कहते हैं कि हर कामयाब व्यक्ति के पीछे किसी महिला का हाथ होता है पर एक अध्ययन से पता चला है कि महिलाओं पर यह बात लागू नहीं होती और अधिकांश एकाकी महिलाएं अपने एकाकीपन को सफल और झंझट मुक्त जीवन जीने में सहायक मानती हैं.
अधिक अनुकूल साबित हुआ एकाकी जीवन
लखनऊ विश्वविद्यालय के महिला अध्ययन विभाग द्वारा हिन्दी पट्टी की महिलाओं पर किये एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि नाना प्रकार के कारणों से एकाकी जीवन जी रही अधिकांश महिलायें यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं करतीं कि उनका एकाकीपन गृहस्थ जीवन जी रही महिलाओं की अपेक्षा जीवन के हर क्षेत्र में कामयाब रहने में अधिक अनुकूल साबित हुआ है. सर्वे के दिशा निर्देशक प्रो राकेश चन्द्रा ने बताया है कि 1581 अविवाहित तलाकशुदा परित्यक्ता और विधवा महिलाओं से हुई बातचीत के आधार पर हुए सर्वेक्षण में पता चला है कि 93 प्रतिशत महिलाएं यह मानती हैं कि उनका एकाकीपन कार्य एवं व्यवसाय क्षेत्र में कामयाबी पाने में सहायक साबित हुआ है.
झंझट मुक्त जीवन जीने में सहायक रहा एकाकीपन
प्रो चन्द्रा ने बताया कि सर्वे के लिए आमतौर पर रूढि़वादी मानी जाने वाली हिन्दी पट्टी की एकाकी महिलाओं को चुना गया जिनमें विभिन्न क्षेत्रों में बडे पदों पर काम करने वाली महिलाओं के साथ ही मजदूरी और सब्जी भाजी बेचकर जीवन यापन करने वाली हर वर्ग और आयु समूह की महिलाएं शामिल हैं. उन्होने बताया कि बातचीत में माना गया है कि उनका एकाकीपन कार्य क्षेत्र में कामयाबी पाने तथा झंझट मुक्त जीवन जीने में सहायक और प्रेरक साबित हुआ है. प्रो चन्द्रा ने बताया कि सर्वेक्षण में जिन एकाकी महिलाओं को चुना गया उनमें सीतापुर चंदौली बाराबंकी वाराणसी और लखनउ में निजी और सरकारी क्षेत्र में बड़े पदों पर काम करने वाली महिलाओं के साथ ही चिकनकारी एवं अन्य शिल्प कर्म में लगी कारीगर ग्रामीण क्षेत्र में मजदूरी व्यवसाय तथा राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय महिलाएं शामिल थीं. सर्वेक्षण में उभरे तथ्यों के हवाले से उन्होंने कहा कि मजेदार बात यह है कि अधिकांश एकाकी महिलाएं अपने एकाकी जीवन से इतना संतुष्ट दिखीं कि उनके मन में सुखद वैवाहिक जीवन और पतियों की छाया में सुरक्षित जीवन जीने की कोई चाह दिखाई नही पडी.
अशिक्षित महिलाएं भी इसमें शामिल
उन्होंने बताया कि शहरी और सामान्यत: उन्मुक्त जीवन के हामी परिवारों की ही नहीं बल्कि रूढिवादी पृष्ठभूमि के परिवारों से संबंध रखने वाली वे महिलाएं जिन्होंने शादी ब्याह के लिए परिवार के दबाव को ठुकरा कर अपने व्यावसायिक क्षेत्र में अकेले दम पर आगे बढने का रास्ता चुना अथवा कलहपूर्ण वैवाहिक जीवन को त्याग कर अपने दम पर जीवन यापन की राह चुनी वे भी अपने निर्णय और स्वत: चुने एकाकी जीवन से संतुष्ट हैं और दो टूक कहा कि उनका निर्णय सही सिद्व हुआ है. प्रो. चन्द्रा ने कहा कि यह बात केवल पढ़ी लिखी नौकरीपेशा अथवा व्यावसायिक क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं में ही नहीं बल्कि अशिक्षित महिलाओ में भी सामने आयी है और इसके लिए उन्होने सब्जी बेचकर जीवन यापन करने वाली 70 वर्षीया विधवा का उदाहरण दिया जिसने कहा कि वह पुरुष आधिपत्य से मुक्त होकर सुखी है.
एकाकी होने की अपनी समस्याएं भी हैं
प्रो चन्द्रा ने यह भी बताया कि अपने एकाकी जीवन से संतुष्ट होने के बावजूद 87 प्रतिशत एकाकी महिलाएं यह स्वीकार करती हैं कि उनके सामने बलात यौन शोषण का खतरा रहता है जबकि 54 प्रतिशत मानती है कि वे पुरुषों के प्रति आकषर्ण से मुक्त नहीं है. उन्होंने बताया कि 53 प्रतिशत महिलाओ ने कहा कि जीवन में विवाह की आवश्यकता को जरूरत से अधिक महत्व दिया जाता है जबकि 65 प्रतिशत ने जीवन में पति की जरूरत को बेमतलब बताते हुए यह स्पष्ट किया कि वे शादी ब्याह का कोई इरादा नही रखती. प्रो चन्द्रा ने बताया कि एकाकी जीवन से संतुष्ट होने के बावजूद अधिकांश महिलाएं यह मानती है कि उनका एकाकीपन रात बेरात उनकी आवाजाही को काफी हद तक प्रतिबंधित कर देता है.