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ऐसे कहें अपनी बात कि रिश्ते भी बने रहें

हम अक्सर यह सोचते हैं कि सामने वाला क्या सोचेगा, उसे कैसा महसूस होगा, कहीं हम उसका दिल न दुखा दें. अंत में हमें अपने भीतर की भावनाओं और विचारों को कुचल देना पड़ता है, हम हालातों से समझौता कर लेते हैं.

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रिलेशनशिप
रिलेशनशिप

मेरी एक दोस्त की सीनियर कुलीग हमेशा छुट्टी पर चली जाती थी और अपना पूरा काम जूनियर्स पर थोप देती थी. स्वाभाविक है कि मेरी दोस्त पर भी इसका असर पड़ता, उसे कम समय में बहुत अधिक काम करना पड़ता होता था. वह इसे लेकर कई बार दूसरों से शिकायत भी करती, पर अपनी सीनियर के सामने उसने कभी इस पर चर्चा नहीं की. उसे इस बात का डर लगता था कि कहीं सीनियर के सामने बोलने से उसके रिश्ते खराब न हो जाएं. हम अक्सर यह सोचते हैं कि सामने वाला क्या सोचेगा, उसे कैसा महसूस होगा, कहीं हम उसका दिल न दुखा दें. अंत में हमें अपने भीतर की भावनाओं और विचारों को कुचल देना पड़ता है, हम हालातों से समझौता कर लेते हैं.

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इसी विषय में मुझे अपनी एक और दोस्त कुलीग की याद आती है. ऐसी परिस्थितियों के लिए वह एक बेहतरीन उदाहरण है. मैंने कई बार देखा है कि वह बड़ी सहजता से अपने विचार दूसरों के सामने रख देती है. उसे जरा भी संकोच नहीं होता. मुझे लगता है कि यही कारण है कि लोग उससे वाद-विवाद करना जल्द ही बंद कर देते हैं और उसकी बातों से सहमत भी हो जाते हैं. लेकिन अब मैंने उसका सार ढूंढ निकाला है. मैंने जान लिया है कि आखिर उसके पास कौन सा जादू है. उसके पास अपने विचारों को व्यक्त करने का एक अच्छा तरीका है. वह आदरपूर्वक और पूरी सावधानी से अपनी बात कहती है.

किसी से आग्रह करने का सही तरीका यही है कि आप अपनी आवाज उठाएं लेकिन सावधानी रखें कि हम किसी का मुखर विरोध न करें, किसी की भावनाओं को चोट न पहुंचाएं. बस इतना ही काम है और इसे आप भी कर सकते हैं.

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पहले अभ्यास कर लेना बेहतर

यदि आप किसी से कुछ कहना चाहते हैं और आपके मन में भय है तो कहने से पहले आपको अभ्यास कर लेना चाहिए. अभ्यास का तरीका यह है कि आप शीशे के सामने खड़े हों और जोर से बोलें. अपनी बॉडी-लैंग्वेज पर ध्यान दें. अपने स्वर के लेवल और बॉडी-लैंग्वेज को जितना हो सके, सुधारने की कोशिश करें. आप लिखकर, उसे पढ़कर भी अभ्यास कर सकते हैं. अभ्यास का तरीका कुछ भी हो सकता है, परंतु अभ्यास जरूरी है. अभ्यास हमें समूह में भी अपनी बात खुलकर कह सकने के लिए तैयार कर देता है.

मेरी एक दोस्त है जिसे अभिनय करना बेहद पसंद है, परंतु वह अपने पति से इस बारे में बात नहीं कर पा रही थी. वह चाहती थी कि उसे थियेटर के लिए एक ब्रेक मिले, लेकिन उसके मन में डर था. डर इस बात का कि कहीं उसके पति इस पर नाराजगी जाहिर न करें. अंत में उसे लगा कि वह अपने पति से इस बाबत बात करेगी. तो फिर मेरी दोस्त ने अपने मन में ही रिहर्सल की और अपने पति को अपने विचारों से अवगत करा दिया. उसने पाया कि जैसा कठिन वह सोच रही थी, कहना उससे बहुत आसान था और उस पर पति का रिएक्शन भी बहुत सहज था.

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सामने वाले की प्रतिक्रिया के बारे में सोचकर भी हम अक्सर अपने विचारों का गला घोंट देते हैं. मन में कई तरह के प्रश्न उमड़ते हैं. पर, सच यह है कि यदि हम अपनी बात को बिना टकराव का रास्ता चुने आदरपूर्वक और सावधानी से कहें, तो अधिकतर बाद सामने वाले की प्रतिक्रिया आदरपूर्ण होगी.

क्या ध्यान रखना जरूरी

खुद को व्यक्त करते वक्त हमें एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी हमसे कम या नीचा नहीं है. आप जिससे भी बात करें, उसके प्रति आदर बनाए रखें. ऐसा करने से सामने वाला धैर्य बनाए रखता है, आपकी बात को सुनता है और गौर करता है. उसे जो बात अच्छी लगती है, उसकी तारीफ भी करता है. अपनी बात को कहते वक्त साहसी बनने की जरूरत है लेकिन दूसरे की भावनाओं की कद्र करते हुए.

कई बार बोलते वक्त हमारी आवाज ऊंची हो जाती है और हमारी उग्रता झलकने लगती है. ऐसा न होने दें. बोलते वक्त आवाज का स्तर उतना ही होना चाहिए, जितना कि सामने वाला आसानी से सुन सके. किसी का मजाक न उड़ाएं, खासकर तब, जब आप एक समूह में हों.

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