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रखिए मोहतरमा की फिटनेस का खयाल...

ज्‍यादातर पुरुष खुद तो जिम या पार्क जाकर व्‍यायाम आदि करते हैं, लेकिन लाइफ पार्टनर की सेहत को लेकर ज्‍यादा सतर्क नहीं रहते.

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रिलेशनशिप
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ज्‍यादातर पुरुष खुद तो जिम या पार्क जाकर व्‍यायाम आदि करते हैं, लेकिन लाइफ पार्टनर की सेहत को लेकर ज्‍यादा सतर्क नहीं रहते.

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ऐसे लोग मानते हैं कि घरेलू काम करते वक्‍त ही महिलाओं का अच्‍छा-खासा व्‍यायाम हो जाता है, इसके बाद वे जिम न भी जाएं, तो उन्‍हें कोई नुकसान नहीं होगा.

परन्‍तु, हकीकत इससे अलग है. अध्‍ययन में यह बात सामने आई है कि महिलाएं कसरत आदि न करके पुरुषों के मुकाबले अपना काफी नुकसान करती हैं.

महिलाएं अवसाद और मैटाबोलिक सिंड्रोम की चपेट में आने का खतरा खुद ही बढ़ा लेती हैं, क्योंकि वे रोजाना पुरुषों के मुकाबले बहुत कम कसरत करती हैं.

अमेरिका में ओरेगान स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया कि एक दिन में एक महिला को औसतन कसरत के लिए मात्र 18 मिनट का समय मिलता है, जबकि पुरुष नियमित रूप से औसतन 30 मिनट कसरत करते हैं.

इससे महिलाओं के मैटाबोलिक सिंड्रोम का शिकार होने का खतरा बढ़ जाता है. मैटाबोलिक सिंड्रोम एक ऐसी अवस्था है, जिसमें उच्च केलेस्ट्रोल, उच्च रक्तचाप, वजन बढ़ना, दिल की बीमारी और टाइप टू मधुमेह शामिल है.

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प्रमुख शोधकर्ता पाल लोपिरांजी के हवाले से डेली टेलीग्राफ ने यह खबर दी है.

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