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महामारी से कम नहीं है धूल भरी आंधी, ऐसे करें बचाव

वायु प्रदूषण स्ट्रोक, दिल की बीमारियों, फेफड़े के कैंसर और क्रॉनिक व गंभीर श्वसन संबंधी समस्या जैसी कई जानलेवा बीमारियों का एक प्रमुख कारण है.

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फोटो: Getty
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उत्तर भारत में धूल भरी आंधी और असामान्य मौसमी बदलावों की वजह से तमाम शहरों में खराब वातावरण एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है, इसका असर इस कदर बढ़ रहा है कि स्थिति किसी महामारी से कम नहीं रह गई है.

वायु प्रदूषण स्ट्रोक, दिल की बीमारियों, फेफड़े के कैंसर और क्रॉनिक व गंभीर श्वसन संबंधी समस्या जैसी कई जानलेवा बीमारियों का एक प्रमुख कारण है.

आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी में जयपुर के स्कूल ऑफ रूरल मैनेजमेंट के प्रोफेसर और डीन इंचार्ज डॉ. गौतम साढू ने कहा, 'दुर्भाग्यवश, दिल्ली, मुंबई जैसे प्रमुख महानगर, जो देश के सबसे घनी आबादी वाले शहर हैं, वे दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं. दिल्ली में पर्टिकुलेट मैटर का स्तर 143 माइक्रोग्राम प्रति क्युबिक मीटर पर 2.5 दर्ज हुआ है, जो कि सुरक्षित सीमा से 14 गुना अधिक है. वहीं जयपुर और चंडीगढ़ में भी पीएम का स्तर 2.5 दर्ज हुआ है जो कि सुरक्षित सीमा से काफी ज्यादा है.'

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उन्होंने कहा, 'यह सूक्ष्म प्रदूषक कण स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं क्योंकि ये सांस के जरिए फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं, जिसके चलते अस्थमा, श्वसन तंत्र में सूजन, फेफड़े का कैंसर और सांस से सम्बंधित अन्य बीमारियां भी हो सकती हैं.'

मौसम विज्ञानी का कहना है कि हाल में आई धूल भरी आंधियों का कारण सशक्त तूफान की स्थिति का नतीजा है, जो रातभर बरकरार रही, इसके चलते बेहद तेज गति से हवाएं चलीं और अपने साथ धूल व धुंध को उठाकर पहले से ही प्रदूषित उत्तर भारत के शहरों की आबोहवा को और प्रदूषित कर दिया. ठंड के दिनों में वायु प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक खतरनाक सीमा तक पहुंच जाता है क्योंकि ठंड के दिनों में प्रदूषक तत्व धुंध के साथ वातावरण में जमे रह जाते हैं और इनका असर छटने में ज्यादा समय लगता है.

दुनिया भर में, 91 प्रतिशत आबादी ऐसी जगहों पर रहती है जहां प्रदूषण का स्तर असुरक्षित सीमा तक पहुंच चुका है. मौत के 23 प्रतिशत मामलों का संबंध किसी न किसी प्रकार से प्रदूषण से होता है, जिसे रोका जा सकता है. छोटे बच्चे, महिलाएं बाहर काम करने वाले मजदूर और बुजुर्ग लोग लगातार बदतर स्तर पर पहुंच रहे वायु प्रदूषण की चपेट में आसानी से आ सकते हैं.

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प्रदूषित हवा से ऐसे करें बचाव:

1. एक्यूआई इंडेक्स 150 से ज्यादा होने पर ज्यादा फिजिकल एक्टिविटी वाली एक्सरसाइज, क्रिकेट, हॉकी, साइकलिंग, मैराथन से परहेज करें. प्रदूषण स्तर के 200 से ज्यादा होने पर पार्क में भी दौड़ने और टहलने ना जाएं. जब प्रदूषण स्तर 300 से ज्यादा हो तो लंबी दूरी की वॉक ना करें. जब स्तर 400 के पार हो तो घर के अंदर रहें, सामान्य वॉक भी ना करें. घर के भीतर रहें. प्रदूषण स्तर 1000 पर होने पर पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी जैसे हालात होते हैं. इस स्तर पर बिल्कुल भी घर से बाहर ना निकलें, घर पर ही रहें.

2. घर से बाहर निकलने से पहले चेहरे पर मास्क जरूर लगाएं.

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3.अपने घर और आस-पास की जगहों पर ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएं. ये हवा को प्यूरीफाई करने का काम करते हैं. जिससे आप ताजी हवा में सांस ले पाएंगे.

4. सांसों से शरीर में पहुंचे जहर को बाहर निकालने के लिए पानी बहुत जरूरी है. इसलिए पानी पीना नहीं भूलें. दिन में तकरीबन 4 लीटर तक पानी पिएं. घर से बाहर निकलते वक्त भी पानी पिएं. इससे शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई सही बनी रहेगी और वातावरण में मौजूद जहरीली गैसें अगर ब्लड तक पहुंच भी जाएंगी तो कम नुकसान पहुंचाएंगी.

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5.खाने में जितना हो सके विटामिन-सी, ओमेगा-3 को प्रयोग में लाएं. शहद, लहसुन, अदरक का खाने में ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें. खांसी, जुकाम की स्थिति में शहद और अदरक के रस का सेवन करें.

6. अगर घर से बाहर निकलना आपकी मजबूरी है तो घर आने के बाद गुनगुने पानी से मुंह, आंखें और नाक साफ करें. बाहर से आने के बाद भाप भी ले सकते हैं.

7.जब तक प्रदूषण है तब तक बच्चों को बाहर खेलने ना निकलने दें. साइकिलिंग करने से बचें, ज्यादा देर पैदल ना चलें.

8.कफ की दिक्कत है तो शहद में काली मिर्च मिलाकर लें. वहीं, लहसुन में एंटीबॉयटिक तत्व होते हैं जो प्रदूषण से लड़ने की क्षमता बढ़ाते हैं.

9.अस्थमा के मरीज हैं तो दवाइयां हमेशा साथ रखें. गर्भवती महिलाएं घर में रहने के दौरान भी मास्क पहनें.

10 .सुबह के वक्त प्रदूषण का स्तर ज्यादा होता है इसलिए मॉर्निंग वॉक पर नहीं जाएं. धूप निकलने के बाद ही बाहर ही निकलें. मोटरसाइकल या साइकिल से बाहर नहीं निकलें.

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