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अपनी होने वाली दुल्हन के बारे में भारतीय पुरुषों की 9 गलतफहमियां

ज्‍यादातर पुरुषों को यह पसंद नहीं कि महिलाएं पुराने दायरों को तोड़ें. घोर पुरुषवादी इसे अपने लिए खतरा मानते हैं. इसके पीछे बड़ी वजह सदियों से चली आ रही वह सोच है, जो महिलाओं को कमतर करके देखती है.

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वक्‍त बदल गया है और महिलाएं भी खुद को बदल रही हैं. लेकिन महिलाओं को लेकर अब भी कई पुरुषों के विचार मध्‍ययुगीन समाज जैसे ही हैं. वे महिलाओं को एक ढले हुए सांचे में ही देखना चाहते हैं. ज्‍यादातर पुरुषों को यह पसंद नहीं कि महिलाएं पुराने दायरों को तोड़ें. घोर पुरुषवादी इसे अपने लिए खतरा मानते हैं. इसके पीछे बड़ी वजह सदियों से चली आ रही वह सोच है, जो महिलाओं को कमतर करके देखती है.

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शादी को लेकर भी पुरुष विशेष दृष्टिकोण रखते हैं. महिलाओं को लेकर उनका खास नजरिया होता है. उन्‍हें बताया और सिखाया जाता है महिलाओं की कमजोरी के बारे में. बचपन की यही सीख भविष्‍य की सोच का आधार बनती है. वे महिलाओं के बारे में कई पूर्वाग्रह पाल लेते हैं, जो हकीकत से बहुत अलग होते हैं.

महिलाओं को लेकर आम पुरुषों की जो धारण है, वह काफी हद तक रूढि़वादी है. महिलाएं इस विचारधारा से कहीं आगे और बेहतर हैं. इसलिए जरूरत है कि मुगालते तोड़ने की. वे मुगालते जो आपने अभी तक महिलाओं की सोच को लेकर पाल रखे हैं.

आमतौर पर पुरुषों की नजर में महिलाएं केवल तीन प्रकार की होती हैं. पहली, जिनके साथ वे टाइम पास कर सकें. ऐसी महिलाएं देखने में सुंदर, आकर्षक देह की स्वामिनी और उतने आजाद विचारों की होनी चाहिए, जितना पुरुष चाहते हैं. दूसरी श्रेणी में वे महिलाएं आती हैं, जिनकी देह आकर्षक नहीं होतीं. ऐसी महिलाओं को वे मित्रता की श्रेणी में रखना पसंद करते हैं, क्योंकि उनका रूप सौंदर्य पुरुष को मनमोहक नहीं लगता, इसलिए वे मित्रता तक ही रुक जाते हैं. तीसरी श्रेणी में 'विवाह योग्य' लड़कियां आती हैं. विवाह के लिए 'योग्य' कन्या में 'कौमार्य' बड़ी आवश्यकता है. आमतौर पर पुरुषों की जीवन इन्हीं दुविधाओं में उलझकर रह जाता है.

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ज्यादातर भारतीय पुरुष अपनी दुल्हन के बारे में इस प्रकार की 9 खास मान्यताएं रखते हैं:

1. आमतौर पर पुरुष यह सोचते हैं कि उसकी होने वाली बीबी ‘कुंवारी’ हो. उसका कभी किसी के साथ शारीरिक संबंध ना रहा हो. भले ही वे खुद कितनी ही लड़कियों के साथ ऐसा कर चुके हों. वे भूल जाते हैं कि जब सेक्‍स करने के लिए वे मंगलसूत्र पहनाने को बाध्‍यता नहीं मानते, तो आखिर महिलाओं से वे ऐसी अपेक्षा क्‍यों रखते हैं कि वह शादी तक कौमार्य संभालकर रखे.

2. वह धार्मिक प्रवृति की हो और सारी पंरपराएं मानती हो. पर कुछ लड़किया ऐसी भी होती हैं जिन्‍हें पूजा-पाठ पसंद नहीं होता, जो धार्मिक रूढि़यों में विश्‍वास नहीं करतीं. पुरुष चाहते हैं कि महिलाएं उनके लिए करवाचौथ का व्रत रखे. परिवार के सभी धार्मिक कार्यों में रुचि ले, भले ही उन्‍हें पसंद हो या न हो. वे खुद ऐसा करना पसंद न करते हों. दरअसल, आमतौर पर भारतीय पुरुष बीवी के रूप में ऐसी स्‍त्री की चाहत रखते हैं, जो उनकी सुविधा अनुसार आधुनिकता और पारंपरिकता के बीच शिफ्ट होती रहे.

3. ज्यादातर पुरुषों को लगता है कि महिलाएं सिर्फ बच्चे पैदा करने के लिए और उनके पालन-पोषण के लिए बनी हैं. लेकिन ऐसा भी नहीं है. आखिर बच्‍चे आप दोनों के हैं, तो उन्‍हें पालने की जिम्‍मेदारी सिर्फ महिलाओं की ही क्‍यों हो? आज के दौर में लड़कियां अपने करियर पर ज्यादा ध्यान देती है. वे चाहती है कि बच्चों से जिम्मेदारी उस पर देर से आए और अगर आए भी, तो उसका पाटर्नर भी उसकी इस जिम्मेदारी को साझा करे. और पार्टनर को ऐसा करना भी चाहिए. बच्‍चा आप दोनों की साझा जिम्‍मेदारी है.

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4. कहते हैं कि पुरुष के दिल का रास्‍ता उसके पेट से होकर जाता है और लगता है कि पुरुषों ने इस बात को वाकई काफी गंभीरता से लिया है. वे मानते हैं कि जिस लड़की से उनकी शादी हो रही है, उन्‍हें खाना पकाना जरूर आता होता. लेकिन, हर लड़की में यह ‘हुनर’ हो जरूरी तो नहीं. उनकी अभिरुचि और विशेषज्ञता अन्‍य क्षेत्रों में हो सकती है, लेकिन खाना पकाने में उन्‍हें दिलचस्‍पी हो यह जरूरी नहीं. उन्‍हें न तो किचन में काम करना पसंद होता है और न ही उन्‍हें इस बात को लेकर कोई मलाल ही होता है.

5. पति परमेश्‍वर वाला दौर अब गया. भूल जाइए कि आपकी एक आवाज पर आपकी पत्‍नी आपके सामने करबद्ध खड़ी हो. बस आपकी जरूरत ही उसकी प्राथमिकता हो, वे दिन अब लद गए. आज की महिलाएं अपने हितों और सिद्धांतों से समझौता नहीं करतीं. ये उनके आत्‍मविश्‍वास के कारण है. वे आर्थिक और सामाजिक रूप से समृद्ध हो रही हैं. बेशक, वे आपकी बात जरूर सुनेंगी, लेकिन उसे अपने तर्क की कसौटी पर परखकर ही उसे मानने या मना करने का फैसला करेंगी. आप जीवन की गाड़ी में उसके साथी हैं, उस गाड़ी के ड्राइवर नहीं.

6. रुढि़वादी पुरुषों की नजर में महिलाओं को करियर के बारे में ज्‍यादा नहीं सोचना चाहिए. घर के लिए पैसे कमाकर लाना पुरुष अपनी जिम्‍मेदारी या कहें अधिकार समझते हैं. वे मानते हैं कि यदि महिलाएं अपने करियर पर ज्‍यादा फोकस करेंगी, तो वे अपनी पारिवारिक जिम्‍मेदारियों से भटक जाएंगी. वे महिलाओं को घर और बच्‍चों की जिम्‍मेदारी के दायरे में ही देखना चाहते हैं. अगर, कहीं अगर महिलाओं की तनख्‍वाह पुरुषों से ज्‍यादा हो जाए, तो पुरुष अहं का सवाल बना लेते हैं.

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7. उन्हें लगता है कि उनकी होने वाली पत्नी उनके माता-पिता की पूरी देखभाल करे. पर जब बात पत्नी के मां-बाप की आती है तो वो उन्हें अपनी जिम्मेदारी से परे समझते हैं. फिर अपनी होने वाली पत्नी से ये उम्मीद करना कितना सही है.

8. पुरुषों को ये पंसद नहीं होता कि उसकी पत्नी अपने पुरुष मित्रों से दोस्ती रखें या उनसे बात करें. जबकि ये शर्ते वे खुद पर लागू होने नहीं देते.

9. उन्हें पंसद नहीं होता कि उनकी होने वाली पत्नी अधिक खुले विचारों की हो. वे नहीं चाहते कि वह सेक्‍स जैसे मुद्दों पर खुलकर बात करे. पर शायद आपने 'कॉफी विद करण' में विद्या बालन को ये बोलते हुए सुना हो कि जिस तरह पुरुष सेक्स को इन्‍जॉए करते हैं, वैसे ही महिलाएं भी सेक्स को उतना ही इन्‍जॉए करती हैं.

तो हुजूर, महिलाएं तो बदलते वक्‍त के साथ बदल गईं, अब बारी आपकी है. अपनी सोच बदलिए. महिलाएं भी उसी आबो-हवा में बड़ी हो रही हैं जिसमें कि आप. तो ज्‍यादा उम्‍मीदें पालने से अच्‍छा है कि आप खुद को दूसरों की उम्‍मीदों पर खरा उतरने लायक बनाएं.

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