एक लंबे समय बाद निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म 'मिर्ज़िया' आई है. फिल्म में अनिल कपूर के बेटे हर्षवर्धन कपूर और सैयमी खेर ने मुख्य भूमिकाओं में है.
फिल्म का ट्रेलर रिलीज हो चुका है और खासा मशहूर भी. फिल्म पंजाब की एक लोककथा पर आधारित है. अमूमन प्यार की मिसाल देने के लिए लोग लैला-मजनूं, हीर-रांझा, सोहनी-माहीवाल, रोमियो-जूलियट की ही बातें करते हैं. बहुत कम लोगों को ही मिर्ज़ा-साहिबां की प्रेम कहानी पता है.
मिर्ज़ा और साहिबां की कहानी में जहां प्यार है, समर्पण है, विद्रोह है, तकरार है वहीं अंत ऐसा है, जो किसी की भी आंखों में आंसू ला दे.
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मिर्ज़ा और साहिबां ने बचपन साथ खेलते हुए बिताया. साथ पढ़ाई की. साहिबां की खूबसूरती जहां शब्दों से परे थी वहीं मिर्ज़ा का निशाना अचूक था. घोड़े पर बैठते ही वो हवा से बातें करने लगता.
लेकिन हर कहानी की तरह इस कहानी में भी विलेन थे. विलेन दूसरे नहीं अपने थे. साहिबां के भाइयों को जब मिर्ज़ा और उसके प्रेम-संबंध के बारे में पता चला तो उन्होंने उस पर बंदिशें लगा दीं. दूसरी जगह उसकी शादी तय कर दी. लेकिन...
प्यार करने वालों से बड़ा विद्रोही भी तो कोई नहीं होता. साहिबा की शादी वाले दिन ही मिर्ज़ा उसे भगा ले गए. दोनों घोड़े पर सवार बहुत दूर निकल आए. सोचा...थोड़ा आराम करके आगे बढ़ेंगे.
दोनों ने एक पेड़ की छांव में रुकना सही समझा. मिर्ज़ा लेटा ही था कि उसकी आंख लग गई. इधर साहिबा को डर सताने लगा कि अगर मिर्ज़ा और उसके भाइयों का सामना हो गया तो...
उसके लिए दोनों ही प्यारे थे. वो न तो मिर्ज़ा का खून बहते देख सकती थी और न ही अपने भाइयों का. उसने इस स्थिति से बचने के लिए मिर्ज़ा के सारे तीर तोड़ डाले.
साहिबा ने सोचा तीर नहीं होंगे तो मिर्ज़ा वार नहीं कर पाएंगे और उसके भाइयों को भी उन पर दया आ जाएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं...
साहिबा के भाई वहां पहुंच गए और मिर्ज़ा को चारों तरफ से घेर लिया. मिर्ज़ा के पास तीर नहीं थे फिर भी वो बहादुरी से लड़े. पर दर्जनों लोगों से लड़ते-लड़ते थक गए और बुरी तरह घायल हो गए. जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई.
साहिबां का क्या हुआ..? ये सवाल अक्सर उठता है. कुछ लोगों का मानना है कि मिर्ज़ा ने अंत में साहिबा को माफ कर दिया था और उससे वादा लिया था कि वो जिंदा रहेगी.
वहीं कुछ लो ये भी मानते हैं कि मिर्ज़ा के मरते ही साहिबां ने भी खुद को तलवार से मार दिया था. राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म का अंत किस धारणा के साथ होगा, इसके लिए तो फिल्म देखनी हाेगी. लेकिन मिर्ज़ा और साहिबां की कहानी सच्चे प्यार की एक अमर मिसाल है.