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कुमाऊं का जायका जो हमेशा के लिए याद रहेगा

भारत के बारे में कहा जाता है कि यह विविधताओं से भरा देश है. खासकर देश के अलग-अलग हिस्सों में खाने-पीने की आदतों के बारे में तो यह कहा ही जा सकता है. यहां देश के हर कोने में खान-पान की अपनी अलग आदतें होती हैं. उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की भी अपनी खान-पान की खास आदतें हैं. हालांकि यह बहुत ज्यादा मशहूर नहीं हैं, लेकिन जिन्होंने यहां के स्वादिष्ट भोजन का लुत्फ लिया है वे जानते हैं कि इनकी क्या खूबी है.

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भारत के बारे में कहा जाता है कि यह विविधताओं से भरा देश है. खासकर देश के अलग-अलग हिस्सों में खाने-पीने की आदतों के बारे में तो यह कहा ही जा सकता है. यहां देश के हर कोने में खान-पान की अपनी अलग आदतें होती हैं. उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की भी अपनी खान-पान की खास आदतें हैं. हालांकि यह बहुत ज्यादा मशहूर नहीं हैं, लेकिन जिन्होंने यहां के स्वादिष्ट भोजन का लुत्फ लिया है वे जानते हैं कि इनकी क्या खूबी है.

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कुमाऊं क्षेत्र के लोग दुनिया में चाहे कहीं भी रहें, वे अपने स्थानीय भोजन का स्वाद अक्सर लेते रहते हैं. कुमाऊं में नैनीताल आदि पर्यटन स्थलों का दौरा करने वाले पर्यटक भी यहां पहाड़ी खाने की मांग करते हैं और एक बार इसका स्वाद मुंह लगने के बाद वे कभी उस जायके को नहीं भूलते. हमारे साथ चलिए कुमाऊं क्षेत्र के लजीज जायके की यात्रा पर...

स्‍नैक्‍स-एपिटाइजर

 आलू के गुटके:
कहा जा सकता है कि ‘आलू के गुटके’ विशुद्ध रूप से कुमाऊंनी स्नैक्स हैं. उबले हुए आलू को इस तरह से सब्जी के रूप में पकाया जाता है कि आलू का हर टुकड़ा अलग दिखे. और हां, इसमें पानी का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होता. यह मसालेदार होता है और लाल भुनी हुई मिर्च व धनिए के पत्तों के साथ इसे परोसा जाता है. आलू के गुटके के स्वाद को कई गुना बढ़ाने में ‘जखिया’ (एक प्रकार का तड़का) की बेहद अहम भूमिका होती है. आलू के गुटके मडुए की रोटी के साथ भी खाए जाते हैं और शाम को चाय के साथ भी इसका भरपूर लुत्फ लिया जा सकता है.

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 भांग की चटनी या तिल की चटनी:
भांग और तिल की चटनी काफी खट्टी बनाई जाती है और इन्हें कई तरह के स्नैक्स और रोटी के साथ खाया जाता है. भांग की चटनी हो या तिल की चटनी, इसके लिए दानों को पहले गर्म तवे या कड़ाही में भूना जाता है. इसके बाद इन्हें सील (आजकल मिक्सी) में पीसा जाता है. इसमें जीरा पावडर, धनिया, नमक और मिर्च स्वादानुसार डालकर अच्छे से सभी को सील में पीस लिया जाता है. बाद में नींबू का रस डालकर इसे आलू के गुटके या अन्य स्नैक्स व रोटी आदि के साथ परोसा जाता है. अगर आप भांग का नाम सुनकर चिंतित हैं तो परेशान ना हों, इसके दानों में नशा नहीं होता है और इनका स्वाद आलौकिक होता है.

 कुमाऊंनी रायता:
कुमाऊं का रायता देश के अन्य हिस्सों के रायते से काफी अलग होता है. इसे आम तौर पर लंच के समय परोसा जाता है और इसमें बड़ी मात्रा में ककड़ी (खीरा), सरसों के दाने, हरी मिर्च, हल्दी पाउडर और धनिए का इस्तेमाल होता है. इस रायते की खास बात छनी हुई छाछ होती है. यह रायता बनाने के लिए छाछ (प्लेन लस्सी) को एक कपड़े के थैले में भरकर किसी ऊंची जगह पर टांग दिया जाता है. कपड़े में से सारा पानी धीरे-धीरे बाहर निकल जाता है, जबकि छाछ की क्रीम थैले में ही रह जाती है. दही की जगह इसी क्रीम का इस्तेमाल कुमाऊंगी रायता बनाने में होता है, जिससे यह काफी गाढ़ा होता है. मेलों आदि में इसे स्नैक्स के रूप में भी खाया जाता है.

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लंच-डिनर

 मडुए की रोटी:
मडुए की रोटी मडुए के आटे से बनती है. यह एक स्थानीय अनाज है और इसमें बहुत ज्यादा फाइबर होता है. स्वादिष्ट होने के साथ ही यह स्वास्थ्यवर्धक भी होती है. मडुए की रोटी भुरे रंग की बनती है. मडुए का दाना गहरे लाल या भुरे रंग का होता है और यह सरसों के दाने से भी छोटा होता है. मडुए की रोटी को घी, दूध या भांग व तिल की चटनी के साथ परोसा जाता है. कई बार पूरी तरह से मडुए की रोटी के अलावा इसे गेंहू की रोटी के अंदर भरकर भी बनाया जाता है. ऐसी रोटी को लोहोटु रोटी कहा जाता है.

 सिसौंण का साग:
सिसौंण के साग में बहुत ज्यादा पौष्टिकता होती है. सिसौंण को आम भाषा में लोग ‘बिच्छू घास’ के नाम से भी जानते हैं. सिसौंण के हरे पत्तों की सब्जी बनाई जाती है. हालांकि सिसौंड के पत्तों या डंडी को सीधे छूने पर यह दर्द देता है. शायद इसी लिए इसे बिच्छू घास कहते हैं, क्योंकि अगर यह शरीर के किसी हिस्से में लग जाए तो वहां सूजन आ जाती है और बहुत ज्यादा जलन होती. लेकिन साग बनाने पर यह सब नहीं होता और गांव-देहात की अनुभवी औरतें इसे बड़ी सावधानी से हाथ में कपड़ा लपेटकर काटती हैं.

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मास के चैंस:
मास के चैंस कुमाऊं क्षेत्र के खायी जाने वाली प्रमुख दाल है. मास यानी काली उड़द को दड़दड़ा पीस कर बनाई जाने वाली इस दाल में प्रोटीन काफी मात्रा में होता है और इसलिए इसे हजम करना कुछ कठिन होता है. हालांकि कहा जाता है कि उड़द के बुरे प्रभाव तले जाने पर खत्म हो जाते हैं. जीरा, काली मिर्च, अदरक, लाल मिर्च, हींग आदि के साथ यह दाल न सिर्फ स्वाद के मामले में अदभुत होती है बल्कि स्वास्थ्य के लिजाज से भी काफी अच्छी मानी जाती है.

 काप या कापा:
यह एक हरी करी है. सरसों, पालक आदि के हरे पत्तों को पीस कर बनाया जाने वाला ‘काप’ कुमाऊंनी खाने का एक अहम अंग है. इसे रोटी और चावल के साथ लंच और डिनर में खाया जाता है. यह एक शानदार और पोषक अहार है. ‘काप’ बनाने के लिए हरे साग को काटकर उबाल लिया जाता है. उबालने के बाद साग को पीसकर पकाया जाता है.

गहत की दाल
गहत की दाल कुमाऊं क्षेत्र के लगभग हर घर में अक्सर बनती है. यह एक तरह की करी है और इसे चावल के साथ तो खाते ही हैं, रोटी के साथ भी इसके लजीज स्वाद का लुत्फ लिया जाता है. गहत के बारे में कहा जाता है कि इसकी करी से पेट की पथरी (स्टोन) कट जाती है. इसके अलावा इसकी तासीर गर्म होती है, इसलिए सर्दियों में इस दाल का सेवन ज्यादा होता है. धनिए के पत्तों, मक्खन और टमाटर के साथ इस दाल को परोसा जाता है.

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 डुबुक या डुबुके:
डुबक भी कुमाऊं के पहाड़ों में अक्सर खाई जाने वाली डिश है. असल में यह दाल ही है, लेकिन इसमें दाल को दड़दड़ा पीसकर बनाया जाता है, लेकिन यह ‘मास के चैस’ से अलग है. डुबक पहाड़ी दाल भट और गहत आदि की दाल से बनाया जाता है. लंच के समय चावल के साथ डुबुक का सेवन किया जाता है.

कुछ मीठा भी हो जाए

 झिंगोरा या झुंअर की खीर:
झिंगोरा या झुंअर एक अनाज है और यह उत्तराखंड के पहाड़ों में उगता है. यह मैदानों में व्रत के दिन खाए जाने वाले व्रत के चावल की तरह ही होता है. झुंअर के चावलों की खीर यहां का एक स्वादिष्ट व्यंजन है. दूध, चीनी और ड्राइ-फ्रूट्स के साथ बनाई गई झिंगोरा की खीर एक आलौकिक स्वाद देती है.


 बाल मिठाई:
बाल मिठाई कुमाऊं और खासकर अल्मोड़ा की प्रसिद्ध मिठाई है. अब यह मिठाई देशभर में मशहूर हो चुकी है. पहाड़ों से मैदानों की ओर जाने वाले लोग अपने साथ बाल मिठाई ले जाना नहीं भूलते. इसके बाद वे मैदानों के अपने दोस्तों व परिचितों को यह मिठाई खिलाते हैं. एक बार इस मिठाई का स्वाद लेने वाले लोग अगली बार स्वयं ही बाल मिठाई मंगवाते हैं. यह जितनी ज्यादा स्वादिष्ट होती है उतनी ही ज्यादा पौष्टिक भी होती है. इस मिठाई को बनाने में खोया के अलावा सुगर बॉल का भी इस्तेमाल किया जाता है.

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