इस देश में पिछले दो दशकों में सेक्स की परिभाषा में जो बदलाव आया है, उसे सीधे-सीधे बढ़ते शहरीकरण से जोड़ा जा सकता है. हमने देखा है कि शहरों का आकार दिनोदिन बढ़ता जा रहा है और लोग गांव छोड़कर शहरों की ओर रुख कर रहे हैं. यह बदलाव सिर्फ भौतिक क्षेत्र में ही नहीं हो रहा है, बल्कि मानसिक क्षेत्र में भी हो रहा है.
सेक्स सर्वे 2011: औरत तो बस औरत है
पुराने की जगह नए विचार जड़ जमाते जा रहे हैं. इसकी वजह से दो अलग-अलग समाज बनते जा रहे हैं. नया भारत शहरीकरण से मिल रहे मौके, आजादी और गुमनामी का भरपूर स्वागत कर रहा है. हम देख रहे हैं कि बंगलुरू और मुंबई अलग-अलग भाषाओं और समुदायों के केंद्र बनते जा रहे हैं. बड़े शहरों के नए संपन्न वर्गों, जिनकी आय लगभग दोगुनी हो चुकी है, में जीवन जीने को लेकर तेजी से उपभोक्तावादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है.
लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो पारंपरिक और सामंती सोच के साथ इसका विरोध करते हैं. तेजी से फैलते आधुनिक शहर में वे अपने सामंती और पुराने मूल्यों को बनाए रखने की कोशिश करते हैं. यह पुराना भारत नए भारत को समझ नहीं पा रहा है. वे बदलते युवा वर्ग की यौन अराजकता से डरे हुए हैं और उन पर अंकुश लगाने का कोई भी मौका नहीं चूकते.
सार्वजनिक स्थानों पर अक्सर उन्हें कभी पुलिसकर्मियों की शक्ल में तो कभी कट्टरपंथी धार्मिक संगठनों या भाषायी समूहों के सदस्यों के रूप में उन युवाओं को उत्पीड़ित करते देखा जा सकता है. जब मुझ्से इंडिया टुडे के ताजा सेक्स सर्वेक्षण पर लिखने को कहा गया तो मुझे कुछ हफ्ते पहले की एक घटना याद आ गई. मैं एक कॉफी हाउस में अपने दोस्त का इंतजार कर रहा था कि मुझे अपने पीछे वाली मेज पर चल रही एक बातचीत सुनाई दीः
एक लड़का साथ में बैठी एक लड़की से पूछ रहा था, ''क्या कह रही हो, कंडोम तुम्हारी मम्मी के हाथ लग गए.'' लड़की ने जवाब दिया, ''बेवकूफ, तुमने उन्हें मेरे बैग में छोड़ दिया था.'' उसने बिना घबराए पूछा, ''फिर उन्होंने क्या कहा.'' लड़की ने हंसते हुए बताया, ''कुछ नहीं...उन्हें कम-से-कम यह तो यकीन है कि मैं सुरक्षित सेक्स करती हूं.''
मैंने अनजान बनते हुए पीछे सिर घुमाया तो देखा कि वे कॉलेज में पढ़ने वाले बीसेक साल के दो युवा थे. उन्होंने मेरी ओर देखा और जोर से हंस पड़े. उन्हें जरा भी झेंप नहीं हुई, बल्कि मेरे चेहरे पर चौंक जाने के भाव को देखकर उन्हें जैसे मजा आ रहा था. शायद मैं उम्र में उनसे दसेक साल बड़ा हूंगा, लेकिन उम्र के इस छोटे से फर्क में बड़ा बदालव महसूस करता हूं.
इंडिया टुडे के सेक्स सर्वेक्षण, 2011 में पुरानी पीढ़ी के सोच पर गौर किया गया है. सर्वेक्षण में ज्यादातर ऐसे उत्तरदाता हैं जिनकी उम्र 25 साल से ज्यादा है, जिनके विवाह (ज्यादातर माता-पिता ने तय किए) को 20 साल से ज्यादा हो चुके हैं और जिनके बच्चे हैं. मतलब यह कि सर्वेक्षण सामान्य और नियमित परिवार के सेक्सगत व्यवहार और सेक्स के बारे में उनके सोच को उजगार करता है.
एक तरफ ऐसा लगता है कि भारत में पिछले एक दशक में इस मामले में कुछ खास बदलाव नहीं आया है. लगभग आधी आबादी अब भी शादी से पहले सेक्स को गलत मानती है. पुरुष सेक्स के नजरिए से महिलाओं के मुकाबले ज्यादा संतुष्ट जिंदगी जी रहे हैं. महिलाएं आज भी अपने पुरुष मित्र, प्रेमी या पति के प्रति अपेक्षाकृत ज्यादा वफादार हैं.
करीब 71 फीसदी महिलाओं के पूरे सेक्स जीवन में कव्वल एक ही पुरुष रहा है जबकि 37 फीसदी पुरुषों के सेक्स जीवन में एक से अधिक महिलाएं रही हैं. सेक्सगत व्यवहार में शहरीकरण की भी अहम भूमिका रही है. ज्यादातर पुरुषों (55 फीसदी) और महिलाओं (43 फीसदी) का मानना है कि नौकरी करने वाली महिलाएं विवाहेतर या एक से अधिक सहभागियों के साथ संबंधों की बड़ी वजह हैं.
जब उनसे उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में पूछा गया तो उत्तरदाताओं का जवाब था कि रोजगार, स्वास्थ्य, सामाजिक जीवन, पैसा और यहां तक कि भावनात्मक जीवन सेक्स की अपेक्षा ज्यादा संतोषजनक रहा है. पिछले दशक में पुरुषों और महिलाओं की पत्रिकाओं, चाहे वे स्वास्थ्य की ही क्यों न हों, में सेक्स जीवन पर चर्चा की जाने लगी और सेक्स पर सुझव और विचार दिए जाने लगे.
ये पत्रिकाएं किशोरों और वयस्कों में विशेष रूप से लोकप्रिय मानी जाती हैं. उनमें पाठक के सेक्स जीवन को चटखारेदार बनाने के लिए यौन फंतासियों की चर्चा की जाती है, काम की जानकारी, सुझव और गेम्स के बारे में बताया जाता है. उदार पूर्व, या 'स्वच्छंद' पश्चिम के उलट भारत अपनी सेक्स नीति के मामले में एकदम स्पष्ट है. न अश्लीलता-न ही बेचारी सविता भाभी, न सेक्स की दुकानें और सेक्स के खिलौने तो बिल्कुल भी नहीं. यहां तक कि आप उन्हें बाहर से अपने देश में नहीं ला सकते. आप उन्हें तभी ला सकते हैं जब सीमा शुल्क अधिकारियों को यह न पता हो कि वे क्या हैं और किस काम के लिए उनका इस्तेमाल होता है.
हाल ही में रजत कपूर की एक फिल्म, मिक्स्ड डबल्स, में पत्नियों की अदला-बदली दिखाई गई और एक दंपती को एक खास किस्म के भूमिका निभाने वाले खेल में शामिल होते हुए दिखाया गया. उसे देखकर दर्शकों को कोई आश्चर्य नहीं हुआ. इससे यह जाहिर होता है कि भारत की आबादी का एक छोटा-सा हिस्सा शहरी है, उसने दुनिया देखी है, वह इस तरह की पार्टियों से अनभिज्ञ नहीं है. इसीलिए बॉलीवुड की फिल्म में यह देखकर उसे कोई हैरानी नहीं हुई.
इस सर्वेक्षण से यह भी जाहिर है कि काम करने वाले माता-पिता को अपने बच्चों को विपरीत सेक्स वाले साथियों के साथ दोस्ती करने में कोई आपत्ति नहीं है. परंपरावादी शहरों के उलट बंगलुरू और मुंबई जैसे महानगर सेक्स के मामले में ज्यादा उदार हैं. दूसरे बड़े शहरों के मुकाबले बंगलुरू में समलिंगी संबंधों, एक रात का साथ और एक साथ रह रहे अविवाहित जोड़ों को अपेक्षाकृत ज्यादा स्वीकार्यता हासिल है.
सेक्स सर्वे: तस्वीरों से जाने युवाओं के मन के अंदर की बात
आर्य समाज के बावजूद विधवा विवाह को एक वर्ग स्वीकार नहीं करता. सर्वेक्षण के मुताबिक, आबादी का एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा विधवा और तलाकशुदा महिलाओं के पुनर्विवाह को पसंद नहीं करता है.
इस सर्वेक्षण से जाहिर है कि जिस देश में एचआइवी के मामले बढ़ रहे हैं उसमें 18 साल से कम उम्र वाले बच्चों के माता-पिता युवाओं में सेक्स के प्रति रुझन से अनजान बने हुए हैं. सिर्फ एक-चौथाई उत्तरदाताओं ने माना कि उनके बच्चे सेक्स में लिप्त हो सकते हैं. जो लोग मानते हैं कि उनके बच्चे सेक्स में लिप्त हैं, उनमें से ज्यादातर उसे अनदेखा कर देते हैं. करीब 80 फीसदी वयस्क आबादी अपने बच्चों से सेक्स के बारे में बात नहीं करना चाहती. और फिर कर्नाटक जैसे कुछ ऐसे भी राज्य हैं, जो स्कूल में सेक्स शिक्षा का विरोध करते हैं.
सेक्स सर्वे 2011: फंदा माता-पिता का
शायद ज्यादातर लोगों को पता नहीं है कि भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जहां किशोर उम्र में गर्भवती होने वाली लड़कियों की संख्या सबसे ज्यादा है. लेकिन इससे किसी को आश्चर्य नहीं है क्योंकि उनमें से ज्यादातर लड़कियां विवाहित होती हैं, जबकि 'लंपट पश्चिम' में इसे 'किशोरों का गैरजिम्मेदाराना व्यवहार और स्वच्छंदता' माना जाता है. इस सर्वेक्षण के मुताबिक, माता-पिता को जब पता भी चल जाता है कि उनके बच्चे सेक्स में लिप्त हैं तो वे उन्हें फटकार लगाते हैं या जान-बूझकर आंखें मूंद लेते हैं. सिर्फ एक-तिहाई माता-पिता ही इस बारे में अपने बच्चों से बात करते हैं और उन्हें शिक्षित करते हैं. ज्यादातर उत्तरदाता अपने बच्चों के सामने अपनी पत्नी या पति के प्रति प्यार जाहिर करने से हिचकते हैं.
माता-पिता और बच्चों के बीच सेक्स के विषय पर सीमित बातचीत ही होती है. शायद यही वजह है कि किशोरों की बड़ी संख्या दोहरी जिंदगी जीती है और जब माता-पिता को उनके सेक्स जीवन के बारे में पता चलता है तो वे हैरान रह जाते हैं. सामाजिक संपर्क न होने और सेक्स के विषय पर माता-पिता से कोई जानकारी न मिलने से बच्चे इंटरनेट का सहारा लेते हैं. अभिभावकों को अमूमन इसकी जानकारी नहीं होती कि बच्चे इंटरनेट पर क्या देखते हैं. नतीजा यह होता है कि वे अश्लील साइट देखने लगते हैं.
उन साइट पर आकर्षित करने के इरादे से सेक्स को बाजारू चीज के रूप में पेश किया जाता है. उनमें अंतरंगता की बजाए वासना और तृप्ति पर जोर दिया जाता है और बच्चे सेक्स के बारे में पहली राय शायद उन्हीं से बनाते हैं. इसीलिए हमें अक्सर बच्चों में सेक्स संबंधी घटनाओं की खबरें सुनने को मिलती हैं.
सगे-संबंधियों के साथ सेक्स संबंध रख चुके 25 फीसदी उत्तरदाताओं ने बताया कि उनके साथ ऐसा जबरन हुआ. उनमें से आधे ने बताया कि यह सेक्स का उनका पहला अनुभव था, जो पूरा जीवन सेक्स की उनकी समझ को प्रभावित करेगा. बंगलुरू में आप 12 या 13 साल के बच्चों को बार या डिस्को में देख सकते हैं और उनके माता-पिता को पता ही नहीं होता है कि उनके बच्चे क्या कर रहे हैं.
भारत में विवाह के साथ पवित्रता को जोड़कर देखा जाता है, लेकिन इन शहरों में युवाओं का व्यवहार विवाह संस्था को ज्यादा महत्व देता नहीं लगता है. बंगलुरू उन शहरों में से एक है जहां सबसे ज्यादा उत्तरदाताओं ने माना कि उन्होंने सेक्स के लिए पैसे दिए हैं. बीस फीसदी उत्तरदाता महसूस करते हैं कि एक ही सहभागी के साथ बार-बार सेक्स से मन ऊब जाता है. इसी तरह हैदराबाद और मुंबई में उत्तरदाता मानते हैं कि विवाहेतर संबंध रखने में कोई खराबी नहीं है.
सर्वेक्षण के ज्यादातर नतीजे अनपेक्षित नहीं हैं. अगर कोई चीज हम जानते हैं तो वह यह कि मीडिया और सूचना के प्रसार के बावजूद, औसत मध्यवर्गीय भारतीय अब भी सेक्स को लेकर सतर्क और आशंकित है. लेकिन सेक्स के प्रति दूसरे भारत की मानसिकता का अध्ययन जरूरी है. स्कूल-कॉलेजों में सलाह देने वाले मनोविज्ञानी युवाओं में बढ़ती स्वच्छंदता की ओर इशारा करते हैं. युवाओं का सर्वेक्षण शायद एक अलग भारत की तस्वीर सामने रखेगा.
चैतन्य बंगलुरू स्थित लेखक और फिल्म निर्देशक हैं.