रात के नौ बजे थे और मुखर्जी नगर (वेस्ट) के मेरे हॉस्टल के बाहर हलचल मची थी. मैं बालकनी में गया. वहां देखा कि ढेर सारे जवान लड़कों का हुजूम बास्केटबॉल कोर्ट पार करके चला जा रहा था. सब साइंस ढाबा के पास इकट्ठे हो रहे थे. नौ बजे के बाद जब लड़कियां अपने ब्लॉक में कैद हो जाती हैं, साइंस ढाबा ‘‘लड़कों के अड्डे’’ में तब्दील हो जाता है.
यहां हर तरह का अश्लील मजाक, मसखरापन, छेडख़ानी और चुहलबाजी होती है. कॉलेज की असली पढ़ाई तो यहीं शुरू होती है. कॉलेज पहुंचे नए लड़कों को ‘‘ब्लैकस्मिथ सांग’’ गाने के लिए मजबूर किया जाता है. यह स्टीफंस के लड़कों के महागान सरीखा है. वहीं सीनियर लड़के गर्म चाय की चुस्कियों के बीच नए-नए खुड़पेच और कारगुजारियां सोचा करते हैं.
नए शब्दों की खोज की जाती है. एमए का छात्र होने के कारण मैं लड़कों के इस अनुष्ठान से तो मुक्त था, लेकिन फिर भी जाहिर था कि यह जगह मेरे लिए नहीं है. मैं उनके मुहावरे और उनके अंदाज से वाकिफ नहीं था. उनमें से एक होने के लिए उनकी बातों को ध्यान से सुनना और सीखना जरूरी है.
इसलिए मैं ढाबे के खानसामा जेपी जी को देखकर धीरे से मुस्कराता और इस कूल अंदाज को सीखने की मशक्कत करता. सेमेस्टर का एक महीना गुजरते-न-गुजरते ये शब्द अपने आप ही मेरे मुंह से झड़ने लगे. यहां कुछ ऐसे ही शब्द और मुहावरे हैं, जो लड़कों की कल्पनाशीलता का कमाल हैं. खतरनाक, मजाकिया और कुछ तो बिल्कुल अश्लील. आप अपने पर इसे
पढ़ सकते हैं.
-साथ में राधिका शर्मा
( लेखक इंद्र शेखर सिंह ने हाल ही में दिल्ली यूनिवर्सिटी से मास्टर्स की पढ़ाई पूरी की है)