एक तरफ तो देश भर में नेत्र दान को बढ़ावा देने के लिए मुहिम चल रही है मगर दान में मिली आंखों का इस्तेमाल तक नहीं हो पा रहा है. नेत्र दान करने वालों को कई मामलों में यह पता नहीं होता कि नेत्र को अगर समय पर अस्पताल न पहुंचाया जाए तो वह खराब हो जाती है. कई बार रखरखाव की व्यवस्था में कमियों के चलते भी कॉर्निया खराब हो जाता है.
दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और सेंटर ऑफ ऑपथैलमिक साइंस से जुड़े डॉ. शक्ति कुमार गुप्ता ने इस संबंध में जानकारी दी. उनके मुताबिक एम्स को 2009 में दान में मिलने वाली आंखों की संख्या थी 680 थी. चार साल बाद 2013 में यह बढ़कर 1321 हो गई. मगर दान में मिली मगर इस्तेमाल न की जा सकी आंखों की संख्या का अनुपात भी इन चार सालों में बढ़कर 185 से 400 ही हो पाया है.
नेत्र दान के बरबाद होने की एक अहम वजह है आंखों में कुछ रोगों का संक्रमण होना. सही समय से आई बैंक तक न पहुंच पाना भी आंख के खराब होने की एक वजह होती है. डॉ. गुप्ता के मुताबिक व्यक्ति की मौत के बाद शरीर से आंखों को 6 घंटे के अन्दर निकालना जरूरी है. इसे जरूरतमंद व्यक्ति के शरीर में 24 घंटे के अंदर लगाया जाना भी जरूरी है.
डॉ. गुप्ता के मुताबिक आंख निकालने के बाद उसकी एचआईवी, हैपेटाइटिस बी और दूसरे एसटीडी रोगों की जांच होती है. इसके बाद इसे इस्तेमाल के लिए आगे भेजा जाता है. कई बार बुजुर्ग व्यक्तियों की आंखें दान की जाती हैं. मगर डॉक्टरों के मुताबिक 70 से ज्यादा उम्र के व्यक्तियों की आंख ज्यादा काम की नहीं होती. उनकी आंखों का कॉर्निया पहले ही धुंधला हो चुका होता है. डॉक्टरों का कहना है कि युवाओं को नेत्र दान के लिए ज्यादा प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है.
अगर नेत्रहीनता से जुड़े आंकड़े देखें तो इस मसले की अहमियत नजर आती है. एक आंकड़े के मुताबिक दुनिया में साढ़े चार करोड़ नेत्रहीन व्यक्ति हैं. भारत में डेढ़ करोड़ नेत्रहीन व्यक्ति हैं. डॉक्टरों का कहना है कि इसमें से 75 फीसदी लोगों का इलाज किया जा सकता है. मगर इसके लिए समुचित इलाज और एक स्वस्थ कॉर्निया की जरूरत है. एक अनुमान के मुताबिक देश में इलाज के लिए हर साल ढाई लाख कॉर्निया की जरूरत है. मगर दान के जरिए मिलती हैं सिर्फ 25 हजार कॉर्निया. इसमें में भी इस्तेमाल लायक आंखों का आंकड़ा तो और कम है.