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रिलेशनशिप

ओशो क्यों कहते थे- भारतीयों को सेक्स से मत रोको

ओशो क्यों कहते थे- भारतीयों को सेक्स से मत रोको
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सेक्स गुरु के नाम से प्रसिद्ध भारत के धर्म गुरु ओशो रजनीश का जन्मदिन 11 दिसंबर को मनाया जाता है. ओशो के अनुयायी उनका जन्मदिन मोक्ष दिवस के रूप में भी सेलिब्रेट करते हैं. अपने विचारों को खुलकर दुनिया के सामने रखने वाले ओशो का जीवन विवादों से भरा रहा है. उनका 'संभोग से समाधि की ओर' विचार काफी प्रसिद्ध हुआ. आइए जानते हैं ओशो क्यों भारतीयों को दुनिया का सबसे कामुक व्यक्ति मानते थे.
ओशो क्यों कहते थे- भारतीयों को सेक्स से मत रोको
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ओशो कहते हैं- मैं युवकों से कहना चाहूंगा कि तुम जिस दुनिया को बनाने में लगे हुए हो, उसमें यौन संबंधों को वर्जित मत करना. नहीं तो आदमी और भी कामुक से कामुक होता चला जाएगा. मेरी यह बात देखने में बड़ी उलटी लगेगी. लोग चिल्‍ला-चिल्‍ला कर घोषणा करते हैं कि मैं लोगों में काम का प्रचार कर रहा हूं. सच्‍चाई उलटी है कि मैं लोगों को काम से मुक्‍त करना चाहता हूं और प्रचार वे कर रहे हैं. उनका प्रचार दिखाई नहीं पड़ता क्‍योंकि हजारों साल की परंपरा से उनकी बातें सुन-सुन कर हम अंधे और बहरे हो गए है. इसलिए आज जितना कामुक आदमी भारत में है. उतना कामुक आदमी पृथ्‍वी के किसी कोने में नहीं है.
ओशो क्यों कहते थे- भारतीयों को सेक्स से मत रोको
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एक शिष्य के सवाल के जवाब देते हुए ओशो ने कहा, 'अभी मैं एक गांव में था और कुछ बड़े विचारक और संत-साधु मिलकर अश्लील पोस्टर विरोधी एक सम्मेलन कर रहे थे. तो उनका ख्याल है कि अश्लील पोस्टर दीवार पर लगता है. इसलिए लोग कामवासना से परेशान रहते हैं. जब कि हालत दूसरी है. लोग कामवासना से परेशान हैं, इसलिए पोस्टर में मजा है. यह पोस्टर कौन देखेगा? पोस्टर को देखने कौन जा रहा है?'
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ओशो ने आगे कहा, 'पोस्टर को देखने वही जा रहा है, जो स्त्री-पुरुष के शरीर को देख ही नहीं सका. जो शरीर के सौंदर्य को नहीं देख सका, जो शरीर की सहजता को अनुभव नहीं कर सका, वह पोस्टर देख रहा है. पोस्टर इन्हीं गुरुओं की कृपा से लग रहे हैं, क्योंकि ये इधर स्त्री-पुरुष को मिलने-जुलने नहीं देते, पास नहीं आने देते. इसी का परिणाम है कि कोई गंदी किताब पढ़ रहा है, कोई गंदी तस्वीर देख रहा है, कोई फिल्म बना रहा है. क्योंकि आखिर यह फिल्म कोई आसमान से नहीं टपकती, लोगों की जरूरत है.'
ओशो क्यों कहते थे- भारतीयों को सेक्स से मत रोको
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इसलिए सवाल यह नहीं है कि गंदी फिल्म क्यों है, सवाल ये है कि लोगों में जरूरत क्यों है? यह तस्वीर जो पोस्टर लगती है, कोई ऐसे ही मुफ्त पैसा खराब करके नहीं लगाता, इसका कोई उपयोग है. इसे कहीं कोई देखने को तैयार है, मांग है इसकी. वह मांग कैसे पैदा हुई है? वह मांग हमने पैदा की है. स्त्री-पुरुष को दूर कर वह मांग पैदा हुई. अब वह मांग को पूरा करने जब कोई जाता है तो हमें गड़बड़ लगती है. तो उसके लिए और बाधाएं डालते हैं. उसको जितनी वे बाधाएं डालेंगे, वह नए रास्ते खोजता है मांग के. क्योंकि मांग तो अपनी पूर्ति मांगती है.
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मेरे एक डॉक्‍टर मित्र इंग्‍लैण्‍ड के एक मेडिकल कॉन्फ्रेंस में भाग लेने गए थे. वाइट पार्क में उनकी सभा होती थी. कोई 500 डॉक्‍टर इकट्ठे थे. बातचीत चलती थी. खाना-पीना चलता था. लेकिन पास की बेंच पर एक युवक और युवती गले में हाथ डाले अत्‍यंत प्रेम में लीन आंखे बंद किए बैठे थे. उन मित्र के प्राणों में बेचैनी होने लगी. भारतीय प्राण में चारों तरफ झांकने का मन होता है. अब खाने में उनका मन न रहा. अब चर्चा में उनका रस न रहा. वे बार-बार लौटकर उस बेंच की ओर देखने लगे. पुलिस क्‍या कर रही है. वह बंद क्‍यों नहीं करती ये सब. ये कैसा अश्‍लील देश है. यह लड़के और लड़की आंख बंद किए हुए चुपचाप 500 लोगों की भीड़ के पास ही बेंच पर बैठे हुए प्रेम प्रकट कर रहे है. कैसे लोग हैं. यह क्‍या हो रहा है. यह बर्दाश्‍त के बाहर है. पुलिस क्‍या कर रही है. बार-बार वहां देखते.
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पड़ोस के एक ऑस्‍ट्रेलियन डॉक्‍टर ने उनको हाथ का इशारा किया ओर कहा, बार-बार मत देखिए, नहीं तो पुलिसवाला आपको यहां से उठा कर ले जाएगा. वह अनैतिकता का सबूत है. यह दो व्‍यक्‍तियों की निजी जिंदगी की बात है और वे दोनों व्‍यक्‍ति इसलिए 500 लोगों की भीड़ के पास भी शांति से बैठे है, क्‍योंकि वे जानते हैं कि यहां सज्‍जन लोग इकट्ठे हैं. कोई घूरेगा नहीं. आपका यह देखना अच्‍छे आदमी का सबूत नहीं है. आप 500 लोगों को देख रहे हैं, कोई भी फिक्र नहीं कर रहा. यह उनकी अपनी बात है. और दो व्‍यक्‍ति इस उम्र में प्रेम करें तो पाप क्‍या है? और प्रेम में वह आंख बंद करके पास-पास बैठे हों तो हर्ज क्‍या है? आप परेशान हो रहे है. न तो कोई आपके गले में हाथ डाले हुए है, न कोई आपसे प्रेम कर रहा है.
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वह मित्र मुझसे लौटकर कहने लगे कि मैं इतना घबरा गया कि कैसे लोग हैं. लेकिन धीरे-धीरे उनकी समझ में यह बात पड़ी कि दरअसल गलत वे ही थे. हमारा पूरा मुल्‍क ही एक दूसरे घर में दरवाजे के होल बना कर झांकता रहता है. कहां क्‍या हो रहा है.
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कौन क्‍या कर रहा है? कौन जा रहा है? कौन किसके साथ है? कौन किसके गले में हाथ डाले है? कौन किसका हाथ-हाथ में लिए है? क्‍या बदतमीजी है, कैसी संस्‍कारहीनता है. यह सब क्‍या है? यह क्‍यों हो रहा है? यह हो रहा है इसलिए कि भीतर वह जिसको दबाता है, वह सब तरफ से दिखाई पड़ रहा है. वही दिखाई पड़ रहा है.
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युवकों से मैं कहना चाहता हूं कि तुम्‍हारे मां बाप, तुम्‍हारे पुरखे, तुम्‍हारी हजारों साल की पीढ़ियां यौन संबंध से भयभीत रही हैं. तुम भयभीत मत रहना. तुम समझने की कोशिश करना उसे. तुम पहचानने की कोशिश करना. तुम बात करना. तुम इसके संबंध में आधुनिक जो नई खोज हुई है उनको पढ़ना, चर्चा करना और समझने की कोशिश करना कि सेक्‍स क्‍या है.
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क्‍या है इसका मैकेनिज्म? उसका यंत्र क्‍या है? उसका यंत्र क्‍या है? क्‍या है उसकी आकांक्षा? क्‍या है उसकी प्‍यास? क्‍या है प्राणों के भीतर छिपा हुआ राज? इसकी सारी की सारी वैज्ञानिकता को पहचानना. उससे भागना नहीं. आंख बंद मत करना. तुम जितना समझोगे, उतने ही मानसिक तौर पर स्‍वस्‍थ हो जाओगे.
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जैसे ही यह स्‍वीकृत हो जाता है. वैसे ही जो शक्‍ति हमारी लड़ने में नष्‍ट होती है, वह शक्‍ति मुक्‍त हो जाती है. वह रिलीज हो जाती है. और उस दिन शक्‍ति को फिर हम रूपांतरित करते है- पढ़ने में खोज में, आविष्‍कार में, कला में, संगीत में,साहित्‍य में. और अगर वह शक्‍ति सेक्‍स में ही उलझी रह जाये जैसा कि सोच लें कि वह आदमी जो कपड़े में उलझ गया है—नसरूदीन, वह कोई विज्ञान के प्रयोग कर सकता था बेचारा. कि वह कोई सत्‍य का सृजन कर सकता था? कि वह कोई मूर्ति का निर्माण कर सकता था. वह कुछ भी कर सकता था. वह कपड़े ही उसके चारों और घूमते रहते है ओर वह कुछ भी नहीं कर पाता है.
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भारत के युवक के चारों तरफ सेक्‍स घूमता रहता है पूरे वक्‍त. और इस घूमने के कारण उसकी सारी शक्‍ति इसी में लीन और नष्‍ट हो जाती है. जब तक भारत के युवक की इस रोग से मुक्‍ति नहीं होती, तब तक भारत के युवक की प्रतिभा का जन्‍म नहीं हो सकता. प्रतिभा का जन्‍म तो उसी दिन होगा, जिस दिन इस देश में सेक्‍स की सहज स्‍वीकृति हो जायेगी. हम उसे जीवन के एक तथ्‍य की तरह अंगीकार कर लेंगे—प्रेम से, आनंद से—निंदा से नहीं. और निंदा और घृणा का कोई कारण भी नहीं है.
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तथ्‍य को समझते ही आदमी कहानियों से मुक्‍त हो जाता है. और जो तथ्‍य से बचता है, वह कहानियों में भटक जाता है. जो आदमी यौन संबंध की बातों पर इशारा करके हंसता है, वह आदमी बहुत ही क्षुद्र है. कामुकता की तरफ इशारा करके हंसने का क्‍या मतलब है? उसका एक ही मतलब है कि आप समझते ही नहीं. बच्‍चे तो बहुत तकलीफ में है कि उन्‍हें कौन समझाये, किससे वे बातें करें कौन सारे तथ्‍यों को सामने रखे.
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उनके प्राणों में जिज्ञासा है, खोज है, लेकिन उसको दबाये चले जाते हैं. रोके चले जाते हैं. उसके दुष्‍परिणाम होते हैं. जितना रोकते हैं, उतना मन वहां दौड़ने लगता है और उस रोकने और दौड़ने में सारी शक्‍ति और ऊर्जा नष्‍ट हो जाती है. यह मैं आपसे कहना चाहता हूं कि जिस देश में भी इसकी स्‍वस्‍थ रूप से स्‍वीकृति नहीं होती, उस देश की प्रतिभा का जन्‍म नहीं होता. पश्‍चिम में तीस वर्षो में जो जीनियस पैदा हुआ है, जो प्रतिभा पैदा हुई है. वह यौन संबंध के तथ्‍य की स्‍वीकृति से पैदा हुई है.
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