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सेक्‍स सर्वें: अपनों पे सितम गैरों पे करम

वे जीवनसाथी के सामने सिरदर्द का बहाना बनाते हैं, लेकिन उनके संग सेक्स के लिए हाथ आजमाते हैं, जिन्हें अच्छे से जानते तक नहीं. शहरी भारत के वैवाहिक आनंद के नए संसार में आइए रखें कदम.

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अब हैरतअंगेज खुलासे सामने हैं. सप्ताह में कम-से-कम एक बार शहरी भारत के आधे से ज्‍यादा पति-पत्नी वैवाहिक जीवन से जुड़े अहम कार्य में लिप्त होते हैं. और जब भी ऐसा होता है, देश की आधे से ज्‍यादा पत्नियां कहती हैं, ''आज नहीं, हनी. मेरे सिर में दर्द है.'' और हर बार, एक-तिहाई पुरुष शारीरिक संबंधों से पिंड छुड़ाने के लिए बहाना बनाते हैं.
सेक्‍स सर्वे 2011: परंपरा की नहीं रही परवाह 

इंडिया टुडे-नील्सन सेक्स सर्वेक्षण 2011 ने बेडरूम के बंद दरवाजों से बाहर आती ऊब की जिज्ञासा भरी गंध को भांप लिया है. पर सेक्स ने अपनी चमक खोई नहीं है. कामसूत्र की धरती, जहां इसकी सामूहिक चेतना में रतिक्रिया के 300 तरीके गुंजायमान हैं, वक्त गुजारने के अपने पसंदीदा शगल में मशगूल है, और बेशक यह वैवाहिक जीवन से परे है. सेक्स को भावनाओं से अलग करना ताजा रुझान है, ऊब लोगों को क्षणिक आनंद की चाह में अनजान रास्तों की ओर धकेल रही है.सेक्‍स सर्वे

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यह एक ऐसी समस्या है जिसका कोई नाम नहीं है. वह चाहती थी कि सुहागरात कुछ खास हो, मगर  वह यह नहीं जानती थी कि शुरुआत कहां से की जाए. लेकिन उसके पति ने यह विकल्प उसके हाथों से छीन लियाः वह सो गया. ऐसा माना जाता था कि खुशहाल जिंदगी के लिए औलाद अहम है, लेकिन पासा पलट गया. वह अपनी शादीशुदा दोस्तों से पूछती है, ''क्या सिर्फ इसीलिए शादी की जाती है?'' हां, उन्होंने आपस की बात में यह मानाः ''विवाह में सेक्स को काफी बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है.''

जब 2003 में इंडिया टुडे ने पहले सेक्स सर्वेक्षण में महिलाओं से पूछा था, ''क्या आप विवाह में सेक्स से उकता चुकी हैं?'' जवाब बुलंद आवाज में 'नहीं' में था. पिछले आठ साल से, स्त्री और पुरुषों ने हमारे पन्नों पर रंग-बिरंगे यौन संबंधों के कैनवस को चित्रित किया है. उन्होंने अपने काम संबंधों, अपनी दैहिक जरूरतों और कल्पना को हमारे सामने खुलकर रखा है. लेकिन उकताहट को बिना कुछ कहे दफना दिया गया. क्या वे इस खामोश सवाल से डरते थेः ''क्या सिर्फ इसीलिए शादी की जाती है?''सेक्‍स सर्वे

इंडिया टुडे का नौवां सर्वेक्षण परिवार पर केंद्रित है. और ऐसा लगता है कि बेडरूम की खुसर-फुसर में प्रेम की मधुरता या आलिंगन की मिठास का पुट कतई नहीं है. 48 फीसदी से ज्‍यादा पति स्वीकार करते हैं: ''बिस्तर पर मेरी पसंदीदा साथी मेरी पत्नी नहीं है.'' लगभग 33 फीसदी पत्नियां मानती हैं: ''विवाह के कुछ वर्षों बाद सेक्स एकदम गैरजरूरी हो जाता है.'' लगभग 14 फीसदी पुरुष और स्त्रियां नहीं जानते/कह नहीं सकते कि बेडरूम में उन्हें क्या उत्तेजित करता है जबकि 13 फीसदी नहीं बता सकते कि वे यौन संबंधों के बाद 'संतुष्ट' हो जाते हैं या नहीं. 65 फीसदी विभिन्न प्रकार की यौन मुद्राओं की फंतासियों में डूबते हैं, जबकि  जिन जोड़ों से सवाल पूछे गए थे उनमें से आधे से ज्‍यादा ने 'पुरुष ऊपर' वाली मुद्रा के अलावा कुछ और नहीं आजमाया है.
सेक्‍स सर्वे 2011: फंदा माता-पिता का 

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हालांकि ''जीवन से गहन संतुष्टि'' अपने चरम पर है, यह पिछले साल के 25 फीसदी से अब 36 फीसदी पर है. नौकरी से संतुष्टि 33 से 42 फीसदी पर पहुंच गई है. स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति, परिवार, भावनात्मक और सामाजिक जीवन के धरातल पर भारतीय काफी खुश नजर आते हैं. यह सिर्फ सेक्स ही है, जो परेशानी की वजह बना हुआ है. इंडिया टुडे की आठ साल की सर्वेक्षण श्रृंखला में यह पहला मौका है जब यौन संतुष्टि का आंकड़ा घट कर 27 फीसदी पर आ गया है.सेक्‍स सर्वे

कोलकाता के मनोरोग चिकित्सक डॉ. अनिरुद्ध देब कहते हैं, ''यह लगातार दूसरी ओर लगाव से उपजी उकताहट है.'' एक ओर, जहां मोटी तनख्वाह, फैंसी कारों या अगली तरक्की की अनवरत चाहत है जो लोगों को कई घंटे काम करने के लिए मजबूर करती है. दूसरी ओर, टीवी, इंटरनेट, फोन और सोशल मीडिया की जिंदगी में 24 घंटे घुसपैठ है. देब कहते हैं, ''अधिकतर पुरुषों में भावनाएं नदारद हो रही हैं, जो शहरी भारत के बेडरूम के रहस्य की जड़ में हैं.''

यह रहस्य सेक्स संबंधों की राह बदलने और  हदें लांघने की जीवनशैली से जुड़ा हैः पत्नियों से परे दूसरी औरतों की फंतासी, पैसे देकर यौन संबंध, विवाहेतर संबंध, पोर्नोग्राफी की लत, बीवी की अदला-बदली, सगे रिश्तों में व्यभिचार से लेकर बाल शोषण तक शामिल है. पुरुषों में उकताहट उन्हें बंधनमुक्त यौन संबंधों के खतरनाक संसार के रास्ते पर ले जा रही है. अंतरंगता, रोमांस और प्रेम की किसे परवाह है?
7 दिसंबर 2011: तस्‍वीरों में देखें इंडिया टुडे 

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लगभग 48 फीसदी पुरुष दोस्तों, पड़ोसियों, सहकर्मियों, रिश्तेदारों या अजनबियों की जगह फिल्म अभिनेत्रियों के साथ यौन संबंधों की इच्छा रखते हैं. (आधी से ज्‍यादा महिलाएं अपने पतियों के इर्द-गिर्द अपनी फंतासियों को बुनती हैं.) 2004 में, 7 फीसदी पुरुष ही पत्नी की अदला-बदली (वाइफ स्वैपिंग) की बात करते थे, वहीं इस साल दोगुने से ज्‍यादा ने इसे आजमाने की बात स्वीकार की है (82 फीसदी पत्नियों ने आपत्ति जताई है).सेक्‍स सर्वे

ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) में कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर बीर सिंह कहते हैं, ''लोग अपने यौन जीवन में एकदम नए तरीके के प्रयोग कर रहे हैं.'' 2002 से सेक्स काउंसलिंग कर रहे डॉ. बीर सिंह कहते हैं, ''हम शहरी जोड़ों में मतभेदों और यौन संबंधी असंगतियों का चौंकाने वाला स्तर देख रहे हैं. हम से सवाल पूछने वालों में ऐसे विवाहित पुुरुषों की बड़ी संख्या होती है जिनके कई संबंध हैं या वे उभयलिंगी (बाइसेक्सुअल) हैं.''

अगर उकताहट का कोई हल नहीं निकाला गया तो यह नुक्सान पहुंचा सकती हैः वह बोर हो रहा था और मजे के लिए पोर्न देखने लगा (जैसा कि सर्वेक्षण में 50 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा है.) और इसी तरह सर्वेक्षण में 44 फीसदी पुरुष अकेले पोर्न देखने की बात करते हैं. वह आधी रात को अपने लैपटॉप के साथ बाथरूम में जाता है और पोर्न फिल्म देखता है.
सेक्‍स सर्वे 2011: तस्‍वीरों से जानिए कैसे बदल रहा है भारतीय समाज 

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समस्या उस समय आती है जब उसकी पत्नी को इस बारे में पता चल जाता है. वह इसे बंद करने का वादा करता है लेकिन कर नहीं पाता. वैवाहिक जीवन पर उस समय संकट आता है जब उसकी कामेच्छा घटने लगती है. एक सेक्स थेरेपिस्ट उसकी शारीरिक कमजोरी ठीक कर सकता है लेकिन पांच साल पहले शादी में आई दरार को नहीं. ''आखिर उसे मेरी पीठ पीछे यह करने की क्या जरूरत थी, जब मैं उसके लिए वहां मौजूद थी.''
इंडिया टुडे की अन्‍य खबरों को पढ़ने के लिए क्लिक करें 

आजकल वैवाहिक संबंधों मे दरारें गहराती जा रही हैं. सर्वेक्षण में पुुरुषों ने कार्यस्थलों पर महिलाओं की बढ़ती मौजूदगी को दोषी ठहराया है क्योंकि उनका मानना है कि सार्वजनिक जीवन में उनकी उपस्थिति से यौन संबंध बनाने के ज्‍यादा मौके मिलने लगे हैं. बेशक इसमें कुछ हद तक सचाई भी हो सकती हैः सर्वे बताता है कि आपातकालीन गर्भ निरोधक गोलियों की खपत यौन संबंधों में सक्रिय अकेली महिलाओं में विवाहित महिलाओं की अपेक्षा काफी अधिक है-लगभग तीन गुना ज्‍यादा. मनोविश्लेषक सुधीर कक्कड़ इशारा करते हैं, ''महिलाओं की आजादी धीमे ही सही लेकिन जाहिर तौर पर पुरुषों के जीवन के संदर्भ और असलियत को बदल रही है.''
सेक्‍स सर्वे 2011: युवा मन के अंदर की बात 

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क्या पुरुष इस चुनौती का मुकाबला कर रहे हैं? पुराने विचारों और कड़े नियमों वाले यौन रीति-रिवाज तथा पारंपरिक विवाह आज भी मौजूद हैं: सर्वेक्षण के उत्तरदाता यह सवाल नहीं करते कि आखिर क्यों महिलाओं से आज भी अपेक्षा की जाती है कि वे विवाह तक अपने कौमार्य को सुरक्षित रखें, उनके लिए भी सेक्स को पुरुषों जितना अहम क्यों नहीं मानते, सेक्स के बाद पुरुष की अपेक्षा वे खुद को ''कम संतुष्ट'' क्यों पाती हैं, यौन संबंधी मामलों में महिलाओं का दखल कम क्यों है? और क्यों, तीन चौथाई माता-पिता अपने बच्चों के साथ सेक्स के बारे में बात करने से साफ इनकार कर देते हैं?

भारतीय वैवाहिक जीवन की समझ एक बार फिर समझौतेबाजी की दिशा में बढ़ रही है. उकताहट ने खतरनाक संकेत दे दिए हैं. अब यह समय एक कदम पीछे हटने और यथास्थिति पर सवाल खड़े करने का है.

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