बंबई उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि हनीमून के दौरान अपने जीवनसाथी के साथ सेक्स से इनकार करना किसी प्रकार का अत्याचार नहीं है. अदालत ने इसके साथ ही इस आधार पर एक दंपति की शादी को भंग करने के संबंध में परिवार अदालत द्वारा दिए गए फैसले को भी खारिज कर दिया.
अदालत ने यह भी कहा कि यदि एक पत्नी शादी के तुरंत बाद कभी कभार कमीज और पैंट पहनकर ऑफिस जाती है और ऑफिस के काम के संबंध में शहर जाती है तो यह उसके पति के प्रति उसका अत्याचार नहीं है.
न्यायाधीश वी के ताहिलरमानी और न्यायाधीश पी एन देशमुख ने इस सप्ताह की शुरुआत में दिए गए अपने एक फैसले में कहा, शादीशुदा जिंदगी का संपूर्णता में आकलन किया जाना चाहिए और एक विशेष अवधि में इक्का-दुक्का घटनाएं अत्याचार नहीं मानी जाएंगी.
पीठ ने कहा कि बुरे व्यवहार को लंबी अवधि में देखा जाना चाहिए जहां किसी दंपति में से एक के व्यवहार और गतिविधियों के कारण रिश्ते इस सीमा तक खराब हो गए हों कि दूसरे पक्ष को उसके साथ जिंदगी बिताना बेहद मुश्किल लगे और यह मानसिक क्रूरता के बराबर हो.
पीठ ने आगे कहा, केवल चिड़चिड़ाहट, झगड़ा और सभी परिवारों में आए दिन होने वाली सामान्य छोटी मोटी घटनाएं शादीशुदा जिंदगी में होने मात्र से अत्याचार के आधार को तलाक देने के लिए पर्याप्त नहीं माना जा सकता.
अदालत 29 वर्षीय विवाहिता द्वारा दाखिल अपील पर सुनवाई कर रही थी जो दिसंबर 2012 के परिवार अदालत के आदेश से परेशान थी. परिवार अदालत ने क्रूरता के आधार पर उसके पति द्वारा की गयी अपील पर तलाक का आदेश दिया था.