धान रोपती औरतें
गाती हैं गीत
और सिहर उठता है खेत
पहले प्यार की तरह
धान रोपती औरतों के
पद थाप पर
झूमता है खेत ..
और सिमट जाता है
बांहों में उनकी ..
रोपनी के गीतों में बसता है जीवन
जितने सधे हाथों से रोपती हैं धान
उतने ही सधे हाथों से बनाती हैं रोटियां
मिट्टी का मोल जानती हैं
धान रोपती औरतें
खेत से चूल्हे तक
चूल्हे से देह तक..
क्षमा सिंह
शोध छात्रा -हिन्दी विभाग
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय