अक्सर अभिभावक मानते हैं कि बच्चों की देखभाल उनके बचपन तक ही जरूरी होती है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि किशोरावस्था वह नाजुक मोड़ है जब मामूली सी लापरवाही जीवन भर के लिए एक अभिशाप बन सकती है. समाज विज्ञानी प्रोफेसर के के मलिक ने कहा ‘‘बचपन के बाद किशोरावस्था आती है और उम्र के इन दोनों पड़ावों को चरित्रनिर्माण की नींव कहा जा सकता है.
किशोर सही गलत का अंतर नहीं कर पाते
संयुक्त परिवारों में किशोरावस्था समस्या नहीं होती क्योंकि तब किशोरों को अकेले रहने का बहुत ज्यादा समय नहीं मिल पाता.’’ उन्होंने कहा ‘‘लेकिन एकल परिवारों में जहां माता पिता दोनों नौकरी करते हैं वहां किशोरों को काफी समय अकेले बिताना पड़ता है. अगर वह सही दिशा में हैं तब तो कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन गलत राह पर बढ़ने पर उन्हें रोकना जरूरी हो जाता है. इस उम्र में उत्सुकता इतनी अधिक होती है कि किशोर सही गलत का अंतर नहीं कर पाते.’’
किशोरों को खतरे के बारे में साफ बता देना चाहिए
प्रोफेसर मलिक ने उदाहरण दिया कि अगर किशोर धूम्रपान करे तो उसका भविष्य ही धुआं धुआं हो जाएगा. उन्हें तंबाकू के दुष्प्रभावों की जानकारी नहीं होगी, बल्कि वह तो टीवी या सिनेमा देख कर यही सोचेंगे कि धूम्रपान में कोई बुराई नहीं है. एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका प्रमिला मेहता कहती हैं ‘‘इस उम्र में किशोर कुछ चंचल हो जाते हैं. उन्हें अगर बताया जाए कि अमुक काम करने में खतरा है तो बहुत कम किशोर ही उस काम को करने से बचेंगे. ज्यादातर किशोरों के मन में यह उत्सुकता होगी कि कैसा खतरा है, यह देखने के लिए इस काम को करना चाहिए. इसलिए बेहतर होगा कि किशोरों को खतरे के बारे में भी साफ बता दिया जाए.’’
शांत की जाए किशोरों की जिज्ञासा
कुछ देशों में 11 अगस्त को ‘‘मिडिल चिल्ड्रन डे’’ मनाया जाता है. इस बारे में पूछने पर प्रमिला ने कहा ‘‘वहां चलन होगा लेकिन हमारे देश में ऐसा कोई खास दिन किशोरों के नाम नहीं है. हम तो अभी संक्रमण काल से गुजर रहे हैं. किशोरावस्था को गंभीरता से लेने में हमें शायद कुछ समय लगेगा.’’ उन्होंने कहा ‘‘आज टीवी का प्रभाव किशोरों पर अधिक है. सिनेमा तो पहले से ही प्रभावी रहा है. लेकिन अच्छा यही होगा कि किशोरों को हर बात के सकारात्मक और नकारात्मक पहलू के बारे में बताया जाए. केवल ग्लैमर की चकाचौंध उनका भविष्य बर्बाद कर देगी.’’ मनोविज्ञानी समीर पारेख ने बताया कि किशोरावस्था वह उम्र होती है जब किशोरों में नयी नयी बातों के बारे में जानने की उत्सुकता होती है. उनसे छिपाने से अच्छा है कि उन्हें विस्तृत जानकारी दी जाए तथा उनकी जिज्ञासा का शमन किया जाए.
किशोरावस्था की कोई भूल अभिशाप बन सकती है
उन्होंने बताया कि किशोरों की जिज्ञासा शांत करने के लिए उन्हें जो बातें बताई जाती हैं, उन्हें वह अच्छी तरह याद रखते हैं. यह बात हमें नहीं भूलना चाहिए कि उनके मन पर हर अच्छी बुरी बात का प्रभाव पड़ता है इसलिए हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि उन्हें अच्छी बातों के बारे में तो बताएं, साथ ही उसके नकारात्मक पहलुओं की भी जानकारी दें. किशोरावस्था में अपराध के बारे में पूछने पर डॉक्टर पारेख ने बताया कि मनोवेग में अपराध हो सकता है लेकिन आरोपी किशोर को इस तरह समझाना चाहिए और ऐसा व्यवहार उसके साथ करना चाहिए कि उसे उसके किए पर पछतावा तो हो, पर वह खुद को समाज से अलग थलग न समझे. उन्होंने कहा कि किशोरावस्था की कोई भूल जिंदगी भर का अभिशाप बन सकती है और जिंदगी तबाह भी कर सकती है. इसलिए इस उम्र में किशोरों के साथ दोस्ताना व्यवहार करते हुए उन्हें सही राह दिखाने की जरूरत होती है.