अजनबीपन ने कोचिंग की राजधानी के लोगों को रोमांस और रोमांच का लाइसेंस दे दिया.
इक्कीस साल की अनुलेखा 15 महीने पहले रायपुर से घुमावदार ट्रेन यात्रा कर कोटा पहुंची थीं, अपने जैसे हजारों होनहार युवाओं के बीच एक सुखद गुमनामी की तलाश में. अपने घर के एहतियाती परिवार से आजाद इस आकर्षक युवती ने एलेन करियर्स कोचिंग सेंटर में पहले ही हफ्ते के अंत में एक ब्वॉयफ्रेंड पा लिया. अपने दोस्तों से काफी निराश वह कहती है, ‘‘खुद को तलाशने में पूरा साल लगा दिया. इस साल मैं पढ़ाई करूंगी.’’ कई दोस्त उसके चौथे ब्वॉयफ्रेंड की जगह लेने की कोशिश में हैं.
कहावत है कि चंबल का पानी जो भी पुरुष या औरत पी ले तो वह बागी हो जाता है. चंबल नदी जो कभी मान सिंह, निर्भय गुर्जर, सुल्ताना और फूलन देवी जैसे खून के प्यासे डकैतों को जन्म दे चुकी है, आज नए तरह के बागी पैदा कर रही है. ऐसे बागी जो रूढ़िवादी मान्यताओं को चुनौती दे रहे हैं. यह एक नई तरह की काम-वासना का शांत लेकिन सुखद विस्फोट है.
कोटा की करीब 10 लाख की आबादी में हर साल दसवां हिस्सा और आ जुड़ता है. दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से हर साल एक लाख नए चेहरे आ जाते हैं. शहर के सबसे बड़े ऐसे कोचिंग प्रतिष्ठान एलेन में हर साल करीब 50,000 छात्र प्रवेश लेते हैं और उसकी सालाना कमाई करीब 250 करोड़ रु. की है.
अनुमान है कि छात्र किराए, खाने-पीने और यातायात आदि पर खर्च कर स्थानीय अर्थव्यवस्था में हर साल ट्यूशन फीस (सालाना 1,000 करोड़ रु.) के करीब दोगुने के बराबर योगदान करते हैं. इसलिए इस बात पर कम ही अचरज होता है कि शहर के स्थानीय निवासी अपने ‘‘बच्चों को बचाने’’ के लिए हद से बाहर जाकर प्रयास कर रहे हैं. ऐसे तमाम किस्से सुनने को मिलते हैं कि नशे में धुत लड़कियों को ऑटो ड्राइवर सुरक्षित घर तक छोडऩे जा रहे होते हैं तो कोचिंग की छात्रा होने का फायदा उठाने की कोशिश करते स्थानीय बदमाशों को काबू करते सिपाही दिख जाते हैं.
शहर के युवा जोड़ों के लिए शाम को घूमने की अनिवार्य जगह सिटी मॉल के दुकानदार ज्यादा दयालु दिखते हैं. नदी किनारे बनाए गए हरित बसेरे चंबल गार्डेन में जब युवा कामेच्छा के वशीभूत हो झाडिय़ों में घुस जाते हैं तो सुरक्षा गार्ड दूसरी तरफ देखने लगते हैं.
एनएसयूआइ के पूर्व प्रमुख और कांग्रेस नेता 48 वर्षीय नरेश हाड़ा को इस सर्वे के निष्कर्षों पर बहुत अचरज नहीं होता, न तो इस निष्कर्ष पर कि सर्वे में शामिल शहर के 63 फीसदी लोगों ने गुदा मैथुन (एनल सेक्स) को आजमाने की बात स्वीकार की है. वे कहते हैं, ‘‘शादियां देर से हो रही हैं. लड़के-लड़कियां जब तक सेटल होने को सोचते हैं तब तक 30 से ऊपर के हो जाते हैं. लेकिन उनके हार्मोंस तो जोर मारेंगे ही.’’ राजपूत जाति के हाड़ा बिल्कुल बिना किसी शिकन के कहते हैं, ‘‘मैं अगर अपने बेटे के लिए सुरक्षित कौमार्य वाली दुल्हन लाने पर जोर दूं तो यह एक तरह से अनुचित बात ही मानी जाएगी.’’
मॉल के एक कॉफी शॉप में बैठे तीन पुराने दोस्त 27 वर्षीय के सचींद्र सिंह, 37 वर्ष के अमित पाटनी और 28 वर्षीय के अमित सिंह यह स्वीकार करते हैं कि वे अपने स्कूल के दिनों से तुलना करें तो कोटा को तो अब पहचानना ही मुश्किल है. डेटिंग और बूंदी रोड या बारां रोड पर लांग ड्राइव पर जाना यहां आम बात है. लेकिन उनके मुताबिक असल बदलाव तो ‘बंद दरवाजों के पीछे’ हो रहा है.
पुराने दिनों में कोटा को मिथकीय तौर पर ऐसा स्थान बताया जाता था जहां ‘बाघ और बकरी साथ-साथ शांति से रह सकते हैं.’’ कोचिंग छात्रों ने अब शहर को नई पहचान देते हुए उसे ‘‘किस ऑफ दि एंजेल’’ (केओटीए) की जगह बना दी है, जहां कुछ भी संभव है.