

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