पुरुषों में बारे में कुछ धारणाएं बना ली गई हैं. कोई जरूरी नहीं कि वे सच के करीब ही हों. जानिए पुरुषों के बारे में 10 मिथक और उनका निराकरण...
हम संवेदनहीन हैं.
कतई नहीं. अधिकांश पुरुष उन चीजों के बारे में बहुत गहराई से और सशक्त ढंग से महसूस करते हैं, जिनके बारे में वे चिंता करते हैं. विश्वास न हो, तो जब सचिन तेंडुलकर कवर ड्राइव लगाने जा रहे हों, उस समय टेलीविजन के सामने से निकलकर देख लीजिए.
हम जिम में तैयार शरीर के प्रति आसक्त हैं.
कुछ हद तक सही है. जिम में रॉड पर ढेर सारी प्लेट्स लगा कर लेटे होने का आशय महिलाओं पर रंग जमाना होता है. लेकिन वे लोग यही काम शरीर के निचले भाग के लिए नहीं करते हैं. परिणामस्वरूप चौड़ी छाती वाले पुरुषों की ऐसी पीढ़ी तैयार हुई है, जिसकी टांग मुर्गे सरीखी होती हैं.
हममें फैशन का बोध है.
सिवाय इसके कि इसे हमें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने की जरूरत होती है.
हम हर तकनीकी चीज के प्रति मुग्ध हैं.
कुछ प्रतिशत हैं. बाकी लोग उन्हें उसी तरह लटकाए घूमते हैं, जैसे वह डिजाइनर क्लच बैग का पुरुष संस्करण हो.{mospagebreak}
हम सिर्फ बढ़िया शरीर वाली महिलाओं से प्रेम करते हैं.
जरा भी नहीं. किसी पुरुष को किसी महिला का दीवाना बनाने वाली चीज यह होती है कि वह महिला किस ढंग से पेश आती है, किस तरह वह स्वयं पर नियंत्रण रखती है और वह कितनी स्वतंत्र है. इसके अलावा हल्का-सा हास्य बोध जरूरी है.
शॉपिंग के लिहाज से हम अच्छे साथी नहीं हैं.
बात सिर्फ इतनी-सी है कि हम इस प्रक्रिया को समझते नहीं हैं. किसी ओपनिंग बैट्समैन से शादी करके देख लीजिए और फिर उसे बैट्स की दुकान से इंग्लिश विलो का सिर्फ एक बल्ला आधे घंटे तक हवा में हिलाने, उससे हवा में ही तमाम चौके-छक्के लगाने के बाद खरीदते हुए देख लीजिए.
मेट्रोसेक्सुअल पुरुष बहुत अच्छे होते हैं.
हां, लेकिन बात यहीं खत्म हो जाती है. संवेदनशीलता का अर्थ सिर्फ यह है कि जब स्त्री को आपकी जरूरत हो, तब आप पहुंच जाएं और जब वह वहां से हटना चाहें, तो उसे जाने दें.
हम बेतरतीब हैं.
शरीर से निकलती दुर्गंध और बिना धुली जुराबों के अंधभक्त चंद लोगों को छोड़कर अधिकांश पुरुष बिल्कुल साफ सुथरे होते हैं. बात सिर्फ इतनी-सी है कि साफ सुथरे होने की उनकी समझ महिलाओं की समझ से मेल नहीं खाती है.{mospagebreak}
हम '70 और '80 वाले दशकों के पुरुषों की तुलना में पारदर्शी हैं.
लड़के लड़के ही रहेंगे. अगर आप यह झूठ बोल रहे हैं कि आप किसी गहरे विचार विमर्श में फंसे हैं, जबकि आप वास्तव में फार्मूला वन रेस देख रहे हैं, तो ऐसा ही सही.
हम फिल्में देखने जाने के लिहाज से फिसड्डी हैं.
मैंने ऐसे कई जोड़े देखे हैं, जो हाथों में हाथ डाले थियेटरों में आते हैं और वैसे ही आंखें मिचमिचाते हुए बाहर निकल आते हैं.
(लेखक इन दिनों एक संकलन का संपादन कर रहे हैं.)