रोज की तरह अस्पताल में यह एक सामान्य दिन था. तभी पिया नाम की एक युवती कुछ बेचैनी और उत्सुकता का भाव लिए मेरे क्लिनिक में आई. घबराहट में वह अपने होठों को रह-रहकर चबा रही थी. उसने मुझसे सीधे पूछा, ‘‘क्या आप मुझे ऐसा बना सकते हैं कि लोग मुझसे बात करें.’’ मैं हैरानी से उसकी तरफ देख ही रहा था कि उसने साफ-साफ बताया, ‘‘कोई भी मुझसे बात नहीं करता, सिवा मेरी नाक के बारे में बात करने के.’’
पिया का चेहरा काफी खूबसूरत था, लेकिन उसकी नाक कुछ नुकीली और लंबी थी, जिसकी वजह से लोगों की नजर सीधे उसकी नाक पर चली जाती थी. उसने अपनी नाक की रीनोप्लास्टी करवाई, जिसके बाद उसकी शिकायत दूर हो गई. उसने मुझे तहेदिल से शुक्रिया करते हुए कहा, ‘‘आपने मेरी जिंदगी बदल दी.’’
किशोर युवक-युवतियां तितलियों में तब्दील होने वाले कैटरपिलर की तरह हैं. एकाएक हरेक की अपनी अलग पहचान बन जाती है और वह आकर्षण का केंद्र होती है. बतौर प्लास्टिक सर्जन मैंने करीब से देखा है कि कोई व्यक्ति अपने रूप-रंग को लेकर किस हद तक हीन ग्रंथि का शिकार हो सकता है.
इससे उसका आत्मविश्वास कम होता है और उसका स्वाभिमान खत्म हो जाता है. किशोर उम्र के लड़के-लड़कियों के बारे में यह बात विशेष रूप से सही है. आज के किशोर पहले से ज्यादा महत्वाकांक्षी और सचेत हैं. कॉस्मेटिक सर्जरी की बढ़ती मांग इस बात का सबूत है.
हमने दिल्ली में कॉलेजों के करीब 500 छात्र-छात्राओं का सर्वेक्षण किया और शरीर की छवि और कॉस्मेटिक सर्जरी के प्रति उनके रवैए का जायजा लिया. सर्वेक्षण के नतीजे चौंकाने वाले थे. 60 फीसदी से ज्यादा उत्तरदाताओं ने चार मुद्दों पर ‘‘हां’’ में जवाब दियाः 64 फीसदी छात्र अपने रूप-रंग के कुछ पहलुओं के बारे में सजग थे.
68 फीसदी का मानना था कि उनके रूप-रंग ने विपरीत सेक्स के साथ उनके रिश्तों को किस तरह प्रभावित किया. 65 फीसदी का कहना था कि शारीरिक व्यक्तित्व नौकरी में सफलता के लिए जरूरी था और 80 फीसदी ने कहा कि उनके व्यक्तित्व में चेहरे की सुंदरता सबसे अहम है.क्या आपने सोचा है कि चेहरा इतना महत्व क्यों रखता है. दरअसल यह हमारे व्यक्तित्व का प्रतिबिंब है. दुनिया हमें चेहरे से जानती है. इसलिए आश्चर्य की बात नहीं कि हम सभी अपने चेहरे को प्रमुखता देने की हर संभव कोशिश करते हैं.
हमारे सर्वे के मुताबिक आधे से ज्यादा किशोर मीडिया द्वारा तारीफ पाने वाले कुछ लोगों की खूबसूरती से प्रभावित थे और उनके जैसा बनने की चाहत रखते थे. सर्वे में यह बात भी काफी रोचक लगी कि खूबसूरत दिखने के लिए किशोरों ने कॉस्मेटिक सर्जरी को अच्छा जरिया माना. करीब 42 फीसदी उत्तरदाताओं ने इसे बेहतर बताया और 70 फीसदी ने कहा कि अगर लोगों को उनकी कॉस्मेटिक सर्जरी के बारे में पता चल गया तो उन्हें किसी तरह की झेंप नहीं होगी.
हम आसानी से इन आंकड़ों की अनदेखी नहीं कर सकते. हममें से अधिकांश लोग अब भी कॉस्मेटिक सर्जरी को व्यर्थ की चीज मानते हैं और उसका उपयोग करने वाले लोगों को ‘‘मानसिक रूप से अस्थिर’’ करार देते हैं. मेरे क्लिनिक में बहुत से युवक अपनी नाक माइकल जैक्सन जैसी बनवाने के लिए आते हैं.
हालांकि ऐसे लोग कम ही होते हैं. हम जब उन्हें समझते हैं कि कॉस्मेटिक सर्जरी उनका व्यक्तित्व नहीं बदल सकती तो वे अक्सर मान जाते हैं और कहते हैं कि दूसरों की नकल करने की बजाए वे जिस तरह अच्छे दिखें, उन्हें वैसा ही बना दिया जाए. यहां तक कि वैज्ञानिक आंकड़े भी साबित करते हैं कि कॉस्मेटिक सर्जरी की चाह रखने वाले लोगों में बॉडी डिसमोर्फिक डिसऑर्डर (बीडीडी) यानी शारीरिक कुरूपता की हीन भावना जैसी मानसिक बीमारियां कम होती हैं-मात्र पांच फीसदी. इसका मतलब है कि कॉस्मेटिक सर्जरी की इच्छा रखने वाले लोग मानसिक रूप से पूरी तरह सामान्य हैं.
हमारा साबका आसानी से प्रभावित होने वाले उम्र के लोगों से पड़ता है. ऐसे लोग भी आते हैं, जिन पर अपने साथी और लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्धा का दबाव होता है. प्लास्टिक सर्जन के तौर पर हमें जिम्मेदार होना चाहिए और 18 साल या उससे ऊपर के युवाओं को बेवजह सर्जरी के लिए प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए. हमें उनके शुभचिंतक की तरह सोचने की जरूरत है. एक डॉक्टर के बुनियादी आदर्श को हमेशा याद रखना चाहिए कि किसी को नुक्सान मत पहुंचाओ.