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त्‍वचा के लिए बेहद फायदेमंद है 'हर्बल गुलाल'

होली खेलने वाले लोग अब त्वचा की बीमारियों से बच सकते हैं, क्योंकि जादवपुर विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने एक ऐसा सफेद हर्बल ‘गुलाल’ तैयार किया है, जो त्वचा के लिए पूरी तरह सुरक्षित होने के साथ साथ बीमारियों से इसका बचाव भी करेगा.

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होली
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होली खेलने वाले लोग अब त्वचा की बीमारियों से बच सकते हैं, क्योंकि जादवपुर विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने एक ऐसा सफेद हर्बल ‘गुलाल’ तैयार किया है, जो त्वचा के लिए पूरी तरह सुरक्षित होने के साथ साथ बीमारियों से इसका बचाव भी करेगा.

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अब अनुसंधानकर्ता इस गुलाल का पेटेंट कराने की योजना बना रहे हैं. विश्वविद्यालय के उप कुलपति सिद्धार्थ दत्ता ने बताया कि बाजार में बिकने वाले अन्य रंग बिरंगे गुलालों के विपरीत यह सफेद गुलाल टैल्कम पाउडर जैसा दिखता है. इसमें ऐसे तत्व नहीं मिलाए गए हैं जो त्वचा के लिए नुकसानदायक हों.

उन्होंने बताया कि सफेद गुलाल में ऐसे तत्व मिलाए गए हैं जो त्वचा की कई बीमारियों में लाभकारी माने जाते हैं. यह गुलाल फूलों और नीम के अर्क तथा अन्य हर्बल उत्पादों से तैयार किया गया है और इसमें रजनीगंधा की खुशबू मिलाई गई है.

यह गुलाल शोधार्थियों के दस सदस्यीय दल की एक साल की मेहनत का नतीजा है. दत्ता ने कहा, ‘हमारे प्रायोगिक परीक्षण सफल रहे. अब हम अपनी प्रौद्योगिकी का पेटेंट कराने के लिए आवेदन देने पर विचार कर रहे हैं.’

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बाजार में बेचे जा रहे रंगों में जस्ता और पारे जैसी भारी धातुएं मिलाई जाती हैं जिनसे त्वचा में जलन होती है तथा छाले पड़ सकते हैं. सांस के साथ अंदर जाने पर इन रंगों से गुर्दा, फेफड़ों और यकृत में भी समस्या हो सकती है. सफेद गुलाल उन अभिभावकों के लिए भी उपयुक्त है जो स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के डर से अपने बच्चों को पानी और सूखे रंगों से होली खेलने की अनुमति नहीं देते.

अनुसंधान का नेतृत्व करने वाले प्रो दत्ता ने कहा, ‘बच्चों की त्वचा बहुत कोमल और संवेदनशील होती है इसलिए रंगों में मौजूद खतरनाक तत्वों से उन्हें समस्या होने की आशंका होती है. लेकिन सफेद गुलाल से छह माह से अधिक उम्र के बच्चों की त्वचा को कोई नुकसान नहीं होगा.’

प्रयोग के तौर पर विश्वविद्यालय अब तक 50 से 60 किलो सफेद हर्बल गुलाल बेच चुका है. एक दिलचस्प बात यह भी है कि स्थानीय निवासी और विद्यार्थी होली के बहुत पहले से ही यह गुलाल खेल रहे हैं, क्योंकि इसके औषधीय गुणों की वजह से विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने ऐसा सुझाव दिया था.

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