विलासितापूर्ण जीवनशैली, शारीरिक श्रम का अभाव, असंयमित खानपान, तनाव जैसे कारणों की वजह से देश में गुर्दे की समस्या बढ़ती जा रही है. मधुमेह और उच्च रक्तचाप गुर्दे की स्थायी समस्या के मुख्य कारण हैं लेकिन जानकारी के अभाव के कारण जब तक इस बीमारी का पता चलता है तब तक बीमारी असाध्य रूप ले चुकी होती है.
सर गंगाराम अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग के वरिष्ठ कंसल्टेंट डा ए के भल्ला कहते हैं ‘इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाना सर्वाधिक जरूरी है क्योंकि यह बीमारी एक ‘साइलेंट किलर’ है और ज्यादातर मामलों में इसका पता तब चलता है जब गुर्दा 80 फीसदी खराब हो चुका होता है. ‘ खास बात ये है कि गुर्दे की बीमारियों की चपेट में अब युवा भी आ रहे हैं.
एम्स के पूर्व विशेषज्ञ और मूलचंद अस्पताल के नेफ्रोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. अंबर खरा ने कहा ‘युवाओं पर काम का तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है, ऐसे में उनमें रक्तचाप जैसी परेशानी बढ़ रही है. गुर्दे की बीमारी भी इससे सीधे तौर पर जुड़ी हुई है, ऐसे में अब युवा और इस तरह घर के कामकाजी सदस्य भी लगातार इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं.’
डॉ. खरा ने कहा ‘अक्सर कोई भी परेशानी आने पर लोग सामान्य चिकित्सकों के पास जाते हैं. जरूरत इस बात की है कि अगर इन चिकित्सकों को गुर्दे की बीमारी के कोई संकेत मिलें तो ये मरीज को विशेषज्ञ के पास जाने की सलाह दें. सरकार को सामान्य चिकित्सकों के लिए ऐसे नियम बना देने चाहिए कि अगर वे मरीज को संबंधित विशेषज्ञ के पास जाने की सलाह न दें, तो उन्हें सजा का प्रावधान हो.’
बालाजी मेडिकल एंड एजुकेशन ट्रस्ट के डा राजन रविचंद्रन कहते हैं ‘पहले लोगों को निश्चित मात्रा में नमक का सेवन करने पर कोई नुकसान नहीं होता था क्योंकि तब जीवनशैली ऐसी थी जिसमें शारीरिक श्रम अधिक करना पड़ता था, लेकिन अब ज्यादातर लोग एसी में बैठ कर अपना अधिक से अधिक काम कंप्यूटर के जरिये निपटाते हैं. शारीरिक श्रम से बचाव हो जाता है. ऐसे में नमक का कम से कम सेवन करना चाहिए. लेकिन ज्यादातर लोगों को यह भी जानकारी नहीं होती.’
डा भल्ला बताते हैं ‘समय रहते समस्या का पता चलने पर यह कोशिश की जाती है कि गुर्दे को लंबे समय तक कैसे सक्रिय रखा जाए. खानपान में संयंम बरतने और जीवनशैली को संतुलित बनाने की सलाह दी जाती है. ‘डा रविचंद्रन कहते हैं ‘गुर्दे की समस्या के बारे में जानकारी न होने से लोग इसे गंभीरता से भी नहीं लेते. देश में करीब नौ लाख लोग ऐसे हैं जिन्हें डायलिसिस की जरूरत है. इनमें से केवल दो फीसदी लोगों को ही डायलिसिस की सुविधा मिल पाती है.’
डा भल्ला कहते हैं ‘गुर्दे का प्रतिरोपण भी बहुत ही कम मरीज कराते हैं. इस पर खर्च अधिक आता है. केवल एक डायलिसिस में ही 4000 हजार रूपये खर्च होते हैं जबकि गुर्दे के काम न करने की स्थिति में डायलिसिस अनिवार्य हो जाता है. छोटे शहरों में यह सुविधा उपलब्ध भी नहीं है.’