सेक्स बदलने का चलन तेजी से बढ़ रहा है. ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में जेंडर ट्रांजिशनिंग ट्रीटमेंट के ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं.
ब्रिटेन में स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि कैबिनेट एक्वैलिटीज मिनिस्टर पेन्नी मॉर्डन्ट ने इसकी जांच का आदेश भी दे दिया है. ब्रिटेन के अधिकारी सेक्स चेंज कराने को लेकर बच्चों को प्रोत्साहित करने में सोशल मीडिया की भूमिका की भी जांच करेंगे.
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2009-10 के दौरान जेंडर ट्रांजिशनिंग ट्रीटमेंट के 97 मामलों की तुलना में 2017-18 में 2519 मामले सामने आए. पिछले 10 वर्षों में ब्रिटेन में जेंडर ट्रीटमेंट के मामलों में करीब 4000 फीसदी की बढ़ोतरी हुई.
सबसे ज्यादा हैरानी की बात ये है कि जेंडर चेंज के जरिए लड़की से लड़का बनने वालों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. जेंडर चेंज कराने वाली लड़कियों की संख्या जहां 40 (2009-10) की संख्या से 1806 (2017-18) पहुंच गई है वहीं, लड़कों की संख्या 57 से 713 हुई है. इसमें से 56 बच्चों की उम्र 6 साल से भी कम है.
लड़की से लड़का बनने का चलन दूसरे देशों में भी तेजी से बढ़ रहा है. हालांकि यह साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि इसके पीछे कौन सी वजहें हैं और इसका लंबे समय में क्या असर होगा.
एक अन्य सूत्र ने बताया, ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि टीनेजर लड़कियों लगता है कि लड़कों के तौर पर उनका जीवन ज्यादा आसान होगा.
सरकार जेंडर रिकग्नीशन ऐक्ट भी लाने जा रही है जिसके तहत जन्म से अलग लिंग के तौर पर अपनी पहचान कराने की अनुमति दी जाएगी.
'द फेडरलिस्ट' की रिपोर्ट के मुताबिक, डॉक्टर अब ऐसे भी मामले ले रहे हैं जहां लड़कियां अंडरऐज हैं और खुद की पहचान पुरुष के तौर पर करती हैं. ये लड़कियां ब्रेस्ट का दो-दो बार ऑपरेशन करा रही हैं ताकि ब्रेस्ट डिवलेप होने के ट्रामा से बच सकें.
अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक, यूएस में
कुछ डॉक्टर्स 13 साल की लड़कियों का दो बार ऑपरेशन कर रहे हैं. इसका
स्पष्टीकरण जेंडर डिस्फोरिया (ट्रांसजेंडरिजम) से दिया जाता है, यानी
लड़कियां खुद की पहचान पुरुष के तौर पर करती हैं और इसीलिए वे लड़कों की
तरह अपने शरीर को भी बनाना चाहती हैं.
'द टेलिग्राफ' की रिपोर्ट के मुताबिक, कई शिक्षाविदों ने चेतावनी दी है कि स्कूलों में ट्रांसजेंडर मुद्दों को प्रोत्साहित कर बच्चों के दिमाग में संशय के बीज बोए जा रहे हैं और बच्चों को अपनी लैंगिक पहचान पर सवाल खड़े करने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है.
'वुमन वर्सेज फेमिनिजम' के लेखक डॉ. जोना विलियम्स ने बताया, स्कूल बच्चों को इस बात के लिए भी प्रेरित कर रहे हैं कि वे शक करें कि वे असल में लड़का हैं या लड़की.
फैमिली थेरेपिस्ट डॉ. लिंडा मिंटल ने सीबीएन न्यूज को बताया, बच्चे अक्सर अपनी जेंडर आइडेंटिटी को लेकर कंफ्यूज हो जाते हैं लेकिन जल्द ही वह खुद की पहचान ढूंढ लेते हैं.
मिंटल का कहना है कि बच्चों के दिमाग में अक्सर कई ख्याल आते हैं और वे अपोजिट जेंडर की पहचान के बारे में सोचते हैं लेकिन समय के साथ खुद ही अपनी समस्याएं सुलझा लेते हैं. हालांकि दिक्कत ये है कि अगर किसी पल के ख्याल पर हम उन्हें हार्मोन थेरेपी और जेंडर रिएसाइनमेंट सर्जरी जैसे जिंदगी बदलने वाले फैसलों के लिए आगे बढ़ने के लिए कह रहे हैं, उन्हें जेंडर से जुड़े सवालों का जवाब ढूंढने के लिए कठिन और नाटकीय कदम उठाने को प्रोत्साहित कर रहे हैं तो ये खतरनाक है.
जेनेट मिलर (बदला हुआ नाम) तब बहुत हैरान रह गई थीं जब उनकी बेटी रैसेल ट्रांसजेंडर के तौर पर सामने आई. जेनेट एक फेमिनिस्ट हैं और उन्होंने अपनी बेटी की परवरिश बिना किसी लैंगिक भेदभाव के की. रैसेल बचपन में खूब खेलती थी और टीनेजर में उसने एक लड़की को डेट भी किया लेकिन मिस मिलर तब हैरान रह गईं जब उनकी बेटी ने कहा कि वह टेस्टोस्टरॉन लेकर और भी ज्यादा मैस्कुलिन बॉडी चाहती हैं और अपने ब्रेस्ट का ऑपरेशन कराना चाहती है.
जेनेट ने बताया, 'उसने इससे पहले एक बार भी नहीं कहा था कि वह लड़कों की
तरह महसूस करती है, वह हमेशा से लड़की होने को पसंद करती थी.'
सबसे पहले किशोरों में जेंडर डिस्फोरिया के लक्षण सामने आते हैं. यह एक मेडिकल टर्म है जिसमें किसी को यह लगता है कि उसका शरीर उसके जेंडर में फिट नहीं बैठता है और इस वजह से तनाव में आ जाता है. लेकिन पिछले कुछ दशकों में ज्यादा टीनेजर्स जेंडर डिस्फोरिया का अनुभव कर रहे हैं. पहले जहां युवाओं में लड़कों की संख्या ज्यादा होती थी, वहीं अब लड़कियां ज्यादा आगे हैं. 2009 में ब्रिटेन जेंडर आईडेंटिटी डिवलेपमेंट सर्विस में दर्ज युवाओं में 41 फीसदी लड़कियां थीं, वहीं 2017 में यह प्रतिशत 69 हो गया.
ब्राउन यूनिवर्सिटी में सोशल साइंसेज की असिस्टेंट प्रोफेसर लिजा लिटमैन इस बारे में जानने को उत्सुक थीं कि इसके पीछे की वजहें क्या है. उन्होंने पाया कि कई पैरेंट्स बच्चों में एक नए तरह के व्यवहार को देख रहे हैं- बचपन में बिना किसी जेंडर डिस्फोरिया के अचानक से युवा यह ऐलान कर रहे हैं कि वे ट्रांसजेंडर हैं या कई अपने दोस्तों के ऐलान के बाद ऐसा कर रहे हैं.
पैरेंट्स पर किए सर्वे के बाद पाया गया कि 87 फीसदी बच्चे ऑनलाइन ज्यादा समय बिताने के बाद ट्रांसजेंडर की पहचान को सामने लाए. जो बच्चे ट्रांसजेंडर रूप में सामने आए, वे ज्यादा पॉपुलर हो गए. मिलर की बेटी रैसेल ने कहा कि जब उसने अपने सभी ऑनलाइन दोस्तों को इस बारे में बताया तो उन लोगों ने उसे बधाइयां दीं. यह 'वेलकम होम' जैसा था. हालांकि इस स्टडी की कड़ी आलोचना की जा रही है.
रैसेल अब 21 साल की है और उसने डिप्रेशन से जूझने और यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए ट्रांस आइडेंटिटी अपनाने का विचार बदल दिया है. थेरेपी के बाद अब उसका जेंडर डिस्फोरिया गायब हो चुका है. अगर उसकी मां ने 16 की उम्र में उसकी जेंडर आइडेंटिटी के फैसले पर सहमति दे दी होती तो वह भी कई तरह के मेडिकल ट्रांजिशन से होकर गुजरी होती. हालांकि अब वह ऐसा कुछ चाहती ही नहीं है.