बेटियों को जन्म से पहले ही मार देने के यूं तो आपने कई कहानियां सुनीं होंगी. पर हम आपको जो दास्तां बताने जा रहे हैं. उसे जानकर आप न सिर्फ दंग रह जाएंगे, बल्कि सभ्यता के पर्दे के पीछे छुपे समाज के सच से भी वाकिफ हो जाएंगे. ये कहानी डॉक्टर महिला मीतू खुराना की है, जिसने कोख में पल रही अपनी बेटियों को बचाना चाहा तो जमाना दुश्मन बन गया.
मीतू खुराना का कहना है कि मीतू के अनुसार गर्भ के दौरान ही उनके पति, जो खुद पेशे से एक डॉक्टर हैं, ने लिंग परीक्षण करवाया. जब उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी के गर्भ में जुड़वां बेटियां हैं तो मीतू के ऊपर गर्भपात का दबाव बढ़ गया.
मीतू पर दबाव डाला गया कि वह अपने पेट में पल रही बेटियों का गर्भपात करवा लें, अगर दोनों नहीं तो कम से कम एक बेटी को तो पेट में मार ही डालें. मगर मीतू अपनी बच्चियों को मरने नहीं देना चाहती थीं.
यहीं से मीतू की जंग शुरू हुई. मीतू ने ना सिर्फ जुडवां बेटियों को जन्म दिया बल्कि पिछले तीन साल से उनकी परवरिश भी अकेले कर रही है. उन्होंने पति के खिलाफ पीएनडीटी एक्ट के तहत मुकदमा भी दर्ज करवा दिया. जरा सोचिए कि सभ्य समाज की ये तस्वीर कितनी घिनौनी दिखती है.
इंसाफ की इस राह पर मीतू को कई ठोकरें भी खानी पड़ीं. अकेले ही बेटियों को पालना, अकेले ही ये लड़ाई लड़ना. इंसाफ की राह पर निकली तो अकेले ही थीं, लेकिन बढ़ती गईं, तो कारवां भी जुड़ता गया. दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष बरखा सिंह ने बताया कि आयोग ने केस अब अपने हाथ में ले लिया है. दोषियों को जो भी कड़ी से कड़ी सजा हो सकती है वो दिलवाई जाएगी, लेकिन बरखा के ऊपर भी लगातार दबाव बनाया जा रहा है कि वह केस वापस ले ले.
मीतू को भी अपनी बेटियों की हिफाज़त की फिक्र हमेशा लगी रहती है. उनका आरोप है कि ससुराल वालों की तरफ से लगातार धमकियां मिलती रही हैं. अपनी कोख की खातिर मीतू ने पूरे ज़माने से दुशमनी मोल ली लेकिन अपनी अजन्मी बच्चियों को खुद से अलग होने नहीं दिया, भले ही उन्हे कितनी दिक्कतों का सामना करना पडा. ऐसा करके मीतू ने उन तमाम लोगों के लिए एक मिसाल पेश की है जो जन्म से पहले ही बेटियों को मार देते है.