आखिर क्यों लोग संबंधों से परे देखते हैं या कहीं और जाते हैं? वे धोखा क्यों देते हैं? क्या यह ऊब, लालच या एक तरह का भ्रम है, जिसमें ऐसा लगता है कि अगला इंसान हमारी इच्छाएं कुछ उस ढंग से पूरी करेगा जैसा कि पहला नहीं कर सका? या फिर यह कुदरत का एक तरीका है कि अपनी फितरत के मुताबिक रंग दिखाते हुए नए खेल खेले जाएं? कारण कुछ भी हों, नतीजे तो कुल मिलाकर एक जैसे ही हैं.
यह बिल्कुल वैसा ही है कि जैसे आप मधुमेह के शिकार हों और आपके मुंह में मीठी गोलियां ठूंस दी जाएं. चीनी की बढ़ी हुई मात्रा आपमें फौरी तौर पर उत्तेजना पैदा करती है लेकिन अंदर तो वह कहर बरपाती ही है. एक दोस्त ने बड़े ही बेपरवाह नजरिए के साथ कहा, ''मैंने धोखा दिया क्योंकि मैं दे सकता था. मौका मिलने पर कौन ऐसा नहीं करेगा? इसके लिए क्या मुझे छतावा होना चाहिए? ना ना ना. मैं अब भी अपनी पत्नी से प्यार करता हूं और उसे रानी बनाकर रखता हूं''
इस पर ज्यादातर औरतें जहां कमीज की अपनी बांहें चढ़ाकर, उसे लड़ाई में मैदान में चित करने को उतावली दिखती हैं, वहीं कुछ पुरुष मुक्त कंठ से उसकी बलाएं लेते नहीं थकते. यह सच है कि पकड़े जाने का खतरा न हो तो ज्यादातर लोग बेवफाई करेंगे. यहां तक कि यह खतरा अगर हो तो भी वे धोखा देंगे. आंकड़े बताते हैं कि हमारे पूर्वजों की ओर से पढ़ाया जाने वाला नैतिकता का पाठ इस संसार में कारगर नहीं. अपने रोजमर्रा के अनुभव के आधार पर इतना तो कहा ही जा सकता है. कथित सभ्य/संभ्रांत घरों में दिखाया जाने वाला व्यवहार कमोबेश उतना ही यथार्थपरक होता है, जितना कि आज के औसत सीरियलों के थकाऊ कथानक.{mospagebreak}
मेरे पिताजी कहा करते हैं कि हम वही हैं, जो कि हम छिपाते हैं. कई बार हमारे असल जीवन और आदर्श कल्पनाओं के जीवन में जमीन-आसमान का फर्क होता है. हम कसम खाते हैं, छल करते हैं, झूठ लते हैं और फंसते हैं. सच को सात तालों में वहां छिपाकर रखते हैं जहां कोई नहीं पहुंच सकता. अभी भी हम यह छोटी लेकिन बेहद अहम जानकारी नजरअंदाज कर जाते हैं कि हम जिससे झूठ बोल रहे हैं, वह और कोई नहीं हम खुद हैं. क्या आप अपने कदम के नतीजों को भुगतने के साथ जिंदा रह सकते हैं? आप चाहेंगे कि आपकी अंतरात्मा को दोबारा धिक्कारा जाए? अगर जवाब हां है तो इस पर गौर फरमाएं: प्रेम और वासना एक-दूसरे से एकदम अलग हैं जैसे रेड वाइन और ब्लू चीज. लेकिन चूंकि वे एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं इसलिए वे भ्रमित भी कर देते हैं.
>वयस्क होने का क्या यही मतलब है कि जीभ हमेशा लपलपाती रहे? या इसमें कहीं किसी स्तर पर आत्म संयम बरतने की भी कोई जगह है? दिल या शरीर के निचले हिस्सों को छोड़ दें तो क्या जीवन के बाकी क्षेत्रों में यह गणित ऐसे ही चलता है? जवाब अलग-अलग हैं और वे जवाब से ज्यादा सवाल खड़े करते हैं. लेकिन एक चीज तय है-इंद्रधनुष के दूसरे छोर पर कोई खजाना नहीं गड़ा हुआ है. इंद्रधनुष आप खुद ही हैं.
अगर आप अपने आप को स्वाभाविक रूप से संतुष्ट नहीं रखते तो आपके जीवन के खालीपन को कोई दूसरा कभी भी भर नहीं सकता. अगर यह मानते हैं कि हम आग और पेट्रोल को साथ रखने से कुछ ज्यादा कर रहे हैं तो हम जितनी चाहें आवारगी कर सकते हैं लेकिन यह खुद को ठगने जैसा ही होगा.
(लेखिका फिल्म निर्माता हैं)