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कच्‍ची उमर में उभरती कामुकता

उम्र 16 की और कभी चुंबन का अनुभव नहीं किया? यह बीती बात है. आज के किशोर कहीं आगे के अनुभव कर रहे हैं.

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उसे लहराते, बल खाते देखें. उस किशोरी के वक्षस्थल और नितंब में उभार निखर रहे हैं. वह अपने होठों पर जीभ को बड़ी अदा से फेरती है, अपनी ढीली-ढाली जीन्स को, जिससे उसके अधोवस्त्र झांक रहे हैं, चढ़ाती है, उसकी बोलती आंखें और लिपस्टिक से रचे सुर्ख होठ तेज रोशनी में चमक रहे हैं. वह बॉलीवुड की कोई शोख अदाकारा नहीं, बल्कि सिर्फ 14 साल की कन्या है, जो रियलिटी टीवी टैलेंट शो के रास्ते देश भर में सुर्खियों में आने के लिए बेताब है. अपनी घनी जुल्फों से खेलते और चुइंग गम चबाते हुए वह कहती है, ''मैं मम्मी-पापा की वजह से यहां तक पहुंची हूं.'' उसकी बातें पूरी होने के बाद जब स्टुडियो में मौजूद दर्शकों पर से कृत्रिम कुहासा छंटता है, तो कैमरा दर्शकों के बीच बैठे मम्मी-पापा की ओर घूमता है. वे उपनगर में रहने वाले नौकरीपेशा हैं. पिता गर्व से फूले नहीं समा रहे और मां अपनी बेटी के जवाब चुपचाप सुन रही है. यह थोड़ा असहज दृश्य है. मगर यह जिंदगी की उस नई सचाई को आईना दिखाने जैसा है, जो छिपाए नहीं छिप रही.

बंदिशें तोड़ रहे हैं किशोर
उम्र 16 की, और कभी चुंबन का अनुभव नहीं किया? यह बीती बात है. उदारीकरण के बाद परिवार के बदलते रूप ने नए किशोरों को जन्म दिया है. पश्चिमी धारावाहिकों, केबल टीवी और तेजी से वैश्विक होते जा रहे मूल्यों की खुराक पर पले-बढ़े किशोर-जिनकी उम्र शारीरिक संबंध बनाने को मंजूरी देने की कानूनी उम्र (18 वर्ष) से कम है-हजारों वर्षों से चली आ रही बंदिशों को तोड़ रहे हैं. कभी भारतीय मां-बाप अपने बच्चों को छड़ी से काबू में रखते थे. मगर जब परिवार मॉल में क्वालिटी टाइम बिताने के लिए जुटते हैं और मां-बाप अपने बच्चों को नई-नई रिंगटोन वाले सेलफोन और मोटी तनख्वाह पाने के लिए विदेशी नामी-गिरामी कॉलेजों में पढ़ाने तक हर तरह की सुविधा दे रहे हैं तब किशोरावस्था के मायने बदल गए हैं.

किशोरवय लड़कियों में बढ़ रहा है सेक्स के अनुभव का चलन
इन किशोरों के पास कहीं ज्यादा पैसा, विकल्प, ज्यादा जानकारी है और पहले से कहीं ज्यादा प्रौद्योगिकी उनकी पहुंच में है. और यह बात यौन संबंधों को परिभाषित करने के तौर पर सबसे ज्यादा उभर कर सामने आ रही है. इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के प्रमुख डॉ. एम.के.सी. नायर कहते हैं कि बड़े शहर के किसी स्कूल की 100 किशोरवय लड़कियों में से कम-से-कम 15 ने सेक्स का अनुभव कर लिया है, 25 नियमित तौर पर सेक्स करती हैं, 8 डॉक्टरों के पास जाती हैं और 2 यौन शोषण की शिकार हो चुकी हैं.{mospagebreak}यह सब शुरू कब हुआ? वह साल था 2004, जब एक बिगड़ैल स्कूली बच्चे ने अपने दोस्तों को अपनी सेक्स वीडियो क्लिप भेजी. जल्दी ही वह क्लिप दिल्ली के वीडियो डिस्क विक्रेताओं के हाथ लग गई. वह एमएमएस कांड और उसमें नजर आने वाले हीरो-हीरोइन का उस खुलासे के बाद भी अड़ियल रवैया शहरी भारत में चर्चा का विषय बन गया. मगर उससे पहले भी दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने पाया कि गर्भपात के बारे में पूछे जाने वाले सवालों में खासी तेजी आई है और कई किशोरियां गर्भपात कराने के लिए पहुंच रही हैं.

चंडीगढ़ के कलाग्राम में खुला देश का पहला कंडोम डिस्को
2005 में उत्तर प्रदेश के एक छोटे शहर की दो लड़कियां घरों से भाग खड़ी हुईं और उन्होंने शादी रचा ली, समलैंगिक युवतियों के एक जोड़े ने आत्महत्या की कोशिश की. 2006 में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन ने पाया कि देश भर में एड्स संक्रमण के एक-तिहाई मामले 15-29 आयुवर्ग में आए. फिर 2007 में देश में स्कूलों में यौन शिक्षा की शुरुआत से लोगों की चिंता बढ़ गई. यह पाया गया कि यौन शिक्षा के लिए तैयार की गई पाठ्य सामग्री आपत्तिजनक और किशोर मन को बहकाने के लिए काफी है. उसी साल देश का पहला कंडोम डिस्को चंडीगढ़ के कलाग्राम में खुला.

युवा पीढ़ी में यौन जागरूकता
वर्ष 2008 में इंडिया टुडे-एसी नीलसन-ओआरजी मार्ग सेक्स सर्वेक्षण में काफी बदलाव देखने को मिला था. सर्वे से मालूम हुआ था कि देश भर के किशोर किस तरह खुलेपन के नए दौर को अपना रहे हैं. 5,353 उत्तरदाताओं में से 37 फीसदी पुरुषों और 17 फीसदी महिलाओं का दावा था कि उन्होंने 20 साल के होने से पहले ही यौन संबंध बना लिया था. ज्यादातर महानगरों में महिलाएं विवाह-पूर्व सेक्स के पक्ष में दिखीं, जिनमें 27 फीसदी के आंकड़े के साथ दिल्ली की महिलाएं अव्वल हैं. जहां पिछली पीढ़ी ने पहली बार यौन संबंध विवाह के बाद बनाया (60 फीसदी ने अपनी पत्नी के साथ), तो युवा पीढ़ी के लिए यौन जागरूकता आकस्मिक संबंध से आ रही है, जिसे वे 'फ्रेंड्स' का नाम देते हैं.{mospagebreak}जिस संस्कृति में सेक्स के बारे में खुले तौर पर चर्चा करना भी वर्जित रहा है, वहां सेक्स अब चहुंओर नजर आता है-फिल्मों में, धारावाहिकों में, मीडिया में और पार्क में युवा जोड़े भी आलिंगनबद्ध नजर आते हैं. ऐसे में हैरानी नहीं कि 37 फीसदी युवा जोड़े अपने यौन अनुभवों के बारे में चर्चा करना पसंद करते हैं. पर इसके बावजूद यौन संबंधों के बारे में उनका नजरिया साफ हैः 83 फीसदी लोग पेशेवर यौन-कर्मियों के साथ सेक्स को सही नहीं मानते, 68 फीसदी यौन संबंधों में प्रयोग नहीं करना चाहते, 92 फीसदी ने कभी सेक्स टॉय का इस्तेमाल नहीं किया है, 71 फीसदी लोगों को पुरुष के ऊपर रहने वाली मुद्रा पसंद है, 81 फीसदी विषमलिंगी हैं और 86 फीसदी समलैंगिकता के पक्ष में नहीं हैं.

यौन संबंधों का सच
मगर किशोरों के यौन संबंधों के इस खुलेपन के पीछे यह तथ्य छिपा है कि वे यौन संबंधों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते. यौन संबंधों के बारे में हेल्पलाइन संचालित करने वाले दिल्ली स्थित संगठन तारषी में पिछले साल 2008 में 59,000 युवकों ने महिलाओं की शारीरिक बनावट के बारे में जानकारी चाही, यह पूछा कि सुहाग रात क्या होती है, यदि वे पहली रात यौन संबंध बनाने में विफल रहे तो क्या होगा और अपनी पत्नी को यौन सुख कैसे दिया जा सकता है. इस संगठन को फोन करने वालों में 33 फीसदी से ज्यादा की उम्र 15 से 24 साल के बीच थी. 2005 में दिल्ली, मुंबई और बंगलुरू में 18 से 30 वर्ष के लोगों के बीच किए गए कामसूत्र सेक्स सर्वेक्षण के मुताबिक, ज्यादातर लोगों को यौन संबंधों के बारे में जानकारी खुद पढ़ने, दोस्तों से और ब्लू फिल्मों के जरिए हुई या फिर उन्होंने इंटरनेट पर अश्लील फिल्मों के जरिए इसे जाना. इस सर्वेक्षण से यह भी मालूम हुआ कि अश्लील फिल्में जानकारी का बड़ा स्त्रोत हैं. जहां 42 फीसदी पुरुषों और महिलाओं ने किशोरवय में पहली बार अश्लील फिल्म देखी थी, वहीं 62 फीसदी उसे नियमित तौर पर देखते हैं. चाहे लड़कियां हों या लड़के, ज्यादातर दर्शकों ने ये फिल्में अपने दोस्तों के साथ देखीं (करीब 50 फीसदी ने).

इंटरनेट बना बेहतर साथी
सेक्स इज नॉट अ फोर लेटर वर्ड के लेखक और हैदराबाद स्थित एंड्रोमेडा एंड्रोलॉजी सेंटर के निदेशक सुधाकर कृष्णमूर्ति कहते हैं, ''हां, यह सही है कि देश के किशोर अब यौन संबंधों के बारे में ज्यादा खुल कर बातें कर रहे हैं.'' इनमें से काफी बातें इंटरनेट पर हो रही हैं. अनुसंधान सलाहकार कंपनी जक्स्ट कंसल्ट के सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों में 60 फीसदी से ज्यादा की उम्र 25 से कम है. दिल्ली के हंसराज कॉलेज का 19 वर्षीय छात्र मुकेश मौजूदा दौर पर टिप्पणी करता है, ''अब बात बीते दिनों जैसी नहीं रही कि कोई पूछे, यौन संबंध बनाने से कैसा महसूस होता है. मुझे जानने की इच्छा है, तो मैं इंटरनेट पर जाकर किसी से यूं ही पूछ सकता हूं.''  तो क्या यह सवाल पूछने की सुविधा भर है या फिर दबे-छिपे एक क्रांति हो रही है?

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